नजरिया: क्या फिर सैन्य शासन की अोर बढ़ रहा पाकिस्तान ?

Edited By Anil dev,Updated: 07 Jul, 2018 02:04 PM

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पाकिस्तान में वहां की संसद यानी नेशनल असेम्ब्ली के लिए इसी माह की 25 तारीख को आम चुनाव होने हैं. ऐसे में यह सवाल अटपटा जरूर लग सकता है कि हम सैन्य शासन की बात करें। लेकिन फिलवक्त पाकिस्तान के जो हालात दिखाई दे रहे हैं उनके आधार पर यह महज कयास भी...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा):  पाकिस्तान में वहां की संसद यानी नेशनल असेम्ब्ली के लिए  इसी माह की 25 तारीख को आम चुनाव होने हैं. ऐसे में यह सवाल अटपटा जरूर लग सकता है कि हम सैन्य शासन की बात करें। लेकिन फिलवक्त पाकिस्तान के जो हालात दिखाई दे रहे हैं उनके आधार पर यह महज कयास भी  नहीं हो सकता। इस बात की प्रबल सम्भावना बनती जा रही है कि पाकिस्तान फिर से फ़ौज के कब्जे में जा सकता है।  तमाम समीकरणों के बावजूद फिलवक्त वहां कोई अकेली पार्टी  सत्ता हासिल करती नहीं दिख रही।  नेशनल असेम्ब्ली में कुल 342  सीटें हैं। इनमे से नवाज शरीफ की पार्टी  मुस्लिम लीग (नवाज़) के पास अकेले 178  सीट थीं।  उनके अन्य सहयोगी दलों के पास भी 21 सीटें थीं जिसके चलते  सत्ताधारी दल के पास 342  में से 199 सीट  का बहुमत था। दूसरी तरफ पिछले चुनाव में समूचा विपक्ष बिखर गया था।   

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मुख्य विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी पीपीपी के पास महज 46 सीटें, इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए -इन्साफ के पास 34 और एम् क्यू एम् के पास 24  सीटें थीं।  उसके बाद सबसे बड़ा दल आज़ाद उम्मीदवारों का था जिनकी संख्या 11  थी।  हालांकि उसके बाद पनामा गेट में नवाज़ शरीफ के फंसने और प्रधानमंत्री पद से हटने के बावजूद इस चुनाव में उनकी पार्टी के खिलाफ कोई बड़ी लहर नहीं है। इसी तरह तमाम कोशिशों के बावजूद इमरान खान को भी वो समर्थन मिलता नज़र नहीं आ रहा जो इस्लामाबाद  की गद्दी तक पहुंचने के लिए चाहिए। बिलावल भुट्टो की हालत भी  इमरान से बेहतर नहीं है। ऐसे में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत मिलता नज़र नहीं आ रहा, जबकि चुनावी दौर अब लगभग आखिरी पखवाड़े में प्रवेश कर चुका  है।   ऐसे में  पाकिस्तान में खिचड़ी जनादेश के आसार बन रहे हैं, और  ये हालात वहाँ की सेना को  इतिहास दोहराने और सत्ता पर कब्ज़ा ज़माने के लिए सबसे मुफीद  होंगे। चूँकि इमरान खान और भुट्टो चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ ज्यादा मुखर हैं इसलिए चुनाव बाद उनमे  गठबंधन होगा इसकी सम्भावना भी क्षीण है क्योंकि इस मामले में पाकिस्तान की सियासत हिन्दोस्तान से मुख्तलिफ है। अब देखना यह है कि  इस मामले में  थलसेनाध्यक्ष  कमर  जावेद बाजवा का रुख क्या रहता है। अगर उनके मन में  भी 'मुशर्रफ' है तो फिर पाक सेना के कब्जे में गया समझो। 

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नवाज परिवार को सजा का असर 
बीते कल ही एवनफील्ड अपार्टमेंट मामले में  नवाज शरीफ परिवार को हुई सजा का भी पाकिस्तान के चुनावों पर गहरा असर  पड़ना तय है।  नवाज की बेटी मरियम के नेतृत्व में उनकी पार्टी अब तक विरोधियों पर भारी दिख रही थी। मरियम नवाज़ शरीफ  नेशनल असेम्ब्ली की लाहौर सीट नंबर 127 से चुनाव लड़ रही थीं।  चूंकि उनको भी सात साल की सजा का ऐलान हुआ है लिहाज़ा अब उनके चुनाव लड़ने पर संशय पैदा  हो गया है। इस मामले में स्थिति साफ़ होने पर ही कुछ कहा जा सकता है।  लेकिन जिस तरह से  मरियम और उनके पति कैप्टन सफदर  को भी सजा हुई है उससे पार्टी का मनोबल टूटना स्वाभाविक है। ऐसे में पार्टी के कमजोर होने से  सियासी समीकरणो  का नवनिर्मित होना लाज़मी है।  

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चुनाव पर अदालती सख्ती का साया 
पाकिस्तान की 15वीं नेशनल असेम्ब्ली के लिए होने जा रहे चुनावों पर इस बार अदालती सख्ती का असर साफ़ देखा जा सकता है। पाकिस्तान की न्यायपालिका इस बार भ्र्ष्टाचार को लेकर काफी तीखे तेवर अपमनाए हुए है। पहली बार चुनाव लड़ने वालों को  अपनी संपत्ति का  ब्यौरा देना जरूरी किया गया है।  नवाज़ शरीफ भ्र्ष्टाचार के  कारण  चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराए जा चुके हैं। उनकी जगह पी एम् बने अब्बासी का रावलपिंडी से परचा संपत्ति की सही जानकारी न देने के चलते  रद हो गया था ,हालांकि दूसरी सीट पर वे लड़ रहे हैं। इसी तरह अधूरे शपथपत्र के कारण इमरान खान  का भी एक जगह से परचा रद हो चुका है।  उधर खैवर पख्तूनवा से पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को भी अदालती पेंच के चलते  नामांकन रद होने का दंश झेलना पड़ा है।  मुशर्रफ  एक अन्य सीट से लड़ रहे हैं।  
 

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