गरीबी की मार- इस देश की लड़कियां पीरियड्स में करती हैं अखबार और पत्तों का इस्तेमाल

Edited By Tanuja,Updated: 23 Jul, 2018 04:31 PM

too poor for periods zimbabwe s girls rely on rags paper leaves

पैडमैन फिल्म के बाद भारत में लोग जहां माहवारी (पीरियड्स) पर खुल कर बात करने लगे हैं वहीं सरकार ने सैनिटरी नैपकिंस से  GST  हटा दिया है। लेकिन दुनिया में एक देश एेसा भी है जहां महिलाएं इसे खरीद पाने में अक्षम हैं। जिम्बाब्वे की लड़कियों  को जब...

मकौंडेः पैडमैन फिल्म के बाद भारत में लोग जहां माहवारी (पीरियड्स) पर खुल कर बात करने लगे हैं वहीं सरकार ने सैनिटरी नैपकिंस से  GST  हटा दिया है। लेकिन दुनिया में एक देश एेसा भी है जहां महिलाएं इसे खरीद पाने में अक्षम हैं। जिम्बाब्वे की लड़कियों  को जब माहवारी होती है तो वह घर में बने तकिए को फाड़कर उसमें भरे पुराने कपड़े निकालती हैं और इसका इस्तेमाल सैनिटरी नैपकिन की जगह करती हैं। वजह है देश में सैनिटरी नैपकिन की कीमत बहुत ज्यादा होना। 

जिम्बाब्वे निनवासी 15 साल की मारिया के लिए माहवारी का मतलब है स्कूल से छुट्टी लेना क्योंकि उसे भारी ब्लीडिंग होती है और पुराने कपड़े-लत्तों से बना उनका जुगाड़ वाला सैनिटरी पैड काफी नहीं होता।  मारिया के किसान माता-पिता और  उसका बॉयफ्रेंड उसको सैनिटरी नैपकिन खरीदकर देने में सक्षम नहीं हैं। इस स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि जिम्बाब्वे भारी सैनिटरी वेयर संकट से जूझ रहा है। सैनिटरी पैड्स खरीदने में अक्षम अधिकांश स्कूल जाने वाली लड़कियां इसके लिए अपने टीचर्स से मिलने वाले चंदे पर निर्भर करती हैं। इतना ही नहीं वे पुराने फटे लत्तों, पौधों और पुराने अखबारों का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं। 
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इसी साल फरवरी में सैकड़ों लड़कियों और महिलाओं ने राजधानी में इकट्ठे होकर मार्च किया। इसका नाम 'हैपी फ्लो कैंपेन' रखा गया और सरकार से ऐसे सैनिटरी वेयर की मांग की गई जिन्हें खरीदना संभव हो सके। जिम्बाब्वे की फर्स्ट लेडी ऑक्जिलिया नांगाग्वा ने गरीब महिलाओं और बच्चियों को मुफ्त सैनिटरी नैपकिन्स बांटे और अब देश में आने वाले चुनावों के मद्देनजर यह उम्मीद की जा रही है कि सैनिटरी नैपकिन का यह संकट शायद कम हो। यहां सैनिटरी नैपकिन खरीदना इसलिए चुनौती है क्योंकि अधिकतर परिवार 1 डॉलर प्रतिदिन की आय से भी कम पर जी रहे हैं।'
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उन्होंने बताया कि अगर जिम्बाब्वे में आपको सैनिटरी नैपकिन का एक पैकेट खरीदना है तो इसके लिए कम से कम 5 डॉलर चुकाने होंगे, जो अधिकांश परिवारों के वश में नहीं है। साल 2015 में जिम्बाब्वे में सैनिटरी नैपकिन का एक पैकेट 1 डॉलर में मिलता था लेकिन इसके बाद देश का में भयंकर आर्थिक संकट आ गया। जिम्बाब्वे में बीते दो सालों से कैश की भयंकर कमी है। जिम्बाब्वे में सैनिटरी नैपकिंस का उत्पादन करने वाली कंपनी क्लोविट इनवेस्टमेंट्स ने देश में 4 साल पहले ही काम बंद कर दिया था और अब देश में सैनिटरी नैपकिंस पड़ोसी देशों जैसे दक्षिण अफ्रीका से आयात किया जाता है, जिसकी वजह से कीमत काफी ज्यादा है। बीते साल नवंबर में जिम्बाब्वे की एकमात्र बची सैनिटरी वेयर बनाने वाली कंपनी ऑन्सडेल एंटरप्राइज को भी बंद करना पड़ा था क्योंकि कंपनी के पास कच्चा माल आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं थी। 

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