तुर्की के राष्ट्रपति ने उइगुर मुसलमानों को लेकर शी जिनपिंग से की बातचीत

Edited By Tanuja,Updated: 15 Jul, 2021 02:39 PM

turkey president discusses uyghurs with jinping in phone call

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयर एर्दोगन ने उइगुर मुसलमानों को लेकर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत की है। फोन पर बातचीत ...

इंटरनेशनल डेस्कः तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयर एर्दोगन ने उइगुर मुसलमानों को लेकर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत की है। फोन पर बातचीत के दौरान एर्दोगन ने जिनपिंग की नाराजगी से बचने के लिए यह भी कहा कि तुर्की चीन की राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान करता है लेकिन उइगर मुसलमान चीन के समान नागरिक के रूप में शांति से रहें। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने जिनपिंग के साथ फोन कॉल पर द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर भी चर्चा की।   एर्दोगन ने कहा कि तुर्की के लिए यह महत्वपूर्ण है कि उइगर तुर्क चीन के समान नागरिकों के रूप में समृद्धि और शांति से रहें। उन्होंने चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को लेकर तुर्की के सम्मानजनक नजरिए को भी प्रदर्शित किया।

 
एर्दोगन ने शी जिनपिंग से कहा कि तुर्की और चीन के बीच वाणिज्यिक और राजनयिक संबंधों की उच्च संभावना है। दोनों नेताओं ने ऊर्जा, व्यापार, परिवहन और स्वास्थ्य सहित कई क्षेत्रों पर चर्चाएं की। बता दें कि एशिया में भारत विरोधी गुट बनाने के लिए तुर्की पाकिस्तान और चीन को साध रहा है। ये तीनों देश रक्षा, व्यापार और कूटनीति के क्षेत्र में करीबी संबंध बना रहे हैं। यही कारण है कि तुर्की ने अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद काबुल हवाई अड्डे की जिम्मेदारी खुद उठाने का फैसला किया है।

 

पिछले साल दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि पर सहमति बनने के बाद तुर्की में रहने वाले 40,000 उइगुरों ने विरोध जताया था। टर्किश बोलने वाले इन मुसलमानों ने अंकारा की विदेश नीति को लेकर सवाल उठाए थे। जिसके बाद तुर्की के विदेश मंत्री ने सफाई देते हुए कहा था कि यह समझौता वैसे ही है, जैसा तुर्की ने बाकी देशों के साथ किया है। उन्होंने इससे इनकार किया कि उइगुरों को वापस चीन भेजा जाएगा।

 

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों और मानवाधिकार समूहों का अनुमान है कि हाल के वर्षों में चीन के पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में बने डिटेंशन कैंपों मे करीब 10 लाख उइगुर मुसलमानों को कैद करके रखा हुआ है। इसमें मुख्य रूप से तुर्की भाषा बोलने वाले उइगुर और दूसरे अल्पसंख्यक मुसलमान शामिल हैं। चीन ने शुरू में तो इन डिटेंशन कैंपों के अस्तित्व से इनकार किया लेकिन बाद में कहा कि व्यावसायिक केंद्र हैं और चरमपंथ का मुकाबला करने के लिए डिजाइन किए गए हैं। चीन उइगुर मुसलमानों से दुर्व्यवहार के सभी आरोपों से इनकार करता रहा है।


 

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