जी.एस.टी. का कहर : बनारसी साड़ी व कालीन उद्योग डूबने की कगार पर

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Dec, 2017 10:31 AM

gst   the banarasi sari and the carpet industry on the brink of drowning

उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और उसके आसपास के क्षेत्र में कारोबार का हाल बुरा है। आलम यह है कि केन्द्र सरकार के वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) के कारण कालीन से लेकर बनारसी साड़ी और हस्तशिल्प से जुड़े कारोबार...

लखनऊ/बनारस : उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और उसके आसपास के क्षेत्र में कारोबार का हाल बुरा है। आलम यह है कि केन्द्र सरकार के वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) के कारण कालीन से लेकर बनारसी साड़ी और हस्तशिल्प से जुड़े कारोबार पूरी तरह डूबने की कगार पर हैं। निर्यातकों का कहना है कि जी.एस.टी. के पोर्टल में कई खामियों की वजह से उनके लगभग 300 करोड़ रुपए के क्लेम अटके पड़े हैं। इससे कारोबारियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पूर्वांचल के निर्यातकों की मानें तो लगभग 300 करोड़ रुपए से ज्यादा की वर्किंग कैपिटल (पूंजी) जी.एस.टी. के चक्कर में फंसी हुई है।

कालीन नगरी भदोही से करीब 4000 करोड़ रुपए का कालीन निर्यात होता है। बनारस की साड़ी और हस्तशिल्प का कारोबार करीब 300 करोड़ रुपए का है। कारोबारियों के मुताबिक जी.एस.टी. के जुलाई में लागू होने से अब तक 5 महीनों में कालीन निर्यातकों ने 12 प्रतिशत और अन्य उद्योगों से जुड़े लोगों ने 5 प्रतिशत की दर से जी.एस.टी. का भुगतान किया है। सभी को उम्मीद थी कि जमा करने के 2-3 महीने के बाद जी.एस.टी. का रिफंड मिल जाने से कुछ आराम मिलेगा लेकिन कारोबारियों को निराशा हाथ लगी है।

1000 निर्यातकों के फंसे करीब 200 करोड़ रुपए
ऑल इंडिया कार्पेट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के रवि पटौदिया की मानें तो सरकार के पोर्टल की गड़बड़ी के चलते जी.एस.टी. रिफंड न होने से भदोही के 1000 निर्यातकों के ही करीब 200 करोड़ रुपए फंसे हुए हैं। निर्यातकों का वर्किंग कैपिटल होने से कच्चे माल की खरीद से लेकर कालीन की बुनाई और कारीगरों की मजदूरी पर इसका सीधा असर दिखाई देने लगा है। पटौदिया के अनुसार अगर 2-3 महीनों में रिफंड न मिला तो निर्यातकों की कमर टूटनी निश्चित है।

शिपिंग बिल का जी.एस.टी. पोर्टल से लिंक न होना भी बड़ी समस्या
इधर पी.एच.डी. चैंबर ऑफ  कॉमर्स के संयोजक अशोक गुप्ता ने भी कहा कि केन्द्र सरकार ने जी.एस.टी. तो लागू कर दिया लेकिन इसकी समुचित व्यवस्था नहीं की जिस कारण निर्यातकों को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। निर्यातकों को हो रही परेशानियों को लेकर कालीन निर्यातक सुधीर अग्रवाल ने बताया कि रिफंड फॉर्म पोर्टल पर न होने और शिपिंग बिल का जी.एस.टी. पोर्टल से लिंक न होना भी बड़ी समस्या है। लिंक न होने से निर्यातकों के पास विदेशों में माल भेजने का प्रमाण ही नहीं है। इसके चलते निर्यातक रिफंड क्लेम नहीं कर पा रहे हैं।

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