Edited By Isha,Updated: 21 Jul, 2018 02:39 PM
पाकिस्तान में आम चुनाव 25 जुलाई को होने है। इससे पहले सभी पार्टिया लोगों को लुभाने के लिए दांव-पेच लड़ा रही है।वहीं लाहौर की गलियों में कीमा वाला नान की हमेशा डिमांड रहती है, लेकिन चुनावी दौर में उनका कारोबार ठप पड़ जाता है।
लाहौरः पाकिस्तान में आम चुनाव 25 जुलाई को होने है। इससे पहले सभी पार्टिया लोगों को लुभाने के लिए दांव-पेच लड़ा रही है।वहीं लाहौर की गलियों में कीमा वाला नान की हमेशा डिमांड रहती है, लेकिन चुनावी दौर में उनका कारोबार ठप पड़ जाता है। चुनाव तक नान बेचने वाले कई दुकानदारों ने घर बैठने का फैसला किया है। वजह यह है कि लोगों को लगता है कि चुनावी मौसम में राजनीतिक दल कीमा वाला नान की मुफ्त दावतें देंगे, इसलिए वे दुकान जाकर इसे नहीं खरीदते। बड़े दुकानदाराें को सियासी दलों से ही कॉन्ट्रैक्ट मिल जाते हैं।
लाहौर के कृष्णा नगर में कीमा वाला नान बेचने वाले शमी खान इससे जुड़ा 1985 का किस्सा बताते हैं। अब तक कई चुनावी अभियानों का हिस्सा बन चुके खान कहते हैं कि उस दौर में चुनाव के दिनों में इलेक्शन ऑफिस में भी जायकों की लिस्ट तय की जाती थी। नवाज शरीफ ने 1985 में पहली बार आम चुनाव के प्रचार में कदम रखा था। वे चुनाव नहीं लड़े थे, लेकिन सभाएं करते थे। हम भी उस वक्त नवाज शरीफ के साथ थे। तब कीमा वाला नान ने देश की राजनीति को पूरी तरह बदल दिया था। वोटिंग की लाइन में लगे लोगों को दोपहर करीब 3-4 बजे शरीफ के पोलिंग एजेंट कीमा वाला नान और जूस का एक पैकेट देते थे।
लाहौर के सियासी जानकार अहमद शाह कहते हैं, शरीफ के मुख्यमंत्री बनने के बाद कीमा नान बनाने वालों की मांग लाहौर में अचानक बढ़ गई थी। कृष्णा नगर, मोजांग और गवलमंडी के नान काफी ज्यादा पसंद किए जाते थे। चुनाव के वक्त दोपहर में वोट डालने वालों का हौसला बढ़ाने के लिए उन्हें नाश्ता देने की परंपरा शुरू हुई। इसे पहले नून लीग कहा जाता था। बाद में जब वोटरों को कीमा वाला नान दिया जाने लगा तो इसे चुनावी दलों ने नान लीग करार दिया।