असिस्टैंस डॉग ने दिया इस टीचर को ‘नया जीवन’, करता है घर के सारे काम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Dec, 2017 02:08 PM

assistant dog gave this teacher a   new life

सर्दी की सुबह साढ़े 6 बज रहे हैं और वर्लिन अपनी मालकिन फियोना की तैयार होने में मदद कर रहा है। ‘जुराबें वर्लिन’ सुनते ही उसने जुराबें पकड़ा दीं, फिर टी-शर्ट की ओर इशारा होते ही उसने वह भी फियोना तक पहुंचा दी। इसके बाद फियोना को खड़ी होने के लिए अपनी...

इंटरनेशनल डैस्कः सर्दी की सुबह साढ़े 6 बज रहे हैं और वर्लिन अपनी मालकिन फियोना की तैयार होने में मदद कर रहा है। ‘जुराबें वर्लिन’ सुनते ही उसने जुराबें पकड़ा दीं, फिर टी-शर्ट की ओर इशारा होते ही उसने वह भी फियोना तक पहुंचा दी। इसके बाद फियोना को खड़ी होने के लिए अपनी पीठ का सहारा देने के लिए वह उसके करीब आ गया। वर्लिन 6 बजे का जागा हुआ है जब कॉफी बनाने में और कपबोर्ड से सर्दियों वाले लम्बे जूते निकालने में उसने फियोना की मदद की। एक प्राइमरी स्कूल में टीचर फियोना के साथ वर्लिन कक्षा में भी मौजूद रहता है। वह बच्चों को पढ़ाती हैं तो वह चुपचाप कोने में बैठा रहता है, परंतु जब भी फियोना को कक्षा या स्टोर का दरवाजा खोलना हो, वह तुरंत उसकी मदद के लिए करीब आ जाता है।

दरवाजों के हैंडल पर टैनिस बॉल बंधी हैं ताकि वर्लिन मुंह से खींच कर उन्हें खोल सके। फियोना के हाथ से पैन या पैंसिल गिरने पर वह तुरंत उसे उठा कर पकड़ाता है। वर्लिन का उसके लिए कितना महत्व है, फियोना बताती हैं, ‘‘वर्लिन मेरे लिए सब कुछ है। उसके बिना मैं अधूरी हूं। उसे पता है कि मुझे कब क्या चाहिए, मुझे कुछ मांगना तक नहीं पड़ता। उसे देख कर कभी-कभी तो मुझे ऐसा लगता है कि वह मेरा ही एक हिस्सा है...पिछले रविवार की सुबह मैंने सोचा कि उसे ब्रेक दूं और उसे खेलने के लिए घर पर छोड़ कर मैं अपने पिता से मिलने अकेली चली गई परंतु उसके बिना मैं बेहद कमजोर महसूस करती हूं।’’

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विरल रोग : फियोना एक आनुवांशिक व्याधि से ग्रस्त है जिससे उसका शरीर बेहद कमजोर हो गया है। हल्का-सा भी जोर लगाने वाला काम करने से उसकी हड्डियां चटक सकती हैं, परंतु जब से वर्लिन उसके जीवन में आया है, उसे एक नया जीवन मिल गया है। 45 वर्षीय फियोना ‘एहलर्स-डानलोस सिंड्रोम’ से पीड़ित है। यह ‘जैनेटिक कनैक्टिव-टिशू डिसॉर्डर’ है जो उसके भीतरी अंगों तथा उसकी गतिविधियों को भी प्रभावित करता है। अक्सर उसके हाथों से चीजें गिर जाती हैं, आसानी से वह लडख़ड़ा जाती हैं और अक्सर दर्द सहना पड़ता है। उसमें इस रोग की पुष्टि 38 की उम्र में हुई, हालांकि उसमें इसके लक्षण हमेशा से थे। बचपन से ही उसका शरीर अन्य से कहीं ज्यादा लचीला था। उसे बैले डांस में रुचि थी और वह 2 साल की उम्र से इसे सीख रही थी परंतु 19 की उम्र तक आते-आते इस रोग की वजह से अक्सर चोटें लगने के कारण उसे इसे छोडऩा पड़ा और वह एक टीचर बन गईं। हालांकि, घायल होने का सिलसिला जारी रहा।
 

वर्लिन ने दी नई जिंदगी
वर्लिन के उनके पास आने से पहले रजाई खींचने या दरवाजे का हैंडल घुमाने जैसे आसान कामों से ही कई बार उसका कंधा या कलाई उतर जाती थी। जब से वर्लिन उसकी जिंदगी में आया है हड्डी उतरना 95 प्रतिशत तक कम हो चुका है क्योंकि उनके लिए छोटे-बड़े अधिकतर काम वही करता है। वह उन्हें चीजें पकड़ाने के अलावा उनकी सुरक्षा के लिए हरदम उनकी बाईं ओर चलता है ताकि भीड़ भरी जगहों पर भी कोई गलती से उनसे टकरा न जाए। तीन वर्ष पूर्व एक चैरिटी संस्था कैनाइन पार्टनर्स ने फियोना तथा वर्लिन की मुलाकात करवाई थी। यह संस्था असिस्टैंस डॉग्स तथा लोगों के लिए मैच मेकिंग करती है। अब तक विभिन्न व्याधियों से पीड़ित रोगियों को यह 750 असिस्टैंस डॉग्स उपलब्ध करवा चुकी है। इसकी प्रतीक्षा सूची में करीब 180 लोग हैं। इन कुत्तों को छोटी उम्र से एक ‘पप्पी पेरेंट’ (वालंटियर ट्रेनर) के घर पर करीब साल भर के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। फिर उन्हें चैरिटी के दो ट्रेनिंग सैंटरों पर 4 महीने की एडवांस्ड ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद वे रिटायरमैंट की 12 वर्ष की उम्र तक काम करते हैं।
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फियोना को इस चैरिटी के बारे में 2012 में पहली बार उसकी एक सहेली ने एक टी.वी. शो में इसके बारे में देख कर बताया था। उसने उसे कहा था कि उसकी जैसी व्याधि से ग्रस्त एक महिला की मदद करने के लिए एक डॉग है। तब उसने इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि उसे इस रोग के बारे में दो वर्ष पहले ही पुष्टि हुई थी और वह स्वयं को दिव्यांग स्वीकार नहीं कर रही थी। परंतु जब उसकी हालत ज्यादा खराब होने लगी और अक्सर उसे चोटिल होने से जूझना पड़ने लगा तो उसने असिस्टैंस डॉग की मदद लेने का फैसला किया। हालांकि, अपने लिए उपयुक्त असिस्टैंस डॉग हासिल करने की प्रक्रिया भी आसान नहीं थी।

संस्था ने उसकी मैडीकल हिस्ट्री की जानकारी प्राप्त की और उसे अपने एक सैंटर में चार अलग-अलग डॉग्स के साथ कुछ वक्त बिताने को कहा ताकि पता किया जा सके कि उसके असिस्टैंस डॉग को उसकी मदद के लिए किन-किन कामों में माहिर होना होगा। उसे ऊंचे कद वाले डॉग की जरूरत थी क्योंकि वह स्वयं लम्बी है। इसके अलावा उसका काम स्कूल में बच्चों  के साथ था। 18 महीने की तलाश के बाद लैब्राडोर प्रजाति के वर्लिन को उसके लिए उपयुक्त पाया गया और तब से ही वह उसके साथ है। लगता है कि जैसे वर्लिन में दो व्यक्तित्व हों। खाली वक्त में वह खूब उछल-कूद करता है, परंतु जैसे ही उसे उसकी यूनिफॉर्म (पीठ पर कवर) पहनाया जाए वह पूरी गम्भीरता से फियोना की हर तरह की मदद के लिए ड्यूटी पर तैनात हो जाता है।

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