Edited By Tanuja,Updated: 10 Apr, 2021 02:54 PM
पाकिस्तान का तुर्की प्रेम व उसकी मंशा पाकिस्तान के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल नदीम रज़ा के तुर्की दौरे के बाद एक बार फिर खुल कर सामने आ गई है....
इंटरनेशनल डेस्कः पाकिस्तान का तुर्की प्रेम व उसकी मंशा पाकिस्तान के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल नदीम रज़ा के तुर्की दौरे के बाद एक बार फिर खुल कर सामने आ गई है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जनरल नदीम रज़ा के तुर्की दौरे के बाद यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान परमाणु हथियार विकसित करने और अफगानिस्तान को नियंत्रित करने के लिए तुर्की की मदद कर रहा है। जनरल नदीम रज़ा ने 27 मार्च से 2 अप्रैल तक तुर्की का दौरा किया। इस दौरान तुर्की के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ जनरल यासर गुलर ने 30 मार्च को तुर्की जनरल स्टाफ मुख्यालय में रजा की मेजबानी की, जहां दोनों पक्षों ने कई सैन्य परियोजनाओं और मौजूदा भू-राजनीतिक मुद्दों पर सहयोग पर चर्चा की।
इस दौरान गुलर ने पाकिस्तान-तुर्की रक्षा संबंधों को बढ़ावा देने के लिए रज़ा को तुर्की के शीर्ष सैन्य पुरस्कार "लीजन ऑफ मेरिट" प्रदान किया। हालांकि पुरस्कार समारोह को सैन्य संबंधों को बढ़ाने को यात्रा के आधिकारिक कारणों के रूप में उद्धृत किया गया लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तविक कारण पूरी तरह से अलग हो सकता है। अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि इस यात्रा का सबसे बड़ा एजेंडा अफगानिस्तान में तुर्की और पाकिस्तान के आपसी हितों को आगे बढ़ाते हुए एर्दोआन के खलीफा अभियान को देश में विस्तारित करना था। बैठक के दौरान हुई चर्चाओं से पता चलता है कि पाकिस्तान चाहता है कि तुर्की की सेनाएं नाटो और अमेरिकी सेनाओं की जगह ले लें क्योंकि अफगान शांति प्रक्रिया और इंट्रा अफगान वार्ता के बीच सेना की वापसी होने की उम्मीद है।
रिपोर्टों के अनुसार दोनों देशों के अधिकारियों के बीच अफगानिस्तान चर्चा का केंद्रीय मुद्दा था। इसके अलावा पाकिस्तान ने यह भी बताया कि हक्कानी नेटवर्क (HQN) की मदद से यह पहले ही तालिबान को समझाने में कामयाब रहा है कि वह तुर्की सेना को अपनी तैनाती जारी रखने के साथ-साथ अफगानिस्तान में और अधिक सेना भेजने के लिए अनुमति दे।जनरल रज़ा ने अफगानिस्तान में तुर्की सशस्त्र बलों की तैनाती पर चर्चा के लिए तुर्की के रक्षा मंत्री हुलसी अकार से भी मुलाकात की और उन्हें पाकिस्तान की ओर से हर संभव मदद का आश्वासन दिया। दोनों देशों ने तुर्की के लिए अफगानिस्तान में अधिक अनुकूल वातावरण बनाने के लिए अल-कायदा, इस्लामिक स्टेट और एचसीएन जैसे आतंकी संगठनों का कुशलता से उपयोग करने पर भी विचार-विमर्श किया। तुर्की की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार हालांकि जनरल रज़ा 27 मार्च को तुर्की पहुंचे लेकिन उनकी आधिकारिक ’यात्रा 29 मार्च से शुरू हुई।
माना जाता है कि शुरुआती दो दिनों के दौरान उन्होंने अफगानिस्ता क्षेत्र में देश की शक्तिशाली स्थिति सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत योजना बनाने के लिए तुर्की के शीर्ष अधिकारियों के साथ गुप्त बैठकें कीं। इस दौरान रक्षा विशेषज्ञों ने तुर्की पर सीरिया से अफगानिस्तान भागने वाले इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों को तैनात करने पर अपनी आशंका व्यक्त की है। उम्मीद है कि सीरिया में आधारित आतंकवादियों की घुसपैठ के साथ देश में इस्लामिक स्टेट मजबूत हो जाएगा। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार अब तक यहां पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई द्वारा तैनात पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संस्थाओं के कैडरों द्वारा आंतकी कैंप चलाए जा रहे थे लेकिन अब एक नए पैटर्न का उदय हो सकता है जिसमें पाकिस्तानी संगठनों के साथ-साथ इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी भी एक साथ काम कर सकते हैं।
रजा की यात्रा का उद्देश्य पाकिस्तान की महत्वाकांक्षी अफगानिस्तान योजना में तुर्की की मदद करने के अलावा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के एक हिस्से के रूप में तुर्की को शामिल करना और तीनों के बीच गठबंधन बनाने में तेजी लाना भी बताया जा रहा है। कथित तौर पर, पाकिस्तान पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान विकसित करने में सहयोग के लिए तुर्की और चीन के साथ समन्वय कर रहा है। पाकिस्तान और तुर्की के बीच गहराती नापाक दोस्ती पर ग्रीस के विशेषज्ञों ने भारत को भी चेतावनी दी है।
यूनानी विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान परमाणु बम और मिसाइल तकनीक को तुर्की को ट्रांसफर कर रहा है। इ विशेषज्ञों ने कहा कि पाकिस्तान और तुर्की के बीच इस दोस्ती से ग्रीस और भारत में आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। ग्रीस के अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ प्रफेसर जॉन नोमिकोसका कहना है कि तुर्की-पाकिस्तान की सांठगांठ भारत और ग्रीस के लिए बड़ा खतरा बन गई है । तुर्की, पाकिस्तानी और चीनी खुफिया एजेंसियां जम्मू-कश्मीर में अस्थिरता फैलाने के लिए एकसाथ मिलकर काम कर रही हैं।