Edited By Anil dev,Updated: 14 Apr, 2022 04:57 PM
वर्षों के वित्तीय और आर्थिक कुप्रबंधन ने श्रीलंका को कंगाल कर दिया है जिसका खामियाजा अब देश की जनता को भुगतना पड़ रहा है।
इंटरनेशनल डेस्क: वर्षों के वित्तीय और आर्थिक कुप्रबंधन ने श्रीलंका को कंगाल कर दिया है जिसका खामियाजा अब देश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। श्रीलंका की लोकलुभावन नीति, रासायनिक उर्वरकों पर पूर्ण प्रतिबंध जैसी गलतियों ने पिछले कई बरसों से श्रीलंका को खोखला कर डाला था। विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए श्रीलंका ने चीन से बेल्ट और रोड परियोजना के तहत भी बड़ा कर्जा लिया जो अब उसके गले की फांस बन चुका है। कुल मिलाकर आर्थिक संकट के लिए श्रीलंका को चीन की दोस्ती भी भारी पड़ी है।
चीन कंपनी को मजबूरन पट्टे पर दे दी बंदरगाह
जानकारी के मुताबिक दक्षिणी श्रीलंका में एक बंदरगाह निर्माण के लिए उसे 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्जा चुकाना था। ऐसा न कर पाने की स्थिति में श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह को 99 वर्षों के लिए एक चीनी कंपनी को सुविधा पट्टे पर देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। भारत, जापान, और अमेरिका की तमाम सलाहों के बावजूद श्रीलंका ने साफ इंकार कर दिया कि उसके बंदरगाहों का इस्तेमाल किसी भी सैन्य उद्देश्य के लिए किया जा सकता है। पिछले कुछ सालों में श्रीलंका ने आर्थिक और राजनीतिक मोर्चों पर कई गलतियां की हैं, जिन्होंने देश को दोहरे घाटे वाली अर्थव्यवस्था बना दिया है।
निर्यात योग्य वस्तुओं के उत्पादन में भारी कमी
इस समस्या के दो पहलू रहे हैं। पहला तो यह कि पिछले कुछ वर्षों में श्रीलंका ने दूसरे देशों से- खास तौर पर चीन से काफी ज्यादा मात्रा में कर्ज लिया है। इस कर्ज की शर्तें और कर्जा उतारने की किश्तें कुछ इस तरह हैं कि श्रीलंका इसके बोझ में दब सा गया है। पिछले कुछ सालों में श्रीलंका में निर्यात योग्य वस्तुओं के उत्पादन में भारी कमी आई है। राजपक्षे के तुगलकी नीतियों का इसमें बड़ा योगदान माना जाता है। चाय और चावल के उत्पादन की ही बात करें तो राजपक्षे ने 2021 में रासायनिक फर्टिलाइजर के उपयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया। नतीजा यह हुआ कि चीनी कर्जे की मार झेल रहे देश का निर्यात स्तर काफी घट गया और श्रीलंका को दोहरे घाटे वाली अर्थव्यवस्था बनने में देर नहीं लगी।
कोविड महामारी में डूब गया पर्यटन कारोबार
कोविड महामारी के चलते पर्यटन पर निर्भर श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था की हालत और लचर हो गई। फरवरी के अंत तक इसका भंडार घटकर 2.31 अरब डॉलर रह गया, जो दो साल पहले की तुलना में करीब 70 फीसदी कम है। भारत, बांग्लादेश और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने श्रीलंका की मदद करने की कोशिश तो की लेकिन कर्जा बहुत है और इससे निपटने के लिए सुधार की क्षमता और इच्छा कम है। भारत ने 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट के माध्यम से श्रीलंका और उसके लोगों की मदद करने की कोशिश की है। भारत ने बड़े पैमाने पर बिजली कटौती का सामना कर रहे देश को 2,70,000 मीट्रिक टन ईंधन की आपूर्ति भी की है। यह सराहनीय कदम हैं और मोदी की नेबरहुड फर्स्ट की नीति की गंभीरता की पुष्टि करते हैं।