खाशोगी को लेकर सऊदी अरब -अमेरिका मे फिर बढ़ा तनाव

Edited By Tanuja,Updated: 21 Oct, 2018 11:25 AM

conflict between saudi and us after khashogi murder

पत्रकार जमाल खशोगी को लेकर सऊदी अरब और अमेरिका  के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है।  एेसा पहली बार नहीं है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते बिगड़े हों। इससे पहले भी दोनों देश कई मुद्दों पर आमने-सामने हो चुके हैं।

दुबईः पत्रकार जमाल खशोगी को लेकर सऊदी अरब और अमेरिका  के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है।  एेसा पहली बार नहीं है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते बिगड़े हों। इससे पहले भी दोनों देश कई मुद्दों पर आमने-सामने हो चुके हैं। सऊदी अरब मध्य एशिया में लंबे समय से अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी रहा है।  दोनों देशों ने 1940 में अपने कूटनीतिक रिश्ते कायम किए थे। यह द्वितीय विश्व युद्ध का शुरुआती दौर था।
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14 फरवरी 1945 को अमेरिका और सऊदी अरब ने अपने सहयोग को एक समझौते के जरिए नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। तब सऊदी अरब के किंग अब्देल अजीज बिन सऊद और अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट के बीच स्वेज नहर में क्रूजर यूएसएस क्विंसी के बोर्ड पर ऐतिहासिक मुलाकात हुई थी। उस दौरान हुए समझौते के तहत अमेरिका ने सऊदी किंगडम को सुरक्षा की गारंटी दी और इसके बदले में अमेरिका को सऊदी अरब में तेल भंडारों तक विशेष पहुंच हासिल हुई। इन विशाल तेल भंडारों की खोज पिछली सदी के तीसरे दशक में हुई थी। तभी से अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्ते स्थिर तरीके से आगे बढ़ते रहे। जब अगस्त 1990 में इराकी शासक सद्दाम हुसैन ने कुवैत पर हमला किया तब रियाद ने लाखों अमेरिकी सैनिकों को सऊदी अरब में तैनात होने की इजाजत दी।
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अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना ने सद्दाम को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए 1991 में खाड़ी युद्ध शुरू किया तो सऊदी अरब ही साझा सेना का सैन्य बेस था। इराक युद्ध के बाद भी गठबंधन सेना ने सऊदी अरब में लड़ाकू विमानों की तैनाती जारी रखी। यह सब दक्षिणी इराक में नो फ्लाई जोन बनाए रखने के लिए किया गया। इससे सऊदी अरब के कट्टरपंथी तत्व अमेरिका से नाराज हुए। इसका नतीजा यह हुआ कि इन तत्वों ने नौवें दशक के मध्य में सऊदी अरब की धरती पर दो अमेरिका विरोधी हमले किए। 11 सितंबर 2001 की आतंकी घटना ने अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्तों को तगड़ा झटका दिया।
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इस हमले में 19 विमान अपहर्ता शामिल थे। इनमें से 15 सऊदी अरब के नागरिक थे। सऊदी अरब ने इन हमलों की निंदा की, लेकिन उस पर यह आरोप भी लगे कि वह इस्लामिक चरमपंथी तत्वों को चोरी-छिपे पैसे उपलब्ध करा रहा है। 2001 के अंतिम दिनों में रियाद ने अफगानिस्तान के खिलाफ अमेरिकी हमलों में शामिल होने से भी इन्कार कर दिया। इसके बाद उसने 2003 के इराक युद्ध में भी भाग नहीं लिया। हालांकि इसके बावजूद अमेरिका ने एक बार फिर सद्दाम के खिलाफ हवाई हमलों के लिए सऊदी अरब की धरती का इस्तेमाल किया। इराक युद्ध के बाद अमेरिका ने ज्यादातर अपने सैनिकों को सऊदी अरब से निकाल कर कतर में तैनात कर दिया। कतर ही खाड़ी में अमेरिका के एयर ऑपरेशन का मुख्यालय है। इस फैसले के बावजूद का सहयोग कायम रहा।

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