Edited By Tanuja,Updated: 18 Sep, 2018 12:12 PM
मध्य एशिया के इस सबसे अधिक आबादी वाले देश उज़्बेकिस्तान में कई बेहद पुरानी संरक्षित मस्जिदें हैं और कई नामी तीर्थस्थल भी जो सिल्क रूट पर पड़ने वाले समरकंद और बुख़ारा जैसे शहरों में स्थित हैं...
ताशकंदः मध्य एशिया के इस सबसे अधिक आबादी वाले देश उज़्बेकिस्तान में कई बेहद पुरानी संरक्षित मस्जिदें हैं और कई नामी तीर्थस्थल भी जो सिल्क रूट पर पड़ने वाले समरकंद और बुख़ारा जैसे शहरों में स्थित हैं। यहाँ हर साल तमाम देशों के तीर्थयात्री सजदे के लिए आते हैं इसके चलते उज़्बेकिस्तान दुनिया का 'दूसरा मक्का' बनने की ओर अग्रसर है। लाखों उज़्बेक नागरिकों के लिए ये पवित्र स्थान हैं, लेकिन उज़्बेक सरकार के लिए ये पर्यटन को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी है।वो भी तब, जब दशकों के अलगाववादी और सत्तावादी शासन के बाद देश आज़ाद हुआ है।
समरकंद में दर्जनों शानदार कब्रगाहें मौजूद हैं। चग़ताई मंगोलों के ख़ान, तैमूरलंग की कब्र इसी शहर में है। उनके अलावा खगोल विज्ञानी उलुघबेक और पैग़ंबर मोहम्मद के चचेरे भाई कुसम इब्न अब्बास को भी समरकंद में ही दफ़नाया गया। कुसम इब्न अब्बास ही सातवीं शताब्दी में इस्लाम को इस देश में लेकर आए थे। किन यहाँ एक ऐसी कब्र भी है जो सबसे अलग है। ये है दानियार की कब्र, जहाँ पहुँचने के लिए हर सुबह सैकड़ों लोग शहर के बाहरी इलाक़े में स्थित एक पहाड़ी की चोटी पर चढ़ते हैं।ग़ौर करने वाली बात है कि यहाँ पहुँच रहे लोगों में सिर्फ़ मुसलमान नहीं हैं. यहाँ ईसाईयों की भी अच्छी ख़ासी संख्या है क्योंकि इस जगह का ज़िक्र बाइबल में सेंट डैनियल (एक पैग़ंबर) के अंतिम विश्राम स्थान के तौर पर किया गया है।
फ़िरदोव्सी एक युवा गाइड हैं। वो बताते हैं, "मुसलमान, ईसाई और यहूदी. यहाँ सब आते हैं। वो सभी यहाँ अपने-अपने मज़हब के अनुसार पूजा करते हैं। सेंट डैनियल एक यहूदी थे लेकिन हमारे मुस्लिम समाज के लोग उनका ये मानकर सम्मान करते हैं कि वो अल्लाह के पैग़ंबर थे।" एक सच्चाई यह भी है कि उज़्बेकिस्तान में भी कोई नहीं जानता कि वहाँ मक़बरों की संख्या कितनी है लेकिन कुछ अधिकारी इनकी संख्या दो हज़ार के क़रीब बताते हैं। अगर उज़्बेक सरकार इन मस्जिदों और मक़बरों पर ठीक से काम करे, तो देश का पर्यटन बढ़ाने में उन्हें काफ़ी मदद मिल सकती है।
उज़्बेकिस्तान की पर्यटन समिति के डिप्टी हेड अब्दुल अज़ीज अक्कुलोव कहते हैं, "पिछले साल लगभग 90 लाख उज़्बेक नागरिकों ने तीर्थयात्रा की और इन मक़बरों पर जाकर प्रार्थना की।"हालांकि, विदेशी पर्यटकों की संख्या अभी थोड़ी कम है। पिछले एक साल में क़रीब 20 लाख विदेशी लोग ही उज़्बेकिस्तान घूमने पहुँचे थे। अधिकारियों ने बताया कि उज़्बेकिस्तान ने अब पड़ोसी देशों के लिए अपनी सीमाएं खोल दी हैं और वीज़ा की शर्तों को भी आसान किया है।
अब्दुल अज़ीज़ अक्कुलोव कहते हैं, "विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक वैज्ञानिकों के अलावा इमाम अल-बुख़ारी और बहाउद्दीन नक्शबंद जैसे विद्वानों को भी उज़्बेकिस्तान में दफ़्न किया गया है। इसका ठीक से प्रचार किया जाए तो इंडोनेशिया, मलेशिया, तुर्की और भारत जैसे देशों से हमें इन ऐतिहासिक स्थलों के लिए लाखों अतिरिक्त तीर्थयात्री मिल सकते हैं।" अब्दुल अज़ीज़ अक्कुलोव की बात में वाक़ई दम है. क्योंकि 14वीं शताब्दी के सूफ़ी नेता बहाउद्दीन नक्शबंद ही इतने बड़े और लोकप्रिय नेता रहे हैं कि उनके बारे में कहा जाता है कि दुनिया भर में आज भी उनके दस करोड़ अनुयायी हैं।