Edited By Isha,Updated: 09 May, 2018 12:22 PM
ईरान के साथ 2015 में हुए परमाणु समझौते से बाहर निकलने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले से संयक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस बेहद चिंतित हैं। अपनी चिंता जाहिर करने के साथ ही उन्होंने इस समझौते को
संयुक्त राष्ट्रः ईरान के साथ 2015 में हुए परमाणु समझौते से बाहर निकलने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले से संयक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस बेहद चिंतित हैं। अपनी चिंता जाहिर करने के साथ ही उन्होंने इस समझौते को बचाए रखने के लिए सभी अन्य राष्ट्रों से इसे समर्थन देने का आह्वान किया है।ट्रंप ने कल व्हाइट हाउस में समझौते से हटने की घोषणा की और ईरान पर ‘‘उच्चतम स्तर ’’ पर आर्थिक प्रतिबंधों को फिर से बहाल करने के लिए एक ज्ञापन - पत्र पर हस्ताक्षर किए।
घोषणा के कुछ देर बाद जारी एक बयान में गुतारेस ने कहा कि वह ट्रंप की ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन ( जेसीपीओए ) से अलग होने और ईरान पर प्रतिबंध फिर से बहाल करने की घोषणा से बेहद चिंतित ’’ हैं। उन्होंने कहा , मैंने लगातार यह दोहराया है कि जेसीपीओए परमाणु अप्रसार और कूटनीति में एक बड़ी उपलब्धि को दर्शाता है और इसने क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा में योगदान दिया है। ’’यह समझौता 2015 में ईरान , चीन , फ्रांस , जर्मनी , रूस , ब्रिटेन , अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच हुआ था जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लगाए गए प्रतिबंधों की निगरानी करने के लिए सख्त प्रणाली की व्यवस्था करता है। साथ ही इसने देश के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने का रास्ता भी साफ किया था।
गुतारेस ने कहा , यह जरूरी है कि योजना के क्रियान्वयन से जुड़े सभी मुद्दों को जेसीपीओए में दी गई व्यवस्था के माध्यम से सुलझाया जाए। साथ ही उन्होंने कहा , ‘‘ समझौते और इसकी उपलब्धियों को बचाए रखने के पूर्वाग्रह के बिना ’’ जेसीपीओए से सीधे तौर पर नहीं जुड़े मुद्दों ’’ को अलग से देखा जाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने जेसीपीओए में शामिल देशों से उनकी प्रतिबद्धता को कायम रखने और अन्य सदस्य देशों से समझौते को समर्थन देने का आह्वान किया है।इस महीने की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ( आईएईए ) ने एक बयान जारी कर बताया था कि उसकी दिसंबर 2015 की बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की रिपोर्ट के मुताबिक , च्च् ईरान में 2009 के बाद से किसी तरह का परामणु हथियार विकसित करने की गतिविधियों के कोई विश्वसनीय संकेत नहीं मिले हैं। ’