Edited By ,Updated: 14 Nov, 2015 09:31 AM
कार्तिक मास में प्रतिदिन दामोदर अष्टकम का पाठ करते हैं। साथ ही श्रीमद् भागवतम में गज और ग्राह की कथा का पाठ करते हैं। उसमें जो श्लोक हैं उन्हें अवश्य ही पढ़ना चाहिए।
कार्तिक मास में प्रतिदिन दामोदर अष्टकम का पाठ करते हैं। साथ ही श्रीमद् भागवतम में गज और ग्राह की कथा का पाठ करते हैं। उसमें जो श्लोक हैं उन्हें अवश्य ही पढ़ना चाहिए। वे संस्कृत में हैं। तो भी पढ़ना चाहिए भगवान तो भावग्राही हैं। वे आपके भाव को समझ जाएंगे। साथ में जो अर्थ व टीका है वो किसी वैष्णव आचार्य द्वारा लिखित होनी चाहिए। इस्कान के परमाराध्यतम् श्रील ए सी भक्तिवेदान्त स्वामी महाराज अथवा परमपूज्यपाद श्रील भक्तिवेदांत नारायण महाराज द्वारा दी गई टीकाएं पढ़ सकते हैं। वैसे तो महान वैष्णव आचार्य श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर द्वारा लिखी गई टीका भी है किंतु वो संस्कृत में है।
परम पूज्यपाद श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी गुरुमहाराज जी कहते हैं कि यह जो ग्राह है, वो माया है और यह जो गजेन्द्र है वो एक प्राणी अथवा जीव है। जीव को माया रूपी ग्राह ने पकड़ा हुआ है। जीव रूपी हाथी अपने आप को मगरमच्छ से छुड़ाने की कोशिश करता है। उसके बच्चे, अन्य प्राणी भी उसकी सहायता करते हैं किंतु असफल रहते हैं। कुछ होता न देख जीव फिर अकेला ही जूझता है। हम चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, भगवान की माया से नहीं छूट सकते।
श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान कहते हैं,"मेरी शरण में आ जाओ।"
जैसे ही गजेन्द्र ने भगवान की शरण ली भगवान ने उसे बचा लिया। गज ग्राह के चंगुल से बच गया। इस भावना से की मैं एक सांसारिक जीव माया में फंस गया हूं।
हे भगवन्! मैं आपके चरणों में शरणागत होना चाहता हूं। हमें गजेन्द्र-मोक्ष लीला रोज पढ़नी चाहिए।
अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के सौजन्य से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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