Edited By Seema Sharma,Updated: 23 Aug, 2021 11:19 AM
15 अगस्त को तालिबान के अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा करने के बाद से ही चीन और पाकिस्तान तालिबान के साथ संपर्क बढ़ाने में लगे हुए हैं। दोनों ही अल कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठनों की वापसी की आशंकाओं के बावजूद अफगानिस्तान में 20...
इंटरनेशनल डेस्क: 15 अगस्त को तालिबान के अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा करने के बाद से ही चीन और पाकिस्तान तालिबान के साथ संपर्क बढ़ाने में लगे हुए हैं। दोनों ही अल कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठनों की वापसी की आशंकाओं के बावजूद अफगानिस्तान में 20 साल से चल रहे युद्ध के बाद अमरीका की हार से खुश हैं। पाकिस्तान सरकार हालांकि दावा करती है कि वह अफगानिस्तान में किसी की पक्षधर नहीं है लेकिन यहां तालिबान की वापसी से पाकिस्तान की सरकार पूरी तरह बेफिक्र नजर आ रही है।
विशेषज्ञों ने पाकिस्तान और चीन को चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान उनके लिए भस्मासुर बन सकता है। पूर्व पाकिस्तानी राजदूत मलीहा लोधी कहती हैं कि पाकिस्तान को अपने पड़ोसी देश में शांति से सबसे ज्यादा फायदा मिल सकता है वहीं वहां संघर्ष व अस्थिरता से खोने के लिए भी उसके पास सबसे अधिक है। वह कहती हैं कि पाकिस्तान को अपनी पश्चिमी सीमा पर स्थिरता के मामले में तभी फायदा मिल सकेगा जब तालिबान प्रभावी ढंग से शासन करने, अन्य जातीय समूहों को समायोजित करने और स्थायी शांति स्थापित करने में सक्षम होगा।
लोधी कहती हैं कि अगर तालिबान ऐसा नहीं कर पाता है तो अफगानिस्तान एक अनिश्चित और अस्थायी भविष्य का सामना कर सकता है जो पाकिस्तान के हित में नहीं होगा। चीनी विश्लेषकों ने भी चीन के लिए इसी तरह की चेतावनी दी है। साऊथ चाइन मॉर्निंग पोस्ट के पूर्व प्रधान संपादक वांग जियांगवेई ने लिखा है कि अमरीका का सबसे लंबा युद्ध एक विनाशकारी विफलता के साथ समाप्त हो गया। उन्होंने कहा कि चीन को ऐसा कोई कदम उठाने से बचना होगा जिससे उसे ब्रिटेन, सोवियत संघ और अब अमरीका की तरह अफगानिस्तान में झटका झेलना पड़े। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इससे चीन को एक अधूरी रणनीतिक जीत मिली है।