भारत मुक्त और संतुलित हिंद-प्रशांत क्षेत्र चाहता है: जयशंकर

Edited By shukdev,Updated: 09 Sep, 2019 05:57 PM

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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि भारत सुरक्षित समुद्रों से जुड़ा एक मुक्त, समावेशी और संतुलित क्षेत्र चाहता है जो व्यापार एवं निवेश से समन्वित हो तथा जहां कानून का शासन हो। जयशंकर ने बदलते विश्व के समक्ष आ रही चुनौतियों का सामना करने के...

सिंगापुर: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि भारत सुरक्षित समुद्रों से जुड़ा एक मुक्त, समावेशी और संतुलित क्षेत्र चाहता है जो व्यापार एवं निवेश से समन्वित हो तथा जहां कानून का शासन हो। जयशंकर ने बदलते विश्व के समक्ष आ रही चुनौतियों का सामना करने के लिए सिंगापुर से सहयोग की अपील की। रणनीतिक महत्व के हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश करने के बीच उनकी यह टिप्पणी आई है।

‘भारत सिंगापुर:रणनीतिक साझेदारी का अगला चरण' के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा, ‘एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनाने के लिए वर्चस्व रखने वाली कोई शक्ति नहीं है लेकिन राष्ट्रों के बीच एक वैश्विक समझौता भी नहीं है। आज अंतरराष्ट्रीय स्थिति दबाव में है।' उन्होंने कहा कि भू-राजनीति में न सिर्फ चीन का उदय हो रहा है और अमेरिका एवं चीन के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा हो रही है बल्कि इसी समय कई अन्य देश भी उभर रहे हैं तथा एशियाई सदी की चुनौतियों से निपटना अभी बाकी है। 

उन्होंने कहा, ‘हम इसके बदले में बहुपक्षवाद देख सकते हैं। पिछले 50 बरसों में जो संस्थान स्थापित हुए थे उनके प्रभावी होने के बारे में सवालिया निशान हैं।'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि का उल्लेख करते हुए जयशंकर ने कहा,‘हम सुरक्षित समुद्रों से जुड़े एक खुले, समावेशी और संतुलित क्षेत्र चाहते हैं जो व्यापार एवं निवेश में मददगार हो तथा जहां कानून का शासन हो। साथ ही, वह आसियान की एकजुटता पर टिका हो और पूर्वी एशिया सम्मेलन उसका मुख्य मंच हो।'

सिंगापुर के साथ भारत के संबंधों का उल्लेख करते हुए जयशंकर ने कहा कि जब हम अपने संबंधों के समकालीन चरण में एक साथ आए, उस वक्त दुनिया बदल रही थी और भारत बदल रहा था। दोनों बदलावों को एक दूसरे के लिए कुछ करना था। उन्होंने कहा,‘उस वक्त भारत भुगतान संतुलन के गंभीर संकट का सामना कर रहा था और आर्थिक सुधार की कगार पर खड़ा था। तब दुनिया बदल रही थी और शीत युद्ध का अंत हो रहा था।'उन्होंने कहा,‘हमारे पास पूर्व की ओर देखो नीति थी। फिर सिंगापुर भारत की वृद्धि और विकास में एक अहम साझेदार बन गया। वह इस क्षेत्र के लिए एक संपर्क भी बन गया।'

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