इतिहास के झरोखे से जानें प्रेम की ऋतु बसंत को

Edited By ,Updated: 12 Feb, 2016 08:35 AM

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बसंत ऋतु प्राकृतिक सौंदर्य की प्रतीक है। बसंत के आगमन के साथ ही पौधों में नई कोंपलें फूटने लगती हैं और रंग-बिरंगे फूलों पर तितलियां मंडराने लगती हैं।

बसंत ऋतु प्राकृतिक सौंदर्य की प्रतीक है। बसंत के आगमन के साथ ही पौधों में नई कोंपलें फूटने लगती हैं और रंग-बिरंगे फूलों पर तितलियां मंडराने लगती हैं। मानव ही नहीं, पशु-पक्षी भी उल्लास और आनंद का अनुभव करने लगते हैं। चारों तरफ प्रकृति सजने-संवरने लगती है। इन दिनों किसान पीली सरसों के लहलहाते खेतों को देखकर खूब उत्साहित होते हैं। भारतीय कवियों ने अपनी कविताओं में भी बसंत ऋतु का स्वागत किया है। यूं तो बसंत पंचमी बसंत ऋतु के स्वागत में मनाया जाता है परंतु इस दिन माता सरस्वती की पूजा का भी खासा महत्व है।
 
 
बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजन: हिन्दू धर्म की प्रमुख पूजनीय देवियों में सरस्वती देवी भी एक हैं जो विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं और वह ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी हैं। इनके अन्य पर्याय हैं वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, संगीत और कला की देवी। मुख्य रूप से इन्हें विद्या की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती का अवतार हुआ था। इनके आगमन से ही प्रकृति का श्रृंगार हुआ तभी से इस दिन मां की पूजा करने की परम्परा शुरू हुई। धार्मिक और प्राकृतिक पक्ष को देखें तो इस ऋतु में इंसान का चंचल मन सांसारिक वासनाओं में भटकने लगता है इसलिए इस समय विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती की उपासना से मानव अपने मन को नियंत्रित और बुद्धि को कुशाग्र करता है।
 
 
धार्मिक मान्यता : कहा जाता है कि भगवान विष्णु जी की आज्ञा से जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो पृथ्वी पूरी तरह से निर्जन थी व चारों ओर उदासी का वातावरण था। इस उदासी को दूर करने के लिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में से पृथ्वी पर जल छिड़का। इन जलकणों से चार भुजाओं वाली एक शक्ति प्रकट हुई। इस शक्ति के हाथों में वीणा, पुस्तक व माला थी। ब्रह्मा जी ने शक्ति से वीणा बजाने को कहा ताकि पृथ्वी की उदासी दूर हो। शक्ति ने जैसे ही वीणा के तार छेड़े तो सारी पृथ्वी लहलहा उठी, सभी जीवों को वाणी मिल गई। वह दिन बसंत पंचमी का दिन था।
 
 
मां सरस्वती का स्वरूप : ज्ञान, कला, बुद्धि और संगीत की देवी सरस्वती का स्वरूप शांत और सौम्य है। उनके दोनों हाथों में वीणा व उसके तार यह दर्शाते हैं कि जैसे वीणा में अनेकों धुनें छुपी हैं उसी तरह मनुष्य के भीतर भी अनेक संभावनाएं छिपी होती हैं। जब तक तारों को छेड़ा न जाए संगीत पैदा नहीं होता। उसी तरह जब तक मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती तब तक उसका जीवन नीरस और अधूरा है। जिस तरह वीणा के सभी तारों के तालमेल से मधुर संगीत पैदा होता है ठीक उसी तरह इंसान अपने जीवन में अपने मन व बुद्धि में सामंजस्य स्थापित कर ले तो वह सुखी हो जाता है। देवी सरस्वती के हाथ में पुस्तक ज्ञान की प्रतीक है जो बताती है कि बिना ज्ञान के जीवन निरर्थक है। यही ज्ञान वास्तविक ज्ञान है जो मनुष्य को परम सत्य अर्थात परमात्मा के ज्ञान तक ले जाता है।
 
 
देवी सरस्वती के हाथ में माला जप और ध्यान की प्रतीक है। माला के हर मनके के जाप पर मन को संसार से ध्यान के जरिए अलग करने की प्रेरणा देती है माला। मां सरस्वती का वाहन सफेद हंस है जो विवेक का परिचायक है। हंस के विषय में मान्यता है कि अगर आप दूध और पानी मिला कर उसके सामने रखेंगे तो वह उसमें से दूध को पी लेगा और पानी को छोड़ देगा। अभिप्राय: है कि अगर हम हमेशा मां सरस्वती की कृपा चाहते हैं तो हमें भी हंस की तरह ही सद्बुद्धि व विवेक को स्वयं में जागृत करना होगा।
 
 
उनके श्वेत वस्त्र शांति, उमंग, जोश, ताजगी व कोमलता के प्रतीक हैं। सफेद रंग अपने भीतर सत्य, अहिंसा, क्षमा, सहनशीलता, प्रेम, परोपकार आदि सद्गुणों को बढ़ाने तथा क्रोध, मोह,  लोभ, अहंकार जैसे दुर्गुणों का त्याग करने की शक्ति देता है। 
 

—सरिता शर्मा 

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