तालिबान का जन्मदाता है पाकिस्तान, अफगानिस्तान से दुश्मनी करीब 74 साल पुरानी

Edited By vasudha,Updated: 09 Sep, 2021 09:51 AM

pakistan is the birthplace of taliban

तालिबान की नींव ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान अफगान-पाकिस्तान की शत्रुता पर रखी गई है, अगर तथ्यों का विश्लेषण करें तो एक तस्वीर सामने आती है कि तालिबान को जन्म देने वाला पाकिस्तान ही है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान की दुश्मनी करीब 74 साल पुरानी है।...

इंटरनेशनल डेस्क:  तालिबान की नींव ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान अफगान-पाकिस्तान की शत्रुता पर रखी गई है, अगर तथ्यों का विश्लेषण करें तो एक तस्वीर सामने आती है कि तालिबान को जन्म देने वाला पाकिस्तान ही है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान की दुश्मनी करीब 74 साल पुरानी है। अफगानिस्तान ने डूरंड लाइन को अंतरराष्ट्रीय सीमा के तौर पर मान्यता नहीं दी है। अफगानिस्तान पाकिस्तान से लगी सीमा और सिंधु नदी तक के कुछ इलाकों पर अपना दावा करता रहा है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद की जड़ 19वीं सदी से ही है। ब्रिटिश सरकार ने भारत के उत्तरी हिस्सों पर नियंत्रण मजबूत करने के लिए 1893 में अफगानिस्तान के साथ 2640 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा खींची थी। ये समझौता ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन विदेश सचिव सर मार्टिमर डूरंड और अमीर अब्दुर रहमान खान के बीच काबुल में हुआ था। इसी लाइन को डूरंड लाइन कहा जाता है। यह पश्तून इलाके से गुजरती है। इसी दुश्मनी के कारण तालिबान को सता दिलाने के लिए पाकिस्तान ने तालिबानियों के साथ साजिशें कर अफगानों को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया।

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1970 से तालिबानियों का साथ दे रहा है पाकिस्तान  
ऐसा माना जाता है कि अफगानिस्तान के खून से लथपथ इतिहास में पाकिस्तान की सक्रिय भूमिका 1970 के दशक की है जब उसने काबुल में मोहम्मद दाऊद खान की सरकार के विरोध में इस्लामवादियों का समर्थन करना शुरू किया था। 1990 के दशक के मध्य में अपने तालिबान पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। कंधार में संगठन की स्थापना के समय आई.एस.आई. ने मुल्ला उमर को समर्थन प्रदान किया था। पाकिस्तान ने 1980 के दशक में अपने एक प्रशिक्षण शिविर में सोवियत कब्जे के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले मुजाहिदीन उमर को पहले भी प्रशिक्षित किया था।तालिबान ने वादा किया था कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पश्तून क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा बहाल करेंगे और एक बार सत्ता में आने के बाद शरिया, या इस्लामी कानून के कठोर संस्करण को लागू करेंगे।

 

पाक की साजिश ने गिराई अफगानिस्तान की सत्ता
जानकारों का मानना है कि अफगानिस्तान में सत्ता हथियाने के लिए तालिबान की सहायता करने में पाकिस्तान की भूमिका रही है। अफगानिस्तान में भेजे गए पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रशिक्षित आतंकवादियों की पहचान के खुलासे के बाद अब यह स्पष्ट हो चुका। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान ने घायल लश्कर-ए-तैयबा और अन्य आतंकियों के लिए अस्थायी अस्पताल भी स्थापित किए। पाकिस्तान के अलग-अलग जिलों से सेना द्वारा युवकों को तालिबान के युद्ध मिशन में शामिल होने के लिए मजबूर करने की खबरें भी आती रही हैं। अफगानिस्तान पर जब तालिबान का नियंत्रण था तब पाकिस्तान दुनिया के उन तीन देशों में शामिल था जिसने तालिबान सरकार को मान्यता दी थी। पाकिस्तान के अलावा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने भी तालिबान सरकार को स्वीकार किया था।

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तालिबानियों की शिक्षा पाकिस्तानी मदरसों में
पाकिस्तान ने बार-बार इस बात से इनकार किया है कि वह तालिबान की सत्ता का सूत्रधार था, जबकि कई अफगान जो शुरू में आंदोलन में शामिल हुए थे, उनकी शिक्षा पाकिस्तान के मदरसों में हुई थी। पाकिस्तान तालिबानी नेतृत्व और उनके परिवारों के लिए सुरक्षित पनाह देने बहुत आगे निकल गया था। इसमें प्रशिक्षण, हथियार, विशेषज्ञ और धन उगाहने में मदद शामिल थी। ऐसे पाकिस्तानी सलाहकार तालिबान के साथ अफगानिस्तान के भीतर मिशन पर जाते थे। आई.एस.आई. विशेष रूप से तालिबान में हक्कानी नेटवर्क के करीब है।

 

भारत के सामने ऐसे पैदा हो सकती है विकट परिस्थिति
हाल के वर्षों में पाकिस्तान और भारत के रिश्तों में आई तल्खी का असर सार्क पर भी सीधा पड़ा है। कोविड महामारी के दौरान भी भारत ने सार्क देशों को एक मंच पर लाने की कोशिश की थी। अफगानिस्तान को लेकर जो संशय सार्क के सामने खड़ा होगा, वही संयुक्त राष्ट्र के सामने भी होगा। तालिबान का अतीत काफी हिंसक रहा है। मानवाधिकारों के संगीन उल्लंघन, आत्मघाती हमलावर और कई तरह के हमलों में शामिल होने के कारण स्थिति जटिल हो गई है। संयुक्त राष्ट्र ने भी अपने सभी कर्मचारियों को वापस बुला लिया है और सारी गतिविधियां बंद कर दी हैं। भारत के लिए चुनौती तब पेश होगी, जब पाकिस्तान तालिबान को प्रतिनिधि के तौर पर आमंत्रित करने के लिए अड़ जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस लाइन पर सार्क में बड़ी जटिल स्थिति पैदा हो सकती है।

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पाकिस्तान और तालिबान ने मना रहा है जीत का जश्न
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने काबुल में तालिबान के कब्जे को तालिबान लड़ाकों द्वारा पश्चिम की 'गुलामी के बंधनों को तोड़ना' करार दिया है। इमात-ए-इसियामी (जेयूआई-एफ) पार्टी के नेता मौलाना फजलुर रहमान ने अफगान तालिबान के प्रमुख मुल्ला हैबतुल्ला अखुंदजादा को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्हें जीत की बधाई दी गई। दूसरी सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के नेता और एक पूर्व सीनेटर सिराज-यू-हक ने भी तालिबान की वापसी पर खुशी व्यक्त की।

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