Edited By ,Updated: 06 Sep, 2016 08:02 AM
चातुर्मास के उपलक्ष्य में चल रही प्रवचन शृंखला
आगमज्ञाता, युवा प्रेरक, योगीराज, जैन संत श्री अरुण मुनि जी महाराज अपने प्रवचनों के माध्यम से समाज का मागदर्शन करते हुए कहते हैं कि
चातुर्मास के उपलक्ष्य में चल रही प्रवचन शृंखला
आगमज्ञाता, युवा प्रेरक, योगीराज, जैन संत श्री अरुण मुनि जी महाराज अपने प्रवचनों के माध्यम से समाज का मागदर्शन करते हुए कहते हैं कि आत्म शुद्धि के लिए भौतिक विषयों-विकारों से दूर व आत्मा के नजदीक होने वाले ही जागृत होते हैं और जो एक बार जागृत हो जाए उसे बार-बार जागने की जरूरत नहीं, उसी को संयम के धन की प्राप्ति होती है अच्छे आचरण की प्राप्ति होती है और मन ध्यान व तप के साथ जुड़ जाता है।
भोजन न करना ही तप नहीं है, जीवन में व्यवहार आहार को बदलना, इच्छाओं का दमन करना ही तप है। विषय-विकार से दूरी नियम करने से ही बनाई जा सकती है। यही दूरी भीतरी बदलाव लाती है जिससे मन की सुंदरता चेहरे पर साफ देखी जा सकती है, जैसे बड़ा-सा कठोर पत्थर मूर्तकार द्वारा चलाए जाने वाले छैनी-हथौड़े की चोट खाकर सुंदर-सजीव मूर्त का रूप धारण करता है उसी प्रकार नियम संयम और मार्गदर्शन व तप से ही इंसान सुंदर बनता है।
चंचल मन के कारणवश कोई छोटा सा पाप हो जाए तो कभी न कभी जीवन यात्रा दौरान छोटे से बीज से बड़े हुए विशाल वट वृक्ष की भांति सामने आ ही जाता है इसलिए इस चंचल मन को भी उस पतंग की डोर की भांति बांधना होगा जिससे यह हमारे इशारों पर चले और ऐसा गुरुओं के दिखाए मार्ग पर चलने से ही संभव है। महालक्ष्मी मंदिर, जेल रोड जालंधर में प्रतिदिन हो रहे प्रवचनों से सैंकड़ों अनुयायी लाभान्वित हो रहे हैं।
एस.एस. जैन सभा, गुड़मंडी जालंधर द्वारा चातुर्मास के उपलक्ष्य में आयोजित किए जा रहे इन्हीं प्रवचनों की शृंखला में महाराज श्री ने युवा वर्ग व बच्चों को अपनी संस्कृति व धार्मिकता का ज्ञान देते हुए कहा कि भविष्य की बागडोर संभालने वाले अपने मां-बाप और गुरुओं के दिखाए मार्ग पर चलें। सांसारिक ज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान भी उनके भविष्य निर्माण व समाज कल्याण के लिए अति आवश्यक है।
प्रस्तुति : हेमंत पंडित, जालंधर