Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Jan, 2018 08:24 AM
किसी का व्यवसाय जब अच्छा चल रहा होता है तो कहा जाता है कि उस पर प्रभु की कृपा है जो चारों तरफ से बरस रही है। अच्छा लाभ मिलता है तो भौतिक सुख-सुविधाएं भी आने लगती हैं। यह सब छिपाए नहीं छिपती हैं।
किसी का व्यवसाय जब अच्छा चल रहा होता है तो कहा जाता है कि उस पर प्रभु की कृपा है जो चारों तरफ से बरस रही है। अच्छा लाभ मिलता है तो भौतिक सुख-सुविधाएं भी आने लगती हैं। यह सब छिपाए नहीं छिपती हैं। ऐसी स्थिति में अनेक व्यक्तियों की नजर में व्यापार की बढ़ती प्रगति चुभने लगती है।
समस्या उत्पन्न होने पर तो सभी प्रयास करते हैं किंतु अगर हम ऐसा कुछ करें कि समस्या आए ही नहीं और यदि आए तो इसका प्रभाव अधिक न हो तो हानि की संभावना को कम किया जा सकता है। इसके लिए आपको सामान्य कार्य करना है। आप निश्चय कर लें कि प्रतिमाह आप कितनी धनराशि ईश्वर के नाम पर निकाल सकते हैं। उतनी धनराशि का आप अपने ईष्ट को व्यवसाय का सांझीदार बना लें।
जिस प्रकार आप अपने कर्मचारियों को वेतन देते हैं, उसी प्रकार निश्चित धनराशि निकाल कर उसका दान कर दें। चाहे इस धनराशि का चारा गायों को खिलाएं, चाहे गरीबों को भोजन दें। ऐसा करने से आपके ईष्ट स्वयं आपके व्यवसाय की रक्षा करेंगे और साथ ही किसी भी प्रकार के नजर दोष से भी अवश्य बचाएंगे। धनराशि कितनी हो, इसका निर्धारण आप स्वयं अपनी क्षमता के अनुसार कर लें किंतु इतनी राशि तो अवश्य होनी चाहिए कि जिसका दान ठीक प्रकार से किया जा सके।