Edited By Tanuja,Updated: 06 Jun, 2018 02:43 PM
एक शोध में इंग्लैंड की नदियों में पाई जाने वाली मछलियों को लेकर चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है । यहां की नदियों में एक-तिहाई मछलियों का सैक्स चेंज हो रहा है और नर मछलियां अंडे दे रही हैं...
ब्रिटेन: एक शोध में इंग्लैंड की नदियों में पाई जाने वाली मछलियों को लेकर चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है । यहां की नदियों में एक-तिहाई मछलियों का सैक्स चेंज हो रहा है और नर मछलियां अंडे दे रही हैं। शोध में कहा गया है कि प्रदूषण के कारण मछलियों का सैक्स बदल रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भनिरोधक गोली और एचआरटी से मादा हार्मोन नदियों में जा रहा है। इसकी वजह से नर मछली अंडे दे रही है। यह समस्या देशव्यापी है। इस शोध के सामने आने के बाद इस बात का डर है कि प्रदूषक से पीने का पानी दूषित हो सकता है, जिससे पुरुषों की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो सकती है।
पर्यावरण एजैंसी ने यह अध्ययन देश भर की 51 नदियों और धाराओं में पाई जाने वाली 1600 से अधिक मछलियों के स्वास्थ्य पर किया। कुल मिलाकर एक तिहाई नर मछलियों में मादा मछलियों के गुण दिख रहे थे। वहीं, जिन जगहों पर ट्रीटेड सीवेज का डिस्चार्ज अधिक था, उन इलाकों की करीब 80 प्रतिशत से अधिक नर मछलियों में मादा की विशेषताएं पाई गईं। जांच में पता चला है कि नर मछलियों में मादा सैक्स अंग विकसित हो रहे हैं और वे अंडे दे रही हैं। ऐसी मछली के शुक्राणु भी कम हो रहे हैं और जो शुक्राणु हैं, वे भी कम गुणवत्ता हैं।
मादा मछलियां भी इस प्रदूषण से बची नहीं हैं और वे असामान्य अंडे दे रही हैं। शोधकर्ता प्रोफेसर चार्ल्स टायलर ने कहा कि एचआरटी और गर्भनिरोधक गोलियों में पाए जाने वाले एस्ट्रोजन जैसे कंपाउंड के सूप में मछलियां तैर रही हैं। यह एक ऐसा हार्मोन है जो प्राकृतिक रूप से महिलाओं द्वारा उत्पादित किया जाता है और औद्योगिक अपशिष्ट में पाया जाता है। इसे सीवेज ट्रीटमेंट की प्रक्रिया के बाद नदियों में छोड़ा जा रहा है।
एस्ट्रोजेन के प्रभाव पर अध्ययन करने वाले देश के अग्रणी प्रोफेसर टायलर ने कहा कि एस्ट्रोजेन यौगिकों का एक सूप है, जिनकी शक्तियां अलग हैं और उनके प्रभाव अलग हैं। मगर, जब ये सब मिल जाते हैं, तो वे कुछ अतिरिक्त प्रभाव डाल सकते हैं।एस्ट्रोजेन का यह सूप मछलियों में होने वाले इन परिवर्तनों के कारण का जिम्मेदार है। यह असामान्य है। तथ्य यह है कि देश भर में हमें इतना बड़े अनुपात में अनियमितता मिली है, जो सही नहीं है। एक्सटर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने कहा कि अभी यह कहना बहुत जल्दी होगा कि ब्रिटेन की फिश लाइफ पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा।