Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Jun, 2020 11:04 AM
किसी देश में वसु सेन नामक एक राजा राज करता था। वह पुरुषार्थी चक्रवर्ती सम्राट था लेकिन कोई भी काम बिना ज्योतिषी से मुहूर्त जाने बिना नहीं करता था। इस कारण से प्रजा और सभासद सभी को बड़ी चिंता होने लगी।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
किसी देश में वसु सेन नामक एक राजा राज करता था। वह पुरुषार्थी चक्रवर्ती सम्राट था लेकिन कोई भी काम बिना ज्योतिषी से मुहूर्त जाने बिना नहीं करता था। इस कारण से प्रजा और सभासद सभी को बड़ी चिंता होने लगी।
एक दिन राजा वसु सेन अपने देश के दौरे पर निकले। उनके साथ राज ज्योतिषी भी था। तभी उन्हें रास्ते में एक किसान मिला जो हल-बैल लेकर खेत जोतने जा रहा था।
राज ज्योतिषी ने उसे रोक कर कहा, ‘‘मूर्ख! जानता नहीं, आज इस दिशा में जाना ठीक नहीं है और तुम उसी दिशा की ओर जा रहे हो। यदि इसी दिशा में फिर से गए तो तुम्हें हानि उठानी पड़ सकती है।’’
तब किसान ने शांत स्वर में राज ज्योतिषी से कहा, ‘‘जी, मैं पिछले कई सालों से इसी दिशा में जा रहा हूं। ऐसे में कई ऐसे दिन भी आए होंगे जब यह दिशा ज्योतिष के लिहाज से ठीक नहीं होगी लेकिन मुझे आज तक कुछ भी नहीं हुआ।’’
किसान ने जब राज ज्योतिषी की बात को सिरे से नकार दिया तो ज्योतिषी ने कहा, ‘‘अच्छा तो तुम अपना हाथ दिखाओ। तुम्हारी हस्तरेखा जांच करता हूं।’’
किसान ने उसकी ओर हाथ किया। तब राज ज्योतिषी ने गुस्से से कहा, ‘‘मूर्ख! हाथ दिखाते समय सीधा हाथ दिखाते हैं। उलटा नहीं।’’
तब किसान ने कहा, ‘‘मैं किसी से भीख नहीं मांग रहा। मैं अपने हाथों से मेहनत करता हूं।’’
यह सुनकर राज ज्योतिषी के पास कोई उत्तर नहीं था। नजदीक ही राजा वसु सेन खड़े थे। उन्हें इस घटना से कर्म की महिमा का ज्ञान हुआ और फिर ज्योतिषी की बातों में नहीं उलझे।