Edited By Pardeep,Updated: 02 Nov, 2018 10:00 PM
प्रख्यात अर्थशास्त्री एवं रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि सीमा पार से पूंजी का प्रवाह वित्तीय दुर्बलता का स्रोत बना रहता है। उन्होंने कहा कि देशों को यह देखना चाहिए कि वे इस तरह के पूंजी प्रवाह का सबसे अच्छा फायदा कैसे उठा सकते है...
वाशिंगटन: प्रख्यात अर्थशास्त्री एवं रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि सीमा पार से पूंजी का प्रवाह वित्तीय दुर्बलता का स्रोत बना रहता है। उन्होंने कहा कि देशों को यह देखना चाहिए कि वे इस तरह के पूंजी प्रवाह का सबसे अच्छा फायदा कैसे उठा सकते है और उनको इसकी लागत न चुकानी पड़े।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के मुख्यालय में ‘मंडेल-फ्लेमिंग व्याख्यान’ में राजन ने बृहस्पतिवार को कहा कि पूंजी के इस तरह के प्रवाह में दोनों छोर के देश यदि तर्कसंगत नीतियों का पालन कर भी रहे हों तो भी आर्थिक विस्तार के दौर में कर्ज के विस्तार की प्रकृति ही ऐसी होती है कि उसमें ही अर्थिक गिरावट के दौर की भूमिका बन जाती है। इसका कारण यह होता है कि तेजी के दौर में कर्ज ज्यादा लिया जा रहा होता है और गिरवी रखने की क्षमता कम होने लगती है।
राजन ने बृहस्पतिवार को कहा, ‘‘सीमा पार का पूंजी प्रवाह चाहे भेजने वाले देश की जोर से ढकेला जा रहा हो या पाने वाले देश की ओर से आकर्षित किया जा रहा हो वह वित्तीय कमजोरी का स्रोत होता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे समय जब विश्व में जब राष्ट्रवाद उभार पर है, इस तरह के प्रभाव ऐसा माहौल बना सकते हैं जिसमें गलतफहमियां पैदा हो सकती है और टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।’’
राजन ने कहा, ‘‘धन भेजने वाला देश प्राप्तकर्ता देश में विदेशी मुद्रा भंडार के विस्तार को विनिमय दर में हेराफेरी के रुप में देख सकता है। इसी तरह प्राप्तकर्ता देश को शिकायत हो सकती है कि औद्योगिक देश की मौद्रिक नीति के जोखिम से निपटने की सारी जिम्मेदारी उसी के मत्थे पड़ती है।’’ उन्होंने कहा कि एक-दूसरे पर आरोप लगाने के बजाय दोनों देशों को यह देखना चाहिये कि उन्हें सीमापार पूंजी प्रवाह से किस तरह फायदा हो सकता है।