Edited By Ashish panwar,Updated: 12 Jan, 2020 10:31 PM
चीन को कड़ा संदेश देते हुए ताइवान की जनता ने एक बार फिर, राष्ट्रपति साई इंग-वेन को भारी बहुमत से सत्ता पर काबिज करा दिया है। शनिवार को आए चुनाव नतीजों में इस द्वीपीय देश में पहली महिला राष्ट्रपति को दोबारा जनता ने सत्ता की चाबी दे दी है। केंद्रीय...
इंटरनेशल डेस्कः चीन को कड़ा संदेश देते हुए ताइवान की जनता ने एक बार फिर, राष्ट्रपति साई इंग-वेन को भारी बहुमत से सत्ता पर काबिज करा दिया है। शनिवार को आए चुनाव नतीजों में इस द्वीपीय देश में पहली महिला राष्ट्रपति को दोबारा जनता ने सत्ता की चाबी दे दी है। केंद्रीय चुनाव आयोग के अनुसार, देश के 22 शहरों और काउंटी में करीब 2 करोड़ से कुछ कम मतदाता हैं। कुल मतदाताओं में से 6 फीसद की आयु 20 से 23 वर्ष के बीच हैं।
गौरतलब है कि, चीन ताइवान की स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं करता, वह उसे अपना हिस्सा मानता है। ताइवान के मामलों में किसी देश का दखल भी चीन को पसंद नहीं है। साई की जीत पर अमेरिका ने खुशी जाहिर करते हुए, उन्हें बधाई दी है। विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने आशा जताई है कि साई चीन के क्रूरतापूर्ण दबाव और धमकियों को भुलाकर उसके साथ संबंधों में स्थिरता लाने की कोशिश करेंगी।
इस जीत के बाद साई ने पार्टी मुख्यालय में समर्थकों के बीच जाकर, हाथों में देश और पार्टी की झंडे लिए हजारों समर्थकों से इस जीत के लिए धन्यवाद कहा। ताइवान ने विश्व को बता दिया है कि स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक प्रणाली से उन्हें कितना प्यार हैं। राष्ट्रपति ने कहा, वह चीन से वार्ता की इच्छुक हैं और क्षेत्र में शांति चाहती हैं। लेकिन चीन पहले अपनी नकारात्मक हरकतों को छोड़े। द्वीप की 2.3 करोड़ जनता को देश का भाग्य तय करने दें। चीन की धमकियों के आगे ताइवान कभी नहीं झुकेगा।
साई के मुख्य प्रतिद्वंद्वी और चीन समर्थित केएमटी पार्टी के मुखिया हान कुओ यू ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। परिणामों के अनुसार साई की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी को 80 लाख मतों में 57 प्रतिशत मत मिलें है। जबकि हान की पार्टी को 38 प्रतिशत मतों से ही संतुष्टी करनी पड़ी।
ताइवान के चुनाव नतीजे चीन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। उसने साई को राष्ट्रपति पद पर न लौटने देने के लिए हान के पक्ष में पूरी ताकत झोंक दी थी। पिछले चार साल से चीन ने ताइवान पर आर्थिक और कूटनीतिक दबाव बना रखा था जिससे वहां की जनता साई के शासन से तंग आकर चीन समर्थित सरकार के पक्ष में चली जाये। लेकिन उसकी यह नीति काम नहीं आई और साई की पार्टी उम्मीद से ज्यादा मतों से जीतकर सत्ता पर फिर काबिज हो गई है। उल्लेखनीय है कि साई की पार्टी हांगकांग में लोकतंत्र की मांग वाले आंदोलन का समर्थन करती है। इसलिए साई की जीत को चीन के लिए दोहरा झटका माना जा रहा है। हांगकांग के लोकतंत्र समर्थकों ने भी साई की जीत का स्वागत किया है।
पता हो कि, चीन इस द्वीपीय क्षेत्र को अपना हिस्सा मानता है। जबकि ताइवान खुद को स्वायत्त देश बताता है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने पिछले साल चेतावनी दी थी कि विलय के लिए चीन ताइवान पर हमला भी कर सकता है। शनिवार को राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही 113 सदस्यीय संसद के लिए भी वोट डाले गए। वर्ष 2016 के चुनाव में 68 सीटें जीतकर डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी पहली बार सत्ता में आई थी। जबकि कुओमिनटांग पार्टी की सीटों की संख्या घट कर महज 35 रह गई थी।