विदेश में भी निकलती है जगन्नाथ रथयात्रा जानें, रोचक बातें

Edited By ,Updated: 14 Dec, 2015 06:41 AM

jagannath rath yatra

भारतीय जनमानस की भक्ति के प्राणाधार श्री कृष्ण का सबसे दयालु स्वरूप भगवान जगन्नाथ हैं। भगवान जगन्नाथ अर्थात भक्त के नाथ, जगत के नाथ दयालु भगवान!

भारतीय जनमानस की भक्ति के प्राणाधार श्री कृष्ण का सबसे दयालु स्वरूप भगवान जगन्नाथ हैं। भगवान जगन्नाथ अर्थात भक्त के नाथ, जगत के नाथ दयालु भगवान! इस स्वरूप में विशाल नेत्रों के साथ बाहें पसारे भगवान जगन्नाथ भक्त को अपने आग्गन में लेने के लिए उसे पुकार रहे हैं। भगवान जगन्नाथ रथयात्राओं के आयोजन का वास्तविक अर्थ भक्त एवं भगवान का परस्पर साक्षात्कार और वास्तविक मिलन है जिसे देश-विदेश में अंतर्राष्ट्रीय श्री कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) निभा रहा है।

जगन्नाथ रथयात्रा शुरू होने की पौराणिक कथा के अनुसार लगभग 5000 वर्ष पूर्व द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जब वृदावन त्याग कर द्वारिका नगरी में अपनी पत्नियों संग निवास कर रहे थे, तभी एक बार पूर्ण सूर्य ग्रहण का विरला अवसर आया। सूर्य ग्रहण के इस अवसर पर सभी यदुवंशियों ने कुरुक्षेत्र में स्थित समन्त पंचक नामक पवित्र तीर्थ पर एकत्रित होने तथा यथा-रीति वहां स्नान, उपवास, दान आदि करके अपने पापों का प्रायश्चित करने का निश्चय किया। निश्चय के अनुरूप समस्त द्वारिका वासियों ने श्री कृष्ण के नेतृत्व में कुरुक्षेत्र को प्रस्थान किया।

वियोगिनी राधा रानी एवं वृंदावन वासियों को जब ज्ञात हुआ कि श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र आ रहे हैं तो उन्होंने नंद बाबा के नेतृत्व में श्री कृष्ण के दर्शनार्थ वहां जाने का निश्चय किया। इतने वर्ष पश्चात भक्त शिरोमणि राधा रानी तथा गोपियों ने श्री कृष्ण को देखकर परम आनंद अनुभव किया किंतु कुरुक्षेत्र का वातावरण तथा श्री कृष्ण की राजसी वेशभूषा राधा रानी के प्रेम में अवरोधक थी। राधा रानी अतीत की भांति श्री कृष्ण के साथ वृंदावन की कुंज गलियों में विहार तथा मिलन के लिए लालायित थीं। इस लालसा के वशीभूत राधा रानी ने श्री कृष्ण को वृंदावन आने का निमंत्रण दिया। परम भगवान श्री कृष्ण ने निमंत्रण स्वीकार किया तो वृंदावन वासी प्रसन्नता से झूम उठे और रथ पर सवार होकर वृंदावन के लिए तैयार हो गए।

जिस रथ पर श्री कृष्ण तथा उनके बड़े भाई बलराम तथा मध्य में बहन सुभद्रा आरूढ़ थीं, उस रथ के घोड़े ब्रज वासियों ने खोल दिए तथा घोड़ों की जगह स्वयं जुत गए। वृंदावन वासियों ने श्री कृष्ण को तब प्रथम बार भगवान जगन्नाथ (जगत के नाथ) का नाम दिया। आकाश ‘जय जगन्नाथ, जय बलदेव, जय सुभद्रा’ के उद्घोषों से गूंज उठा। 

भक्तों का अभूतपूर्व प्रेम देखकर परम भगवान श्री कृष्ण ने कहा- जब तुम मेरे घोड़े (दास) बन ही गए हो तो अब तुम मुझे जहां चाहे ले चलो। इस प्रकार सब ब्रजवासी मिलकर भगवान श्री कृष्ण के रथ को स्वयं खींचकर तीनों भाई-बहन की जय जयकार करते हुए वृंदावन धाम तक ले गए। इसी सारी लीला को जगन्नाथ रथयात्रा के नाम से जाना जाने लगा। 

लेकिन श्री कृष्ण प्रेम एवं भक्ति की यह लीला उसी दिन समाप्त नहीं हो गई। श्री जगन्नाथ रथयात्रा उसी कृष्ण प्रेम के साथ जगन्नाथ पुरी उड़ीसा में निकलनी शुरू हुई, जहां लाखों भक्तों ने रथयात्राओं में भाग लेना शुरू किया। श्री कृष्ण भक्तों को रथयात्राओं के साथ जोड़े रखने के लिए 20वीं शताब्दी में महान संत एवं इस्कॉन के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद ने प्रयास शुरू किए। इसी श्रृंखला में उन्होंने 9 जुलाई 1967 को अमेरिका में सान फ्रांसिस्को की धरती पर जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन कर प्रथम बार भगवान श्री कृष्ण का नाम विदेशी धरती पर फैलाना शुरू किया। तब से आज तक सान फ्रांसिस्को में यह दिन राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाता है। 

उधर भारत में 1996 में श्रील प्रभुपाद की जन्म शताब्दी के अवसर पर इस्कॉन कुरुक्षेत्र अध्यक्ष श्रद्धेय साक्षी गोपाल दास के अथक प्रयासों से लुधियाना में प्रथम बार जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन किया गया। पिछले लगभग डेढ़ दशक से भी अधिक समय से लुधियाना में जगन्नाथ रथयात्रा का वार्षिक आयोजन किया जा रहा है। इस रथयात्रा में सम्मिलित हो कर हर वर्ष देश-विदेश से अनेकों कृष्ण भक्त जगन्नाथ जी की कृपा लेने के लिए लुधियाना पहुंचते हैं। 

इस अवसर पर हीरे-रत्न एवं स्वर्ण जड़ित झाड़ुओं से रथयात्रा मार्ग को स्वच्छ किया जाता है। रंग-बिरंगी रंगोलियों से सजाकर उसमें कृष्ण भक्ति के रंग संजोए जाते हैं। मुख्य द्वार, तोरणद्वार, वंदनवार, दीपमाला, शहनाई वादन, फलों के द्वार आदि से रथयात्रा मार्ग सजाया जाता है। रथ के आगे अनेकों वैष्णव संकीर्तन मंडल में भगवान जगन्नाथ जी के संकीर्तन में लीन रहते हैं। 

पूरा रथयात्रा मार्ग 108 तीर्थों के जल एवं गौमाता के गोबर से शुद्ध किया जाता है। भगवान को प्रिय छप्पन भोग, विभिन्न व्यंजन, माखन-मिश्री भोग अर्पित किए जाते हैं। विभिन्न प्रदेशों की सांस्कृतिक झांकियां एवं प्रादेशिक बैंड राष्ट्रीय एकता की झलक दिखाते हैं। 

लुधियाना में होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा पर ये सब दृश्य देव लोक से कम नहीं होते। इस बार लुधियाना में जगन्नाथ रथयात्रा का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन 19 दिसम्बर शनिवार को दोपहर 12 बजे श्री दुर्गा माता मंदिर लुधियाना से होने जा रहा है जिसमें लाखों भक्त जुटकर श्री जगन्नाथ रथ को स्पर्श कर एवं रथ के रस्से को खींचकर भगवान जगन्नाथ को अपने मन रूपी वृंदावन में लेकर जाएंगे। 

प्रस्तुति : सतीश गुप्ता, संजीव सूद बांका एडवोकेट

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