आतंक के खिलाफ भारत के प्रयासों को पलीता लगाने पर तुला अमरीका

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Nov, 2017 02:52 PM

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आतंक के खिलाफ भारत के प्रयासों को अमरीका पलीता लगाने पर तुल गया लगता है । अमरीकी कांग्रेस ने 2018 के राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम (एनडीएए-2018) में बड़ा बदलाव किया है। इसमें हक्कानी नैटवर्क को शामिल न करने के फैसले से भारत को झटका लग सकता है...

वॉशिंगटनः आतंक के खिलाफ भारत के प्रयासों को अमरीका पलीता लगाने पर तुल गया लगता है । अमरीकी कांग्रेस ने 2018 के राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम (एनडीएए-2018) में बड़ा बदलाव किया है। इसमें हक्कानी नैटवर्क को शामिल न करने के फैसले से भारत को झटका लग सकता है। पाकिस्तानी समाचार पत्र 'द डॉन' के मुताबिक, बिल के नए संस्करण में आतंक के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की सहभागिता के लिए अमरीका की ओर से दिए जा रहे फंड के लिए अमरीका के रक्षा मंत्री को यह प्रमाणित करने की आवश्यकता जताई है कि पाकिस्तान ने हक्कानी नैटवर्क की गतिविधियों को रोकने के लिए कदम उठाए हैं।

पुराने बिल में हक्कानी नैटवर्क के साथ लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का नाम भी शामिल था। डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, अमरीका अपना पूरा ध्यान अफगानिस्तान में चल रही आतंकी गतिविधियों पर ही केन्द्रित करना चाहता है।  अमरीकी कांग्रेस ने पाकिस्तान को 70 करोड़ डॉलर (4.5 हजार करोड़ रुपए) की सहायता देने का एेलान किया है। पाकिस्तान को यह मदद अफगानिस्तान में चलाए जा रहे अमरीकी अभियानों को समर्थन देने के एवज में दी जाएगी। अमरीका गठबंधन सहायता निधि (CSF) से यह राशि पाकिस्तान को देगा।

लश्कर को हक्कानी नैटवर्क के साथ शामिल न करने के फैसले से भारत को झटका लग सकता है। लश्कर ए तैयबा एक प्रतिबंधित संगठन है और इसका फाउंडर 2008 में हुए मुंबई आतंकी हमले का मास्टरमाइंड है। आपको बता दें कि भारत को इसी साल वैश्विक स्तर पर लश्कर ए तैयबा और जैश जैसे संगठनों को आतंकी संगठन घोषित किया था। 

गौरतलब है कि सिबंतर में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में जारी घोषणापत्र में आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिदीन की कड़ी निंदा की गई थी। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा था। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि क्योंकि चीन कई बार जैश-ए-मोहम्मद चीफ मसूद अजहर पर यूएन द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने की दिशा में अड़ंगा लगा चुका था। ऐसे में आतंकवाद के मुद्दे पर चीन को साथ जोड़ने में भारत को कामयाबी मिली थी।


 

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