ऐसे व्यक्तियों के घर में उल्लू पर सवार होकर आती हैं महालक्ष्मी

Edited By ,Updated: 22 Apr, 2016 08:26 AM

lakshmi owl

शास्त्र अनुसार देवी महालक्ष्मी सर्वोत्कृष्ट पराशक्ति है तथा दैवीय शक्तियों की मूल भगवती हैं। महालक्ष्मी की कृपा मात्र से ही व्यक्ति वैभववान हो जाता है।

शास्त्र अनुसार देवी महालक्ष्मी सर्वोत्कृष्ट पराशक्ति है तथा दैवीय शक्तियों की मूल भगवती हैं। महालक्ष्मी की कृपा मात्र से ही व्यक्ति वैभववान हो जाता है। महालक्ष्मी समस्त सम्पत्तियों की अधिष्ठात्री श्रीदेवी शुद्ध सत्त्वमयी हैं। महालक्ष्मी जी मूलतः दो स्वरुप हैं पहला देवी रूप में जिसमें वो लक्ष्मी कहलाती हैं तथा दुसरे रूप में महालक्ष्मी श्रीरूप में जानी जाती हैं अर्थात धन रूप में। शास्त्रों में ऋषि-मुनियों द्वारा उल्लू के गुणों और महालक्ष्मी के व्यवहार में समानता का बखान किया गया है। जिस प्रकार उल्लू के आने-जाने की आहट तक नहीं होती उसी भांति धनरूपी लक्ष्मी के भी आने-जाने का पता नहीं चलता। 

 

उल्लू की सवारी का धार्मिक तर्क: धार्मिक शास्त्रों ने लक्ष्मी के वाहन के चार भेद बताएं गए है अर्थात चतुर्भुजी लक्ष्मी जी के चार प्रकार के बताए गए हैं। पहला गरुड़-वाहिनी दूसरा गज-वाहिनी तीसरा सिंह-वाहिनी और चौथा उलूक-वाहिनी। लक्ष्मी जब गरुड़ पर सवार होती हैं, तब वो भगवान विष्णु के साथ विराजमान होती हैं। तब वह आकाश भ्रमण करती हैं तथा गरुड़ वाहिनी कहलाती हैं। लक्ष्मी जी जब श्वेत हाथी पर सवार होती है, तब वह धर्म लक्ष्मी कहती है, हाथी कर्मठ और बुद्धिमान प्राणी है। हाथी के समूह में हथनीयों को प्राथमिकता तथा सम्मान दिया जाता है। हाथी अपने परिवार के लिए कर्म करके भोजन अर्जित करता है। हाथी समूह में रहकर एकता बनाए रखता है तथा पारिवारिक धर्म का निर्वाह करता है। लक्ष्मी जी जब सिंह पर सवार होती हैं तब वह कर्म लक्ष्मी कहलाती हैं। ये लक्ष्मी का अघोर स्वरुप है जब व्यक्ति साम दाम दंड भेद और नीति से पैसे कमाता है तब सिंह पर सवार लक्ष्मी का उद्गमन होता है। चौथा जब लक्ष्मी जी घुग्घू अर्थात उल्लू की सवारी करती है। 

 

रात्रि की देवी है तथा रात के समय उल्लू सदा क्रियाशील रहता हैं। उल्लू पेट भरने हेतु दिन के समय में अंधा बनकर अर्थात कोलुह का बैल बनकर कार्य करता है तथा संपूर्ण दिमाग के साथ रात में जागकर और आंखें खोलकर कार्य करता है। उल्लू पर सवार लक्ष्मी को उल्लूक वाहिनी कहा गया है।

 

तंत्र शास्त्र के अनुसार लक्ष्मी वाहन उल्लू रहस्यमयी शक्तियों का स्वामी है। प्राचीन ग्रीक में उल्लू को सौभाग्य और धन का सूचक माना जाता था। यूरोप में उल्लू को काले जादू का प्रतीक माना जाता है। भारत में उल्लूक तंत्र सर्वाधिक प्रचलित है। चीनी वास्तु शास्त्र फेंग्शुई में उल्लू को सौभाग्या, स्वा स्य्उल  और सुरक्षा का भी पर्याय माना जाता है। जापानी लोग उल्लूल को कठिनाइयों से बचाव करने वाला मानते है। चूंकि उल्लू को निशाचर यानी रात प्राणी माना जाता है और यह अंधेरी रात में भी न सिर्फ देख सकता है बल्कि अपने शिकार पर दूर दृष्टि बनाए रख सकता है।

उल्लू की सवारी का सामाजिक तर्क: शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी का वाहन निशाचर उल्लू है। ऊल्लू रात के समय अत्यधिक क्रियाशील होता है। जब लक्ष्मी एकांत, सूने स्थान, अंधेरे, खंडहर, पाताल लोक आदि स्थानों पर जाती हैं, तब वह उल्लू पर सवार होती हैं, तब उन्हें उलूक वाहिनी कहा जाता है। उल्लू पर विराजमान लक्ष्मी अप्रत्यक्ष धन अर्थात काला धन कमाने वाले व्यक्तियों के घरों में उल्लू पर सवार होकर जाती हैं।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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