Edited By Tanuja,Updated: 09 Jun, 2019 01:25 PM
विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO) ने पर्यावरण प्रदूषण को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए हैं। WHO के अनुसार
सिडनीः विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO) ने पर्यावरण प्रदूषण को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए हैं। WHO के अनुसार पिछले 5 वर्षों में पूरी दुनिया में प्रदूषण में 8 प्रतिशत वृद्दि दर्ज की गई है। दुनिया के तीन हजार शहर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं और मध्य-पूर्व एशिया के शहर जहां तेजी से विकास हो रहा है, वहां प्रदूषण की मात्रा 10 गुना ज्यादा है। प्रदूषण की वजह से हो रहे क्लाइमेट चेंज का असर दुनिया की कुछ बेहद खूबसूरत जगहों पर पड़ रहा है। पर्यावरण विदों की मानें तो प्रदूषण की वजह से अगले 100 सालों में दुनिया से 10 खूबसूरत जगहों का नामोनिशान मिट जाएगा।
इनमेंं सेशेल्स, माउंट किलिमंजारो, मिराडोर बेसिन, सुंदरबन,पैटागोनिया ग्लेशियर्स, जारा-डे-ला-सियेरा,ग्लेशियर नेशनल पार्क, माचू-पीचू, वेनिस, मृत सागर(डेड सी) आदि प्रमुख पर्यटन स्थलों के नाम शामिल हैं। WHO के अनुसार पिछले 20 साल में इंसानों द्वारा धरती से 1500 करोड़ पेड़ काटने से क्लाइमेट चेंज करने वाले CO2 गैस का उत्सर्जन बढ़ा जिस कारण पूरी दुनिया में तापमान बढ़ रहा है। नेचर मैगजीन के मुताबिक विभिन्न उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पृथ्वी पर करीब 3 से 4 लाख करोड़ पेड़ हैं। इनमें से सबसे ज्यादा पेड़ 64,800 करोड़ पेड़ रूस, कनाडा में 31,800 करोड़, अमेरिका में 22,200 करोड़ और चीन में 17,800 करोड़ पेड़ हैं।
पेड़ों का सबसे ज्यादा घनत्व फिनलैंड में 72 हजार पेड़ प्रति वर्ग किमी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले 30 सालों में 23,716 औद्योगिक प्रोजेक्ट के लिए 15 हजार वर्ग किमी के जंगल काट दिए गए। भारत में करीब 250 वर्ग किमी के जंगल हर साल ढांचागत विकास के भेंट चढ़ जाते हैं। पूरी दुनिया में 1999 से 2019 तक करीब 7.87 करोड़ कारें सड़कों पर उतरीं। अकेले अमेरिका में 75% कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन गाड़ियों की वजह से होता है। हालांकि, अब गाड़ियों में किए गए तकनीकी बदलावों के कारण प्रदूषण कम हो रहा है।
डीजल गाड़ियों से निकलने वाले धुएं की वजह से दुनिया में करीब 3.85 लाख लोगों की मौत हो रही है। गाड़ियों का सबसे बड़ा बाजार- चीन, भारत, यूरोपीय देश और अमेरिका हैं. डीजल के धुएं से मरने वालों में 70% सिर्फ इन्हीं चारों देशों में हैं। पृथ्वी पर अभी करीब 188 करोड़ घर हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार अगले 22 साल में पूरी दुनिया को बढ़ती हुई आबादी के मुताबिक 43 करोड़ और मकानों की जरूरत होगी। इन मकानों को बनाने के लिए जंगल कटेंगे। मकानों के आसपास ढांचागत विकास होगा।ऐसे में पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। शहरों की हवाओं में धूल के कण बढ़ेंगे। इनसे प्रदूषण में कमी लाने की मुहिम पर असर पड़ेगा।