वैज्ञानिकों का दावा- अब इंसान के शरीर में धड़केगा जानवर का दिल

Edited By Tanuja,Updated: 08 Dec, 2018 02:50 PM

scientists claim animal organ to successfully transplant in human

दुनियाभर में प्रत्यारोपण के लिए अंग पाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। कई गंभीर बीमारियों में तो अगर प्रत्यारोपण सफल न हो, तो व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। लेकिन अब चिकित्सा के क्षेत्र में वैज्ञानिकों द्वारा क्रांतिकारी कदम बढ़ाए जा रहे हैं...

सिडनीः दुनियाभर में प्रत्यारोपण के लिए अंग पाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। कई गंभीर बीमारियों में तो अगर प्रत्यारोपण सफल न हो, तो व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। लेकिन अब चिकित्सा के क्षेत्र में वैज्ञानिकों द्वारा क्रांतिकारी कदम बढ़ाए जा रहे हैं। अब वैज्ञानिक जानवरों के अंगों को इंसानों के शरीर में प्रत्यारोपित करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं।
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गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों के शरीर में सुअर का दिल लगाने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ गई है। जर्मनी के वैज्ञानिकों ने पूरे मेडिकल व विज्ञान जगत को अपने नए प्रयोग से हैरान कर दिया है। इन्होंने एक बैबून (बंदर की प्रजाति) के शरीर में सफलतापूर्वक सुअर का दिल लगा दिया। सुअर के दिल के साथ ही यह बैबून छह महीने से ज्यादा समय (195 दिन) तक जीवित रहा। वैज्ञानिकों ने इस बेहद अहम प्रयोग की सराहना की है और इसे एक मील का पत्थर बताया है।
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एक पशु के स्वस्थ दिल को दूसरी प्रजाति के शरीर में प्रत्यारोपित करने की प्रक्रिया को ‘एक्सेनाट्रांस्प्लांटेशन’ कहा जाता है। ‘नेचर जर्नल’ में प्रकाशित इस अध्ययन में माना जा रहा है कि इस प्रक्रिया से भविष्य में इंसानों को भी नया जीवन दिया जा सकेगा। प्रत्यारोपण के लिए सुअरों के जीन में बदलाव किया गया ताकि दूसरी प्रजाति के प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को दबाया जा सके। ‘जर्मन हर्ट सेंटर बर्लिन’ के डॉक्टर क्रिस्टोफ नोसाला का कहना है, ‘2030 तक अमेरिका में दिल का दौरा पड़ने के मामले 80 लाख तक पहुंच सकता है।’ जीन में बदलाव वाला सुअर इस समस्या का समाधान हो सकता है। इस तरह के शोध में पहले भी सीमित सफलता मिली थी। म्यूनिख में लुडविग-मैक्समिलियन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता बैबून को 57 दिन तक जीवित रखने में कामयाब रहे थे।
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शोधकर्ताओं ने तीन अलग-अलग समूहों पर यह प्रयोग किया। पूरे अध्ययन के दौरान 16 बैबून शामिल थे। अंतिम ग्रुप में उन्होंने प्रत्यारोपण में सफलता पाई। हृदय रोग के प्रोफेसर क्रिस्टोफर मैक्ग्रेगॉर उस अध्ययन में शामिल थे, जिसमें बैबून को 57 दिनों तक जीवित रखा गया था। उन्होंने कहा, ‘यह अध्ययन काफी अहम है। यह हमें दिल की बीमारी की समस्या को खत्म करने की राह दिखाता है।’ शोधकर्ताओं ने दिल को ऑक्सीजन पहुंचाते हुए इस लंबी प्रक्रिया को अंजाम दिया। इसके लिए उन्होंने पूरे समय अंग में रक्त परिसंचरण किया। इस वजह से बैबून का रक्तचाप कम होने के बावजूद प्रत्यारोपित अंग का आकार नहीं बढ़ा। अंतिम समूह के पांच में से चार बैबून 90 दिनों तक स्वस्थ रहे जबकि एक 195 दिनों तक सही रहा।

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