जम्मू-कश्मीर में सरकार के लिए थोड़ा इंजतार और

Edited By ,Updated: 22 Mar, 2016 06:41 PM

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प्रधानमंत्री और पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती की मुलाकात के बाद पिछले तीन से बना हुआ गतिरोध दूर होने के संकेत मिले हैं। अच्छे

प्रधानमंत्री और पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती की मुलाकात के बाद पिछले तीन से बना हुआ गतिरोध दूर होने के संकेत मिले हैं। अच्छे माहौल में यह मुलाकात हुई है। इससे संभावनाएं बलवती हो रही हैं कि जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार अपना कामकाज संभालेगी और वहां सुचारू रूप से विकास आरंभ हो जाएगा। फैसला महबूबा मुफ्ती को करना है। वे श्रीनगर जाकर पार्टी विधायकों के साथ बैठकर इसे अंतिम रूप देंगी। इससे कई आशंकाओं को जन्म मिलता है जबकि पहले महबूबा कह रही थीं कि विधायकों ने उन्हें फैसला लेने के लिए अधिकृत करके भेजा है। यदि ऐसा था तो वे तुरंत फैसला ले सकती थीं। अत: इंतजार की घडियां अभी खत्म नहीं हुई हैं।

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के बाद पीडीपी और भाजपा ने मिल कर सरकार गठित की थी। दुर्भाग्यवश 7 जनवरी को मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन होने से अगले ही दिन राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो गया। उनकी सपुत्री महबूबा मुफ्ती ने पार्टी की कमान तो अपने हाथ में ले ली, लेकिन वह साझा सरकार बनाने से पहले वे कुछ नई शर्तें केंद्र पर थोपना चाहती थीं। इसके बाद पीडीपी और भाजपा विधायक जम्मू-कश्मीर में सरकार गठन करने में असफल होने के बावजूद यह दावा करते रहे हैं कि दोनों के बीच गठबंधन अभी भी बरकरार है। लेकिन हकीकत ज्यादा दिन नहीं छिपती है।

देखा जा रहा था कि महबूबा ने अपना रुख कड़ा हो गया था। गठबंधन सरकार की बहाली से पहले उन्होंने राज्य के विकास के लिए ठोस योजनाओं की मांग की थी। कहा जा सकता है​ कि उनके इस रुख के लिए पार्टी की भीतरी राजनीति जिम्मेदार थी। महबूबा ने हर तरफ से दबाव बनाया, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने एक सीमा से आगे दबाव में आने से साफ इन्कार कर दिया। यदि भाजपा पूरी तरह उसके दबाव में आ जाती तो मतदाताओं में गलत संदेश जाता। 

हालांकि राज्य सरकार को पूरा अधिकार होता है कि वह अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए केन्द्र से मांग करे। राज्य की स्थिति को देखते हुए केंद्र उसे राहत देता है। लेकिन सरकार शर्तोंं पर नहीं बन सकती हैं। मान लिया जाए कि खास परिस्थितियों में सरकार का गठन हो भी जाए तो उसके लंबे समय तक चलने की कोई गारंटी नहीं होती है। यही कारण है कि जम्मू कश्मीर में सरकार के गठन पर कभी हां और कभी ना की स्थिति बनी रही,जिससे लोग असमंजस में फंसे रहे। 87 सदस्यीय जम्मू कश्मीर विधानसभा में महबूबा की पार्टी पीडीपी के 27 और भाजपा के 25 विधायक हैं। राज्य में मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में 10 महीने तक गठबंधन सरकार चलाई गई थी। 

हाल में भाजपा और पीडीपी के बीच सरकार गठन की कोशिशों को तब करारा झटका लगा जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती को दो टूक शब्दों में कह दिया था कि उनकी कोई भी नई मांग मानी नहीं जाएगी। अगर वे पहले की व्यवस्था के तहत सरकार गठित करना चाहती हैं तभी भाजपा आगे बढ़ सकती है। प्रयास फिर रंग लाए और अब राज्य में सरकार के गठबंधन के शुभ संकेत मिलने लगे हैं। पीडीपी हो या भाजपा दोनों के विधायक राज्य में चुनाव करवाने के पक्ष में नहीं हैं। अगर दोनों ओर से सर्वमान्य फार्मूला तय हो जाता है तभी सरकार बनाने का रास्ता साफ हो जाएगा।

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