Edited By Tanuja,Updated: 15 Jun, 2021 02:30 PM
अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। अफगानिस्तान के राजनेता की तल्ख टिप्पणी के बाद पाक के सुर बदले...
इस्लामाबाद: अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। अफगानिस्तान के राजनेता की तल्ख टिप्पणी के बाद पाक के सुर बदले हुए हैं और यह इससे किनारा कर रहा है। शांति वार्ता में आई रुकावट और बढ़ते तालिबानी हमलों के मद्देनजर पाकिस्तान ने ये साफ कर दिया है कि वो किसी भी तरह की कोई जिम्मेदारी इसके लिए नहीं लेगा। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने पाक-अफगान डायलॉग के दौरान संबोधित करते हुए कहा कि यदि पाकिस्तान पर अफगानिस्तान में शांति वार्ता में बाधा पहुंचाने या उसको खराब करने का आरोप लगाएगा तो पाकिस्तान कभी इसकी जिम्मेदारी नहीं लेगा।
खुद को अफगान-तालिबन शांति वार्ता का मुख्य सूत्रधार मानने वाला पाकिस्तान अब शांति वार्ता में रोड़ा बनता नजर आ रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी जल्द ही अमेरिका के दौरे पर जाने वाले हैं जिसमें उनके साथ उनके करीबी लोग शामिल होंगे। ये दौरा अफगानिस्तान शांति वार्ता के लिए काफी अहम माना जा रहा है। इस दौरे से पहले ही कुरैशी ने राष्ट्रपति गनी को इस दौरे की शुभकामनाएं तो दी लेकिन साथ ही ये भी कहा कि वो यदि शांति वार्ता में रुकावट के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को दोषी ठहराया या उस पर इसकी जिम्मेदारी थोपने की कोशिश की तो पाकिस्तान किसी भी तरह की कोई मदद नहीं करेगा।
पाक-अफगान डॉयलॉग में उन्होंने कहा कि अफगान शांति वार्ता के लिए पाकिस्तान पूरी तरह से ईमानदार और गंभीर है। अब पाकिस्तान पर आरोप लगाने बंद होने चाहिए, ये बहुत हो चुका है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने इस संवाद में अफगान शांति वार्ता के टूटने या रुकने का ठीकरा इशारों ही इशारों में अफगानिस्तान पर ही फोड़ दिया है। उनका कहना है कि अफगानिस्तान को ये तय करना था कि वो कैसे देश को आगे ले जा सकते हैं इसके लिए उसको ही सही लोगों का चयन भी करना था। अफगानिस्तान को एक ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो तालिबान से सफलतापूर्वक बात कर उसे किसी अंजाम तक ले जा सके और देश में शांति बहाल कर सके न कि सत्ता में बने रहने के लिए चिंतित होता रहे।
कुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान अफगानिस्तान का सहयोगी बनना चाहता है और साथ ही वो अमेरिका के साथ आतंकवाद के खिलाफ सहयोग भी देना चाहता है, लेकिन इसकी कीमत पाकिस्तान ने अपने जवानों को खोकर, मस्जिदों में हुए बम धमाकों और पाकिस्तान की लगातार गिरती अर्थव्यस्था से चुकानी पड़ी है। उनके मुताबिक वो पाकिस्तान के एक चुने गए नुमाइंदे हैं और वो पाकिस्तान में तालिबानीकरण को नहीं देखना चाहते हैं। इससे ज्यादा और क्या कहा जा सकता है। इस मौके पर उन्होंने साफ कर दिया कि पाकिस्तान अफगानिस्तान के अंदरूणी मामलों में दखल नहीं देगा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान किसी का भी पसंदीदा नहीं है। हर जगह एक धारणा ये बनी हुई है कि पाकिस्तान तालिबान को समर्थन देता है लेकिन वो खुद उसके नुमांइदे नहीं हैं। वो पाकिस्तान के नुमांइदे हैं।