कोरोना की मार ने बदल दी भारत की 16 साल पुरानी नीति, चीन से वैक्सीन खरीदने को तैयार

Edited By Tanuja,Updated: 29 Apr, 2021 11:08 AM

first policy shift in 16 yrs india open to foreign aid ok to buying from china

कोरोना महामारी पिछले एक साल से पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। 2020 के मुकाबले इस साल भारत में हालात अधिक खराब हैं महामारी के प्रकोप के चलते भारत की ...

इंटरनेशनल डेस्कः कोरोना महामारी ने पिछले एक साल से पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। 2020 के मुकाबले इस साल भारत में  हालात अधिक खराब हैं।  महामारी के प्रकोप  के चलते भारत की  स्वास्थ्य व्यवस्था लड़खड़ा गई  है। अस्पताल ऑक्सीजन, दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की कमी का सामना कर रहे हैं।  बिगड़ते हालात पर काबू पाने के लिए  भारत ने विदेशी सहायता प्राप्त करने की अपनी नीति में 16 साल बाद बड़ा बदलाव किया है। इस बदलाव के बाद उसने विदेश से मिलने वाले उपहार, दान एवं सहायता को स्वीकार करना शुरू किया है। साथ ही चीन से भी चिकित्सा उपकरण खरीदने का फैसला किया है। 

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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी की मार के चलते  भारत को अब चीन से ऑक्सीजन से जुड़े उपकरण एवं जीवन रक्षक दवाएं खरीदने में कोई 'समस्या' नहीं है। वहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान ने  भी भारत को मदद की पेशकश की है। जहां तक पाकिस्तान से सहायता हासिल करने का सवाल है, तो भारत ने इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं किया है। सूत्र ने बताया कि राज्य सरकारें विदेशी एजेंसियों से जीवन रक्षक दवाएं खरीद सकती हैं, केंद्र सरकार उनके रास्ते में नहीं आएगी। महामारी की मार झेल रहे भारत की मदद के लिए करीब 20 देश आगे आए हैं। भूटान ने ऑक्सीजन की आपूर्ति करने की पेशकश की है। इस समय अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, आयरलैंड, बेल्जियम, रोमानिया, लक्जमबर्ग, पुर्तगाल, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया, भूटान, सिंगापुर, सऊदी अरब, हांगकांग, थाइलैंड, फिनलैंड, स्विटजरलैंड, नार्वे, इटली और यूएई मेडिकल सहायता भारत भेज रहे हैं। 

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भारत अपनी उभरते ताकतवर देश और अपनी आत्मनिर्भर छवि पर जोर देता आया है। 16 साल पहले मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने विदेशी स्रोतों से अनुदान एवं सहायता न लेने का फैसला किया था। इससे पहले, भारत ने उत्तरकाशी भूकंप (1991), लातूर भूकंप (1993), गुजरात भूकंप (2001), बंगाल चक्रवात (2002) और बिहार बाढ़ (2004) के समय विदेशी  सरकारों से सहायता स्वीकार की थी। 16 साल बाद विदेशी सहायता हासिल करने के बारे में ये निर्णय नई दिल्ली की रणनीति में बदलाव है।  दिसंबर, 2004 में आई सुनामी के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घोषणा की  कि हम खुद से इस स्थिति का सामना कर सकते हैं। यदि जरूरत पड़ी तो हम उनकी मदद लेंगे।

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मनमोहन सिंह के इस बयान को भारत की आपदा सहायता नीति में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा गया। इसके बाद आपदाओं के समय भारत ने इसी नीति का पालन किया। वर्ष 2013 में आई केदारनाथ त्रासदी और 2005 के कश्मीर भूकंप और 2014 की कश्मीर बाढ़ के समय भारत ने विदेशी सहायता लेने से साफ इनकार कर दिया। वर्ष 2018 में केरल में आई बाढ़ के समय भी भारत ने विदेशों से कोई सहायता स्वीकार नहीं की थी। केरल सरकार ने केंद्र को बताया कि यूएई ने 700 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देने की पेशकश की , लेकिन केंद्र सरकार ने किसी भी तरह की विदेशी सहायता लेने से इनकार कर दिया। 

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बता दें कि भारत में देश में कोरोना की दूसरी लहर हर दिन नए रिकॉर्ड बना रही है। पिछले कई दिनों से साढ़े तीन से ज्यादा नए कोरोना मरीज मिल रहे हैं।  देश में पिछले 24 घंटे में 3.79 नए केस सामने आए हैं। वहीं 24 घंटे में 3645 लोगों की मौत हो गई। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में एक दिन में 3,79,257 नए केस आए हैं जिससे देश में अब कोरोना संक्रमितों की संख्या 1,83,76,524 तक पहुंच गई है। वहीं मृतकों का आंकड़ा भी 2,04,832 तक पहुंच गया है।

 

 

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