आप भी करें ऐसा कार्य, मिलेगा आने वाली पीढ़ियों को सुखी और सुरक्षित जीवन

Edited By ,Updated: 18 Sep, 2016 01:52 PM

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यह सृष्टि, हर शासन अधीन कार्य प्रणाली के अनुसार ही, कुछ मूलभूत कानूनों पर आधारित है, जिनका कोई भी उल्लंघन नहीं कर सकता। इसमें कर्म के कानून

यह सृष्टि, हर शासन अधीन कार्य प्रणाली के अनुसार ही, कुछ मूलभूत कानूनों पर आधारित है, जिनका कोई भी उल्लंघन नहीं कर सकता। इसमें कर्म के कानून का स्थान सबसे अग्रगण्य है। देवों को भी इस कानून का पालन करना अनिवार्य होता है और इससे ऊपर कोई भी नहीं है। आज का आधुनिक मनुष्य जो खुद को सृष्टि से उच्च मानता है और स्वयं के लिए अपनी ही काल्पनिक दुनिया कि निर्मित करने की फिराक में सृष्टि के कानूनों की अवहेलना करता जा रहा है, खुद ही आध्यात्मिक अधोगति के चक्र में उलझकर रह गया है। इस तथ्य का प्रमाण आपको आजकल के मोटे ऐनक पहनने वाली, रीढ़ की झुकी हड्डी वाली, अनुचित पाचन संस्था वाली, यंत्रों और कृत्रिम जीवन शैली की लत लगी हुई युवा पीढ़ी को देखकर मिल जाएगा। क्यों?


इस प्रश्न का उत्तर कर्म के कानून में निहित है। आप जैसा बीज बोओगे, बिलकुल वैसा ही फल पाओगे। आप जितना स्वयं के पास इकट्ठा करते हैं, उतना ही दर्द और पीड़ा का संचय करते जाते हैं। ऊपर उल्लेख की गई इन समस्याओं से निजाद पाने के लिए कर्म के कानून के खिलाफ कार्य करने की बजाय उसके नियमों के अंतर्गत कार्य करना अनिवार्य है। कैसे?

अगर आप आपके चारों तरफ देखेंगे तो आपको सड़कों पर कई सारे भूख से तड़पते हुए इंसान दिखेंगे, पंछी और लावारिस श्वानों जैसे उपेक्षित एवं भूखे जानवर दुर्घटनाओं में मृत्यु को प्राप्त होते हुए दिखेंगे। जिन गायों और बैलों को वैदिक, मिस्त्र देशीय और जोरासत्रियन समाज के लोग पूजनीय मानते थे, जिनकी मुग़ल साम्राज्य के अंत तक हत्या नहीं की जाती थी, आज उन्हीं की निर्दयता से दर्दनाक तरीके से हत्या कर दी जाती है। उन्हें घंटों भूखे रखा जाता है, हत्या से पूर्व लंबे समय तक मीलों चलाया जाता है, उनके हाथ-पैर तोड़कर उन्हें बहुत भारी मात्रा में गाड़ियों में परिवहन हेतु ठूसा जाता है, ताकि गाड़ी की कम जगह में भी काफी सारे जानवरों को ठूसा जा सके। जिन जानवरों का पालन किया जाता है, वे सड़कों पर कूड़े और प्लास्टिक का सेवन करते हुए नजर आते हैं और इसी वजह से मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।

अगर आज का आधुनिक मनुष्य इन सारी परिस्थितियों को नजरअंदाज करता रहा और असहाय जानवरों को ऐसे ही पीड़ा देकर उनकी हत्या करता रहा, तो कर्मों का यह कानून उसे भी नहीं छोड़ेगा। मनुष्य में रोगों की मात्रा बढ़ती रहेगी और मनुष्य के दर्द और पीड़ाओं में वृद्धि होती रहेगी। पिछले 200 वर्षों में बढ़ रहें अत्याचारों की कार्मिक प्रतिक्रिया के फलस्वरूप ही आज के आधुनिक मनुष्य का जीवन नर्क समान बन गया है और उसकी समस्याएं कई गुना ज्यादा बढ़ गई हैं।


चलिए, क्यों न हम अपने आस-पास कि किसी भूखे इंसान, श्वान या पंछी को खाना खिलाएं या हत्या करने हेतु ले जाए जाने वाली किसी गाय की जान बचाए या किसी बीमार इंसान की सहायता करें। इस प्रकार जीने से आप स्वयं के लिए और स्वयं की आने वाली नस्लों  के लिए सुखी और सुरक्षित जीवन की शाश्वत रूप से व्यवस्था कर पाएंगे।


योगी अश्विनी जी

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