पेलोसी के ताइवान दौरे से चीन के चिढ़ने की जानें असली वजह

Edited By Tanuja,Updated: 07 Aug, 2022 03:15 PM

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अमेरिकी संसद की स्पीकर के ताइवान दौरे के बाद चीन भड़का हुआ है और इसका जवाब ताइवान के खिलाफ युद्ध छेड़ कर देने की तैयारी में...

इंटरनेशनल डेस्कः अमेरिकी संसद की स्पीकर के ताइवान दौरे के बाद चीन भड़का हुआ है और इसका जवाब ताइवान के खिलाफ युद्ध छेड़ कर देने की तैयारी में है। चीन अब अपना आखिरी दांव चल कर ताइवान को डराना चाहता है।  तमाम अटकलों  को ताक पर रखते हुए अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रेप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने अपना ताइवान दौरा पूरा कर लिया। अब बेवजह इस मुद्दे को तिल का ताड़ बना बैठे चीन पर बड़ा संकट यह है कि इस बात का जवाब दे कैसे?

 

अमेरिकी नजरिए से देखें तो यह एक जरूरी कदम था जबकि ताइवान और अन्य इंडो-पैसिफिक देशों के नजरिए से देखें तो इस बात से अमेरिकी सरकार की विश्वसनीयता और किए गए वादों को लेकर वचनबद्धता की पुष्टि होती है लेकिन चीन के लिए यह एक कूटनीतिक नाकामी है। पेलोसी प्रकरण का दुनिया को संदेश यही है कि अगर अमेरिका चाहे  कुछ भी कर सकता है और चीन भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। इससे हार सिर्फ कमिटमेंट को लेकर नहीं हुई है चीन की प्रतिष्ठा को भी आंच आई है।

 

पेलोसी को रोक न पाने और कोई जवाबी कार्यवाही न कर चीन दादागिरी में अमेरिका से तो वह मात खा चुका है इसलिए  अब ताइवान को प्रताड़ित करने की कोशिश  जरूर करेगा। इस कोशिश की शुरुआत पहले ही हो चुकी है। पेलोसी की यात्रा के ठीक बाद चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के 27 लड़ाकू जहाज ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन में घुस गए । अतिक्रमण की यह घटनाएं महज एक शुरुआत हैं और आने वाले दिनों में इसमें तेजी से इजाफा होने की आशंका है। इस सैन्य उग्रता और अतिक्रमण का मकसद फिलहाल तो ताइवान को डराना ही है, लेकिन इन गतिविधियों में बढ़ोत्तरी ताइवान के लिए परेशानी का सबब बनेगी।

 

आर्थिक मोर्चे पर भी चीन ताइवान की नकेल कसने की कोशिश में लग गया है। इसकी शुरुआत उसने आर्थिक प्रतिबंध लगाने के साथ कर दी है। रिपोर्टों के अनुसार फलों, मछली, और अन्य सब्जियों के आयात पर चीन ने प्रतिबंध लगा दिया है। चीन ने यह भी घोषणा की है कि वह ताइवान स्ट्रेट में और उसके इर्द गिर्द सैन्य अभ्यास भी करेगा।  लाइव फायर ड्रिल करने के पीछे मंशा यही है कि ताइवान को उसकी हदों में रखा जाए। इस लिहाज से दो बातें काफी गंभीर रुख ले सकती हैं। पहला है चीन का ताइवान के तमाम बंदरगाहों के इर्द गिर्द लाइव फायर ड्रिलिंग के जरिए घेराव।

 

ऐसा लगता है कि ताइवान को दुनिया के व्यापार और सप्लाई चेन मैकेनिज्म से अलग थलग करने की चीन की योजना है। अगर ऐसा होता है तो ताइवान स्ट्रेट में चीन के अमेरिका और ताइवान समेत उसके तमाम सहयोगियों के साथ संबंधों में और कड़वाहट आएगी। यह बात एक बड़ी घटना का रूप भी ले ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। इसी से जुड़ी दूसरी संभावना है कि चीन सैन्य अतिक्रमण से आगे बढ़ कर ऐसा कुछ करे कि ताइवान के हवाई क्षेत्र में उसकी लगातार उपस्थिति बनी रहे।

 
ताइवान के कई लोगों को अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक बड़ा पड़ोसी अपने छोटे पड़ोसी पर हमला कर सकता है।  उनमें से कई लोगों का मानना ​​है कि चीन ताइवान पर कभी भी हमला कर सकता है और ऐसे में चूंकि उसे अपने अस्तित्व के लिए लड़ना है, इसलिए बेहतर होगा कि अभी से तैयारी शुरू कर दी जाए। इसे ध्यान में रखते हुए कई लोगों ने पहले ही बंदूक प्रशिक्षण में दाखिला ले लिया है। यह दोनों परिस्थितियां चीन की पहले से कहीं बड़ी उपस्थिति की संभावना की और इशारा करती हैं।

 

दूसरी और अमेरिकी सत्ता के गलियारों में यह गूंज भी उठ रही है कि ताइवान को अमेरिकी और तमाम यूरोपीय देशों के सैन्य संगठन नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाईजेशन) का मेजर गैर नाटो सहयोगी बना दिया जाए। जो भी हो यह बात तो तय है कि अपने ताइवान दौरे से पेलोसी ने यह जाता दिया है कि चीन से निपटने में वह ताइवान के साथ डट कर खड़ा होगा. लेकिन चीन की गतिविधियों से भी यह साफ हो गया है कि ऐसा करना आसान नहीं होगा। चीन रूस के ढर्रे पर चल कर यूक्रेन जैसी स्थिति नहीं लाएगा लेकिन ताइवान को सबक सिखाने की उसकी कोशिश भी पुरजोर होगी।

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