ट्रंप की नई नीति से 86 हजार भारतीयों की नौकरी पर संकट !

Edited By ,Updated: 28 Nov, 2016 04:14 PM

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अमरीका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगले साल जनवरी में व्हाइट हाउस में जब कामकाज संभालेंगे तो उनकी प्राथमिकताओं में एच1-बी वीजा को लेकर कड़ा रुख अपनाना शामिल होगा ...

वॉशिगंटनः अमरीका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगले साल जनवरी में व्हाइट हाउस में जब कामकाज संभालेंगे तो उनकी प्राथमिकताओं में एच1-बी वीजा को लेकर कड़ा रुख अपनाना शामिल होगा जिससे 86 हजार भारतीयों की नौकरी पर संकट मंडरा सकता है। ट्रंप वीजा के मामले में संरक्षणवादी नीति अपना सकते हैं। इस आशंका के मद्देनजर भारतीय कंपनियों ने स्थानीय अमरीकियों की भर्ती भी शुरू कर दी है। खबर है कि दिग्गज भारतीय आई.टी. कंपनियां अमरीका में अपना अधिग्रहण और कॉलेजों से नए कर्मचारियों की भर्ती में इजाफा करेंगी।

अमरीका में भारतीय आई.टी. कंपनियों का कारोबार 150 अरब अमरीकी डॉलर यानी करीब 10 लाख 28 हजार करोड़ रुपए का है। टी.सी.एस., इन्फोसिस और विप्रो जैसी कंपनियां अमरीका में एच1-बी वीजा के जरिए बड़े पैमाने पर भारत से कर्मचारियों को ले जाती रही हैं। अमरीकियों के मुकाबले अपेक्षाकृत कम वेतन के चलते कंपनियां भारतीय कम्प्यूटर इंजीनियरों को तवज्जो देती रही हैं।

2005 से 2014 के दौरान इन 3 कंपनियों में एच 1-बी वीजा पर काम करने वाले कर्मचारियों का आंकड़ा 86,000 से अधिक था। इनमें 65 हजार के करीब अस्थायी नौकरीपेशा लोग हैं जबकि 20-21 हजार अमरीका के विश्वविद्यालयों में टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में एडवांस डिग्रियां लेने जाते हैं।इस तरह अमरीका हर साल इतने लोगों को एच1-बी वीजा देता है। वीजा दिए जाने का यह काम लॉटरी सिस्टम पर आधारित होता है। ट्रंप अपने चुनाव प्रचार के दौरान कई बार अमरीकी वीजा नीति को कड़ा किए जाने की वकालत कर चुके हैं। इसके अलावा उनकी ओर से अटॉर्नी जनरल के पद के लिए चुने गए जेफ सेशन्स भी अमरीकी वीजा नीति को और सख्त किए जाने के पक्षधर हैं।

 ट्रंप के नए कदम पर अमरीका में अब भारत से जाने वाले इंजीनियरों पर काफी हद तक कमी आ सकती है। अमरीका का सिलिकॉन वैली स्थित बिजनैस भारत के सस्ते आई.टी और सॉफ्टवेयर सल्यूशंस पर निर्भर रहा है। डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन की ओर से वीजा को लेकर कड़ी नीति अपनाने पर भारतीय आईटी कंपनियां अमरीका में कम डिवैलपर्स और इंजीनियरों को ले जाएंगी, बल्कि वहीं के कॉलेजों से कैंपस प्लेसमैंट पर जोर दे सकती हैं। 

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