अमरीका, भारत और जापान की नौसेनाएं करेंगी संयुक्त युद्ध अभ्यास, उड़ी चीन की नींद

Edited By Tanuja,Updated: 03 Jun, 2018 09:57 AM

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दुनिया की सबसे बड़ी ब्लू वाटर अमरीकी नेवी  और भारत-जापान की दो बड़ी नौसेनाओं के बीच  युद्ध  अभ्यास का पहला चरण 6 जून से शूरू होने वाला है जो अपने आप में बड़ा रणनीतिक कदम  है...

बीजिंगः  दुनिया की सबसे बड़ी ब्लू वाटर अमरीकी नेवी  और भारत-जापान की दो बड़ी नौसेनाओं के बीच  युद्ध  अभ्यास का पहला चरण 6 जून से शूरू होने वाला है जो अपने आप में बड़ा रणनीतिक कदम  है। पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित अमरीका के गुआम नौसैनिक अड्डे के पास भारत, अमरीका और जापान के बीच आयोजित हो रहे इस त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास मालाबार-2018 के लिए भारतीय नौसेना के पोत पश्चिमी प्रशांत महासागर में प्रवेश कर गए हैं। तीनो नौसेनाओं के बीच यह युद्धाभ्यास 6 से 15 जून तक चलेगा।   इन तीनों देशों के बीच संयुद्धभ्यास ने चीन की नींद उड़ा दी है। 

अभ्यास का पहला चरण छह से आठ जून तक हार्बर फेज का होगा और 9 से 15 जून तक समुद्री चरण का होगा लगातार हिंद महासागर में बढ़ती मुश्किलें, चीन और पाक जैसे पड़ोसियों से लगातार हो रहे विवाद के बीच नौसेना को लगातार सक्रिय रखने की चुनौतियों में ऐसे अभ्यास काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं। गौरतलब है कि मालाबार नौसैनिक अभ्यास की सामरिक हलकों में विशेष अहमियत मानी जाती है।

चीन मानता है कि मालाबार अभ्यास के तहत तीन देश उसके खिलाफ सैन्य लामबंदी कर रहे हैं। इस अभ्यास में भारतीय नौसेना की ओर से देश में बना स्वदेशी स्टील्थ फ्रिगेट सह्याद्री के अलावा एक टैंकर जहाज शक्ति और समुद्र टोही विमान पी-8-आई उतारे जाएंगे। अमरीका की ओर से अभ्यास में विमानवाहक पोत रोनाल्ड रेगन की अगुवाई में एक कैरियर स्ट्राइक ग्रुप शामिल होगा। जापानी नौसेना भी अपने एक हेलीकाप्टर कैरियर को उतार रही है।

जापान की सोरयो वर्ग की पनड़ुब्बी और लंबी दूरी के विमान पी-1 को भी शामिल किया गया है। बता दें कि 'मालाबार' एक्सरसाइज 1992 से हो रहा है। पहले इसमें भारत और अमरीका ही हिस्सा लिया करते थे, लेकिन पिछले चार बार से जापानी नौसेना भी इसमें शामिल हो रही है। पिछली बार अभ्यास का आयोजन बंगाल की खाड़ी में किया गया था। इस अभ्यास के जरिए भारतीय नौसेना यह सामरिक संदेश देने की कोशिश करेगी कि वह केवल हिंद महासागर के इलाके तक ही अपने को सीमित नहीं रखना चाहती है बल्कि दक्षिण चीन सागर के पार प्रशांत महासागर तक पहुंचने की भी उसकी क्षमता है।

 

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