क्या जेतली अपना 5वां बजट 2019 के चुनावों को ध्यान में रखकर पेश करेंगे

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Nov, 2017 01:59 AM

will jaitley present his 5th budget keeping in mind the 2019 elections

वित्त मंत्री अरुण जेतली अब से लगभग 10 सप्ताह में अपना 5वां केन्द्रीय बजट प्रस्तुत करेंगे। किसी भी वित्त मंत्री का 5वां बजट चुनावी दृष्टि से आम तौर पर महत्वपूर्ण माना जाता है। इसीलिए इस पर गहरी नजरें जमी रहती हैं कि मतदाताओं को इसमें कैसी-कैसी...

वित्त मंत्री अरुण जेतली अब से लगभग 10 सप्ताह में अपना 5वां केन्द्रीय बजट प्रस्तुत करेंगे। किसी भी वित्त मंत्री का 5वां बजट चुनावी दृष्टि से आम तौर पर महत्वपूर्ण माना जाता है। इसीलिए इस पर गहरी नजरें जमी रहती हैं कि मतदाताओं को इसमें कैसी-कैसी सौगातें दी जाएंगी। फिर भी जेतली के 5वें बजट का महत्व दो खास कारकों में से उग्मित होगा। ये कारक हैं आर्थिक वृद्धि और वित्तीय सुदृढ़ीकरण। बजट के चुनावी अर्थों पर चर्चा करने से पूर्व इन दोनों कारकों पर चर्चा करना बहुत सबककारी होगा। 

आधारभूत कीमतों में सकल मूल्य संवद्र्धन में आए बदलाव के पैमाने से देखा जाए तो आर्थिक वृद्धि के आंकड़े वित्त मंत्री के लिए चिंता का विषय हैं। फरवरी में जब जेतली अपना 5वां बजट प्रस्तुत करेंगे तो कुंजीवत प्रश्न यह पैदा होगा कि क्या मोदी सरकार ने कार्यकाल के 5 वर्ष में पूर्व सरकारों की तुलना में बेहतर वृद्धि दर हासिल की है। वाजपेयी सरकार के 5 वर्षों दौरान औसत 5.88 प्रतिशत वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर हासिल की गई थी। मनमोहन सरकार के प्रथम 5 वर्षों दौरान औसत वार्षिक वृद्धि दर ने बहुत ऊंची छलांग लगाते हुए 8.44 प्रतिशत  का आंकड़ा छू लिया लेकिन दूसरे कार्यकाल में यह धड़ाम से 7.14 प्रतिशत पर आ गिरी।

नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने प्रथम 3 वर्षीय कार्यकाल दौरान औसत 7.23 प्रतिशत वाॢषक वृद्धि दर हासिल की है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2017-18 के लिए 6.7 प्रतिशत और 2018-19 के लिए 7.4 प्रतिशत वृद्धि दर की भविष्यवाणी की है। ये दरें बाद में बदल सकती हैं लेकिन यदि हम इन्हें जोड़ कर 5 वर्ष की औसत निकालें तो आर्थिक वृद्धि का वार्षिक आंकड़ा मात्र 7.16 प्रतिशत ही बनेगा। स्मरण रहे कि मनमोहन की दूसरी सरकार ने 7.14 प्रतिशत वृद्धि दर हासिल की थी। इसलिए जेतली के 5वें बजट पर यह दबाव बना रहेगा कि आर्थिक वृद्धि के मोर्चे पर बेहतर परिदृश्य की प्रस्तुति की जाए।

यह संभव है कि नवम्बर के अंत में जारी किए जाने वाले दूसरी तिमाही के नतीजे एक सकारात्मक आश्चर्य का साक्षात्कार करवाएं। ऐसे में नोटबंदी और जी.एस.टी. द्वारा पैदा किए गए व्यवधान पर काबू पाने के बाद तीसरी और चौथी तिमाहियों में बजट स्वस्थ कायाकल्प की उम्मीद कर सकता है। सम्पूर्ण वर्ष के वृद्धि आंकड़ों के संबंध में प्रथम पूर्व अनुमान जनवरी में उपलब्ध हो जाएंगे और बजट भी 2018-19 में अर्थव्यवस्था के संबंध में वृद्धि की अपनी अवधारणाएं प्रस्तुत करेगा।

यानी कि मोदी सरकार अपने 5 वर्ष के शासन दौरान अर्थव्यवस्था में क्या मनमोहन सिंह सरकार की तुलना में महत्वपूर्ण तेज वृद्धि दर हासिल कर पाएगी या नहीं- इस संबंध में प्रथम जनादेश जेतली का बजट प्रकाशित होने के साथ ही सामने आ जाएगा। इसका विशेष राजनीतिक महत्व होगा क्योंकि मोदी सरकार उच्च वृद्धि दर तथा अधिक रोजगार के वायदे पर ही सत्ता में आई थी। जहां तक रोजगार सृजन की बात है, यह लड़ाई तो व्यावहारिक रूप में हाथ से निकल चुकी है। उच्च वृद्धि दर हासिल करने की लड़ाई भी यदि जीती न गई तो इसके राजनीतिक परिणामों को संभाल पाना मुश्किल हो जाएगा। 

अर्थव्यवस्था के दोहरे तुलन पत्र की समस्या के समाधान हेतु दीवालियापन संहिता को दृढ़ता से लागू करने, मुद्रास्फीति पर लक्ष्य साधते हुए स्वतंत्र मुद्रा नीति का चौखटा तैयार करने जैसे सुधारवादी कदमों के साथ-साथ प्रारम्भिक रूप में त्रुटिपूर्ण लेकिन कालांतर में चाक-चौबंद होते जा रहे जी.एस.टी. को मूर्तिमान करने जैसे अन्य काम करके जेतली ने जो वित्तीय सुदृढ़ीकरण हासिल किया है वह उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है। चालू वर्ष के लिए जेतली ने वित्तीय घाटे को जी.डी.पी. के 3.2 प्रतिशत तक सीमित रखने का जो लक्ष्य तय किया है वह कुछ कठिन दिखाई देता है क्योंकि अर्थव्यवस्था को नोटबंदी तथा जी.एस.टी. की दोहरी मार के परिणामों से जूझना पड़ रहा है। टैक्स और गैर-टैक्स राजस्व दोनों की वसूली ही लक्ष्य से कम रह सकती है जबकि बैंक पुन:पूंजीकरण एवं आधारभूत ढांचे में निवेश के चलते अधिक खर्च करने का जो दबाव बना रहेगा उसके कारण 2017-18 में वित्तीय घाटे को सीमित रखने के मामले में चूक हो सकती है। 

तो क्या 2018-19 तक वित्तीय घाटे को जी.डी.पी. के 3 प्रतिशत से नीचे लाने का लक्ष्य जेतली के 5वें बजट को फिलहाल ठंडे बस्ते में डालना पड़ेगा? क्या वह वित्तीय रेटिंग एजैंसी ‘मूडीज’ की इस चेतावनी को ताक पर रख पाएंगे कि सरकार के वित्तीय मानकों के गड़बड़ाने से रैंकिंग को डाऊनग्रेड किया जा सकता है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर जेतली का 5वां बजट आने पर ही मिल सकेगा। अंतिम रूप में यह बहुत बढिय़ा अपेक्षा की जा रही है कि वित्त मंत्री अपने 5वें बजट का प्रयोग जनता को सौगातें बांटने, करदाताओं को राहत प्रदान करने और भारी निवेश वाली लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा करने के लिए करेंगे क्योंकि अब तक यही रुझान चलता आया है। 

लेकिन जेतली हो सकता है अपने 5वें बजट में इन सभी बातों से परहेज करें क्योंकि आम चुनाव मई 2019 में होने तय हैं। लोगों को बांटी गई सौगातों का प्रभाव केवल कुछ महीनों तक ही रहता है। फरवरी माह में यदि इस प्रकार की घोषणाएं की जाती हैं तो वे 15 महीने बाद होने वाले आम चुनाव को सकारात्मक रूप में प्रभावित करने में विफल रहेंगी। यदि जेतली ऐसी घोषणाएं कर देते हैं तो इसका अर्थ और भी अधिक महत्वपूर्ण होगा कि क्या सरकार आम चुनाव की समयसारिणी को करीब खींच कर 2018 के मध्य में ही चुनाव करवाने की योजना बना रही है? 

लेकिन चुनावी मजबूरियों की अनदेखी करके भी वित्तीय रूप में समझदारी भरा बजट पेश किए जाने का यह तात्पर्य अनिवार्य नहीं कि जेतली अगले वर्ष के अंत में या 2019 की शुरूआत में टैक्स राहतों या भारी-भरकम  खर्च वाली योजनाओं की घोषणा करने का मौका हाथ से जाने देंगे। उनके पूर्ववर्तियों में से एक जसवंत सिंह ने अप्रैल- मई 2004 में होने जा रहे आम चुनाव के मद्देनजर 2004-05 के अंतरिम बजट को प्रस्तुत करने से एक महीने से भी कम समय पूर्व कई टैक्स राहतों की घोषणा की थी। जेतली भी 2019 में जसवंत सिंह के नक्शेकदम पर चल सकते हैं।-ए.के. भट्टाचार्य

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