मंगल ग्रह की अशुभता को दूर करने के लिए करें ये उपाय

Edited By ,Updated: 25 Jun, 2016 01:25 PM

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ज्योतिष शास्त्र में मंगल को सेनापति माना गया है। मंगल की प्रधानता वाले जातक साहसी, स्वस्थ और आकर्षक व्यक्तित्व

ज्योतिष शास्त्र में मंगल को सेनापति माना गया है। मंगल की प्रधानता वाले जातक साहसी, स्वस्थ और आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। ये अपने सिद्धांतों एवं निर्णयों पर अडिग रहते हैं। मेष, मंगल, वृश्चिक राशि के स्वामी होते हैं।

 

लग्न कुंडली के दशम भाव में मंगल विशिष्ट माने गए हैं। सेना, पुलिस, जमीन, डॉक्टरी अध्ययन एवं हथियार संचालन इनके विषय हैं। हमारे शास्त्रों में मंगल को भूमि पुत्र भी कहा गया है।

 

मकर राशि में 28 डिग्री अंश पर उच्च के तथा इन्हीं अंशों पर कर्क राशि में नीच के कहलाते हैं। दशम भाव सबसे बली भाव है, तो तृतीय एवं छठे भाव में भी यह कारक होते हैं। सूर्य, चंद्र, बृहस्पति इनके मित्र ग्रह हैं एवं इनके साथ युति शुभ मानी गई है जबकि बुध एवं राहु इनके शत्रु हैं।

 

जिनकी कुंडली में मंगल शुभ स्थिति में होते हैं, वे उच्च स्तरीय साहसिक कार्य करते हैं, इनके विपरीत यदि मंगल नीच के हैं या पाप ग्रहों से प्रभावित होते हैं तो जातक के हिंसात्मक कार्यों में लिप्त होने की संभावनाएं पाई जाती हैं। चौथे भाव के मंगल शास्त्रों में अशुभ माने गए हैं।

 

विवाह प्रकरणों में मंगल की विशेष भूमिका होती है। जिन जातकों के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में मंगल हो, तो ऐसे जातक को मांगलिक कहा जाता है एवं इनके रिश्ते उसी जातक से किए जाते हैं जो मांगलिक हो। यद्यपि शास्त्रों में मांगलिक दोषों का परिहार भी बताया गया है परंतु इसकी जांच विज्ञ-ज्योतिषी से करा कर ही संबंध तय करने चाहिएं।

 

मंगल प्रधान जातकों का भाग्योदय देरी से होता है। यदि कोई जातक शारीरिक व्याधियों से ग्रसित रहता है, ऋण ग्रस्तता, जिगर के रोग, होंठ निरंतर फटना या नीचे के होंठ का फटना आदि हों तो समझें मंगल उचित परिणाम नहीं दे रहे हैं। भाइयों से आपसी विवाद, अचल संपत्ति को लेकर झगड़ा-फसाद या न्यायिक प्रक्रिया में उलझना, अग्रि प्रकोप आदि अशुभ मंगल के कारण होता है।

 

यदि किसी जातक को मंगल ग्रह के विपरीत परिणाम प्राप्त हो रहे हों तो उनकी अशुभता को दूर करने के लिए निम्र उपाय करने चाहिएं-

*  मंगल के देवता हनुमान जी हैं, अंत: मंदिर में लड्डू या बूंदी का प्रसाद वितरण करें। हनुमान चालीसा, हनुमत-स्तवन, हनुमद्स्तोत्र का पाठ करें। विधि-विधानपूर्वक हनुमान जी की आरती एवं शृंगार करें। हनुमान मंदिर में गुड़-चने का भोग लगाएं।

* यदि संतान को कष्ट या नुक्सान हो रहा हो तो नीम का पेड़ लगाएं, रात्रि सिरहाने जल से भरा पात्र रखें एवं सुबह पेड़ में डाल दें।

* पितरों का आशीर्वाद लें। बड़े भाई एवं भाभी की सेवा करें, फायदा होगा।

* लाल कनेर के फूल, रक्त चंदन आदि डाल कर स्नान करें।

* मूंगा, मसूर की दाल, ताम्र, स्वर्ण, गुड़, घी, जायफल आदि दान करें।

* मंगल यंत्र बनवा कर विधि-विधानपूर्वक मंत्र जप करें और इसे घर में स्थापित करें।

* मंगल मंत्र ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाया नम:।’ मंत्र के 40000 जप करें या कराएं फिर दशांश तर्पण, मार्जन व खदिर की समिधा से हवन करें।

* मूंगा धारण करें।

 

उपरोक्त मंत्र के अलावा मंगल के निम्र मंत्रों का जप भी कर सकते हैं-

 ॐ अंगारकाय नम:।’

ॐ अंङ्गारकाय विद्यमहे, शक्ति हस्ताय’ धीमहि, तन्नौ भौम: प्रचोदयात्।।

 

अन्य उपाय : हमेशा लाल रुमाल रखें, बाएं हाथ में चांदी की अंगूठी धारण करें, कन्याओं की पूजा करें और स्वर्ण न पहनें, मीठी तंदूरी रोटियां कुत्ते को खिलाएं, ध्यान रखें, घर में दूध उबल कर बाहर न गिरे।

 

—पं. नंद किशोर शर्मा

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