रूस ने यूक्रेन से छीना था क्रीमिया, क्या... POK में भारत भी यही कर सकता है?

Edited By Ashish panwar,Updated: 17 Jan, 2020 07:19 PM

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कुछ दिन पहले ही, नए सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवाणे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि, सरकार अगर कहे तो, सेना पीओके पर कार्रवाही करने को तैयार है। यह बयान देकर उन्होने भारतीय सैन्य क्षमता को भी बताया था। जनरल नरवाणे से जब पीओक के संबंध में सवाल...

इंटरनेशनल डेस्कः कुछ दिन पहले ही, नए सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवाणे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि, सरकार अगर कहे तो, सेना पीओके पर कार्रवाही करने को तैयार है। यह बयान देकर उन्होने भारतीय सैन्य क्षमता को भी बताया था। जनरल नरवाणे से जब पीओक के संबंध में सवाल पूछा गया तो उन्होंने साफ कहा कि, संसद के प्रस्ताव के अनुसार पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और संसद जब कभी आदेश देगी, भारतीय सेना पीओके को भारत में शामिल करने के लिए उचित कार्रवाई करेगी।

 

सेना अध्यक्ष के इस बयान के बाद पीओके को लेकर एक बार फिर चर्चा गरम हो गई है। इससे पहले नरेंद्र मोदी सरकार कई बार यह संकेत दे चुकी है कि वह पीओके को भारत में मिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद भी यह कहा था कि पीओके को लेकर आज भी उनके दिल में कसक है। अब सवाल यह है कि, क्या पीओके को लेकर मोदी सरकार गुपचुप किसी योजना पर काम कर रही है? यह सवाल पहले भी कई बार उठ चुका है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह होगा कैसे? क्या सरकार के पास इस योजना के लिए कोई रोडमैप है? सरकार की क्या योजना है, यह हम नहीं जानते। हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने बीते दिनों एक टीवी चैनल पर चर्चा के दौरान यह पूछे जाने पर कि पीओके को भारत में कैसे मिलाएंगे, उन्होंने कहा था, केंद्र सरकार का जो भी ‘प्लान ऑफ एक्शन’ है, उसे टीवी डिबेट में नहीं बताया जा सकता है। अमित शाह ने कहा कि ये सब देश की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दे हैं, जिन्हें ठीक उसी तरह से निबटा देना चाहिए, जैसे अनुच्छेद 370 के साथ किया गया। लेकिन इस संबंध में भारत क्या रूस से कुछ सीख ले सकता है।

 

गौरतलब है कि, लगभग 6 वर्ष पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दृढ इच्छाशक्ति दिखाते हुए ‘इतिहास की गलतियों’ को ‘सुधारा’ और अपनी सैन्य शक्ति का इस्तेमाल करते हुए क्रीमिया को रूस का हिस्सा बना लिया। हालांकि दुनिया के बहुत से देशों, विशेषकर पश्चिमी देशों ने इस मुद्दे पर रूस का विरोध किया, रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए जो आज तक जारी हैं, लेकिन रूस ने अपने ‘राष्ट्रीय हितों’ से कोई समझौता नहीं किया। क्या हम भी ऐसा कर सकते है। सरकार की रणनीति जो भी हो, पर भारत रूस के क्रीमिया प्रकरण से बहुत कुछ सीख सकता है। क्योंकि क्रीमिया और रूस की तुलना अगर आप पीओके और भारत से करेंगे तो दोनों में बहुत अंतर होने के बाद भी बहुत सी समानताएं हैं। क्रीमिया वर्ष 2014 से ही सुर्खियों में आया जब रूस ने यूक्रेन से छीन कर अपना हिस्सा बना लिया, लेकिन यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि वर्ष 1954 तक क्रीमिया रूस का ही हिस्सा था। 1954 में तत्कालीन सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता निकिता खु्रश्चेव ने क्रीमिया को यूक्रेनी-रूसी मैत्री और सहयोग के एक तोहफे के तौर पर इसे यूक्रेन को सौंप दिया था। अधिकांश रूसी मानते हैं कि खु्रश्चेव ने यह बहुत बड़ी गलती की थी और 2014 में रूस ने 60 साल पुरानी यह भूल सुधार लीं।

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