पंजाब में बुजुर्ग ‘सरकार और संतान’ दोनों से दुखी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Jan, 2018 03:42 AM

punjab is unhappy with both elderly government and children

प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं परंतु आज जमाना बदल रहा है। अपनी गृहस्थी बन जाने के बाद कलियुगी संतानें माता-पिता से विमुख हो रही हैं। संतानों का एकमात्र उद्देश्य किसी न किसी तरह बुजुर्ग माता-पिता की...

प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं परंतु आज जमाना बदल रहा है। अपनी गृहस्थी बन जाने के बाद कलियुगी संतानें माता-पिता से विमुख हो रही हैं। 

संतानों का एकमात्र उद्देश्य किसी न किसी तरह बुजुर्ग माता-पिता की सम्पत्ति पर कब्जा करना ही रह जाता है और बेचारे बुजुर्ग माता-पिता अपनी जिंदगी की शाम में घुट-घुट कर मरने के लिए अकेले छोड़ दिए जाते हैं। हाल ही में ‘हैल्प एज इंडिया’ नामक एक एन.जी.ओ. ने अपनी एक सर्वे रिपोर्ट में कहा है कि पंजाब में बुजुर्गों को न तो उनके परिवार वाले संभालते हैं और न ही राज्य सरकार। उक्त एन.जी.ओ. ने अपने सर्वे में पंजाब, हरियाणा, केरल और तमिलनाडु को शामिल किया था क्योंकि इन राज्यों में ही बुजुर्गों की देखभाल के लिए बनाए गए वरिष्ठ नागरिक कानून 2007 के अंतर्गत सर्वाधिक केस दर्ज हो रहे हैं। 

इस सर्वेक्षण में पंजाब के 2 शहरों लुधियाना और अमृतसर को शामिल किया गया था क्योंकि यहां 80 वर्ष अथवा उससे अधिक आयु के लोगों ने भरण-पोषण के लिए केस दर्ज करा रखे हैं। इसी सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पंजाब व केरल में 70 प्रतिशत मामले ऐसे पाए गए जिनमें बुजुर्गों ने अपनी संतानों पर हिंसा के केस दर्ज करवाए जबकि तमिलनाडु व हरियाणा में 21 प्रतिशत मामलों में बेटियों के विरुद्ध भी केस दर्ज करवाए गए। ज्यादातर मामले एस.डी.एम. कार्यालय में ही दर्ज किए गए। भरण-पोषण संबंधी सर्वाधिक याचिकाएं पंजाब में दाखिल की गईं। सर्वे में शामिल आधे लोगों ने कहा कि उन्हें अपनी संतानों के हाथों गाली-गलौच झेलना पड़ा है और इनमें से 83 प्रतिशत बुजुर्ग वे थे जो पहले ही अपनी सम्पत्ति अपने बच्चों के नाम कर चुके हैं। 

लगभग 57 प्रतिशत बुजुर्गों ने अपने बच्चों द्वारा उपेक्षा किए जाने पर याचिकाएं दायर कीं जबकि 36 प्रतिशत ने कहा कि वे उन पर हिंसा किए जाने और मानसिक उत्पीडऩ के कारण ऐसा करने को विवश हुए। पंजाब-हरियाणा दोनों ही राज्यों में ‘बुढ़ापा नीति’ का अभाव है जिसके अंतर्गत बुजुर्गों के लिए हर जिले में वृद्धाश्रम बनाने की बात कही गई है। ‘हैल्प एज इंडिया’ के पंजाब, हरियाणा व जम्मू-कश्मीर के प्रमुख भुवनेश्वर शर्मा का कहना है कि पंजाब में बुजुर्गों के लिए देश में सबसे कम पैंशन की व्यवस्था है। हाल ही में इसे 750 रुपए महीना किया गया है जबकि हिमाचल व हरियाणा में क्रमश: 1200 व 1600 रुपए बुढ़ापा पैंशन दी जा रही है। श्री शर्मा का कहना है कि ‘हैल्प एज इंडिया’ प्रति बुजुर्ग 2000 रुपए के हिसाब से यूनिवर्सल पैंशन तथा उच्च सहायता प्राप्त या मुफ्त चिकित्सा सहायता की मांग कर रही है ताकि परिवार अपने बुजुर्गों को बोझ न समझें। 

श्री शर्मा के अनुसार बुजुर्गों के साथ इस दुव्र्यवहार के लिए काफी हद तक एकल परिवार प्रणाली भी जिम्मेदार है। बुजुर्गों को अब चले हुए कारतूस माना जाने लगा है। अनेक संतानें सोचती हैं कि माता-पिता एक वित्तीय बोझ हैं लिहाजा उनसे किनारा करना ही बेहतर है। इसी संबंध में चंडीगढ़ के एक आर.टी.आई. कार्यकत्र्ता श्री आर.के. गर्ग, जिन्होंने बुजुर्गों के लिए ‘सैकंड इनिंग्स’ नामक संस्था बनाई है का कहना है कि ऐसे मामलों में न्याय करने के लिए सरकार को विशेष अदालतें बनानी चाहिएं। वह कहते हैं, ‘‘मैं एक ऐसे वरिष्ठï नागरिक को जानता हूं जो डिप्टी कमिश्नर तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। ऐसे लोगों के लिए एक हैल्पलाइन होनी चाहिए। डिप्टी कमिश्नर को प्रदत्त कार्यसाधक शक्तियां बढ़ा कर अदालतों के साथ समन्वित करना चाहिए। डिप्टी कमिश्नर, समाज कल्याण विभाग और पुलिस थानों को क्रमबद्ध रूप से काम करना चाहिए।’’ 

सब कुछ होते हुए भी अपनी ही संतान द्वारा उपेक्षित समाज में आज न जाने कितने बुजुर्ग इसी प्रकार अपमानजनक जीवन गुजार रहे हैं। इसीलिए हम अपने लेखों में बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो बच्चों के नाम अवश्य कर दें परंतु उन्हें जायदाद ट्रांसफर न करें। ऐसा करके ही वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं।—विजय कुमार 

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