शिक्षा के हक के लिए लड़ती जांबाज मलाला

Edited By Anil dev,Updated: 11 Jul, 2018 06:23 PM

pakistan malala yusufzai education bbc

परंपरागत लिबास और सिर पर दुपट्टा, देखने में वह अपनी उम्र की अन्य लड़कियों जैसी ही लगती है, लेकिन दृढ़ निश्चय से भरी आंखें, कुछ कर गुजरने का हौंसला और किसी भी ज्यादती के सामने न झुकने का उसका जज्बा उसे औरों से बहुत अलहदा, बहुत बहादुर, बहुत जहीन बनाता...

नई दिल्ली: परंपरागत लिबास और सिर पर दुपट्टा, देखने में वह अपनी उम्र की अन्य लड़कियों जैसी ही लगती है, लेकिन दृढ़ निश्चय से भरी आंखें, कुछ कर गुजरने का हौंसला और किसी भी ज्यादती के सामने न झुकने का उसका जज्बा उसे औरों से बहुत अलहदा, बहुत बहादुर, बहुत जहीन बनाता है। यह है सबसे कम उम्र में नोबल पुरस्कार हासिल करने वाली पाकिस्तान की मलाला युसुफजई। दूसरे महायुद्ध के दौरान हिटलर की सेना से छिपने छिपाने के दौरान डायरी लिखने वाली बारह-तेरह साल की एनी फ्रैंक की ही तरह मलाला भी लगभग इसी उम्र में पाकिस्तान के खूबसूरत इलाके स्वात में तालिबान के जुल्मों की दास्तान बीबीसी पर ‘गुल मकई’ के छदम नाम से हर हफ्ते लिख रही थी। 

PunjabKesari
12 जुलाई 1997 को पाकिस्तान के अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के स्वात इलाके में एक शिक्षक जियादुददीन युसूफजई के यहां मलाला का जन्म हुआ। लड़कियों को स्कूल भेजने का चलन ज्यादा नहीं था, लेकिन छोटी सी मलाला अपने बड़े भाई का हाथ पकड़कर स्कूल जाती थी और खूब मन से पढ़ाई करती थी। इस बीच तालिबान ने अफगानिस्तान से आगे बढ़ते हुए जब पाकिस्तान की ओर कदम बढ़ाया तो स्वात के कई इलाकों पर कब्जा करने के बाद स्कूलों को तबाह करना शुरू कर दिया। 2001 से 2009 के बीच अंदाजन उन्होंने चार सौ स्कूल ढहा दिए। इनमें से 70 फीसदी स्कूल लड़कियों के थे। लड़कियों के बाहर निकलने और स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी गई।  तालिबान के जुल्म बढ़ते जा रहे थे और दुनिया को इस बारे में कुछ नहीं पता था। इसी दौरान बीबीसी उर्दू पर ‘गुल मकई’ ने दुनिया को तालिबान के शासन में जिंदगी की दुश्वारियां बताईं। खास तौर पर लड़कियों और महिलाओं की जिंदगी के बारे में बताया। 

PunjabKesari

डायरी जनवरी से मार्च 2009 के बीच दस किस्तों में बीबीसी उर्दू की वेबसाइट पर पोस्ट हुई और दुनियाभर में तहलका मच गया। हालांकि कुछ समय तक यह रहस्य ही बना रहा कि गुल मकई आखिर है कौन, लेकिन दिसंबर 2009 में गुल मकई की हकीकत खुलने के बाद 11 बरस की नन्ही सी मलाला तालिबान के निशाने पर आ गई।  मलाला को धमकाने और चुप कराने की जब कोई कोशिश काम न आई और देश दुनिया में मलाला की बहादुरी के चर्चे बढऩे लगे तो नौ अक्तूबर 2012 को तालिबानी दहशतगर्द उस बस में घुस गए जिसमें 14 साल की मलाला युसूफजई इम्तिहान देकर लौट रही थी। उन्होंने मलाला के सिर पर गोली मार दी। पाकिस्तान और फिर लंदन में इलाज से मलाला की जान बच गई और इस हमले पर उनके इरादों को और मजबूत कर दिया। मौत से जिंदगी की जंग जीतने के बाद मलाला खुले तौर पर दुनियाभर में बच्चों और खास तौर पर लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं के अधिकारों की पैराकार के रूप में सामने आई और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

PunjabKesari
दुनियाभर में मलाला के कार्यों और उनके विचारों को देखते हुए उन्हें 2014 में भारत के बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से नोबल पुरस्कार दिया गया। उन्होंने सबसे कम उम्र में दुनिया का यह सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार हासिल किया।  इसके अलावा उन्हें देश दुनिया के और भी कई पुरस्कारों से नवाजा गया। संयुक्त राष्ट्र ने 12 जुलाई को हर साल मलाला दिवस के तौर पर मनाने का ऐलान भी किया।  मलाला ने संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन में मलाला-दिवस को उन सभी बच्चों और महिलाओं को सर्मिपत कर दिया, जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार दुनिया में सभी के लिए हो। तालिबान और चरमपंथियों के बच्चों को तो खासतौर पर शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि वह दहशतगर्दी के अंधेरे से बाहर निकल सकें। 

PunjabKesari

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!