अफगानिस्तान-तालिबान शांति वार्ता से तिलमिला रहा चीन, उइगरों को लेकर सता रही चिंता

Edited By Tanuja,Updated: 14 Sep, 2020 02:10 PM

china concerned about taliban coming to power in afghanistan

दशकों लंबे संघर्ष के बाद अफगानिस्तान-तालिबान की शांति वार्ता शुरू होने से चीन की टेंशन बढ़ गई है। चीन को अपने सीपीईसी प्रोजक्ट के भविष्य ...

 

बीजिंगः दशकों लंबे संघर्ष के बाद अफगानिस्तान-तालिबान की शांति वार्ता शुरू होने से चीन की टेंशन बढ़ गई है। चीन को अपने सीपीईसी प्रोजक्ट के भविष्य को लेकर चिंता सताने लगी है। चीन को डर है कि बलूचिस्तान के विद्रोही तालिबान से हथियार लेकर चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक प्रोजक्ट में अड़चनें डालेंगे। चीन इस बात से भी घबराया हुआ है कि अगर अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आ जाता है तो शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुसलमान विद्रोह कर सकते हैं।

 

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार शिनजियांग प्रांत की सुरक्षा सीधे तौर पर पेइचिंग के मार्च ईस्ट स्ट्रेटजी से जुड़ी हुई है। इसमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मध्य एशिया के देशों में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की भी अहम भूमिका है। अपने इस प्रोजक्ट को बचाने के लिए चीन हर हालत में उइगुरों पर नियंत्रण पाना चाहता है। रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है कि चीन जहां इस्लामिक आतंकवाद पर काबू पाना चाहता है, वहीं उसका सहयोगी पाकिस्तान अपने कई पड़ोसी देशों में आतंवादी गुटों को सहायता दे रहा है। इसलिए चीन जरूर चाहेगा कि पाकिस्तान की मदद से वह इस क्षेत्र में जारी इस्लामिक आतंकवाद पर लगाम लगाए। इससे उसकी अरबों डॉलर की परियोजनाओं पर से खतरा खत्म हो जाएगा।

 

रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि तालिबान के साथ चीना का पुराना संबंध है। जब 1990 के दशक में अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में था तब चीन ने सीधे संचार चैनल स्थापित किए थे। यह बात है कि आजतक कभी भी तालिबान को चीन का विरोध करते नहीं देखा गया है। फिर भी चीन की तालिबान पर सीधी पकड़ नहीं है। वह अपने दोस्त पाकिस्तान की मदद से ही तालिबान के साथ कोई डील कर सकता है। तालिबान का इतिहास तालिबान का जन्म 90 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ।

 

इस समय अफगानिस्तान से तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) की सेना हारकर अपने देश वापस जा रही थी। पश्तूनों के नेतृत्व में उभरा तालिबान अफगानिस्तान में 1994 में पहली बार सामने आया। माना जाता है कि तालिबान सबसे पहले धार्मिक आयोजनों या मदरसों के जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जिसमें इस्तेमाल होने वाला ज़्यादातर पैसा सऊदी अरब से आता था। 80 के दशक के अंत में सोवियत संघ के अफगानिस्तान से जाने के बाद वहां कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरु हो गया था जिसके बाद तालिबान का जन्म हुआ।

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