दधीचि जयंती आज: जीवंत अवस्था में किया था शत्रु को अपनी हड्डियों का दान

Edited By ,Updated: 09 Sep, 2016 08:31 AM

maharishi dadhichi jayanti

लोक-कल्याण के लिए आत्म त्याग करने वालों में महर्षि दधीचि का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है। इनकी माता का नाम शांति तथा पिता का नाम अथर्वा ऋषि था।

लोक-कल्याण के लिए आत्म त्याग करने वालों में महर्षि दधीचि का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है। इनकी माता का नाम शांति तथा पिता का नाम अथर्वा ऋषि था। ये तपस्या और पवित्रता की प्रतिमूर्ति थे। अटूट शिव भक्ति और वैराग्य में इनकी जन्म से ही निष्ठा थी।
 
एक बार महर्षि दधीचि बड़ी ही कठोर तपस्या कर रहे थे। इनकी अपूर्व तपस्या के तेज से तीनों लोक आलोकित हो गए और इंद्र का सिंहासन हिलने लगा। इंद्र को लगा कि दधीचि अपनी कठोर तपस्या के द्वारा इंद्र पद छीनना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने महर्षि की तपस्या को खंडित करने के उद्देश्य से परम रूपवती अलम्बुषा अप्सरा के साथ कामदेव को भेजा। अलम्बुषा और कामदेव के अथक प्रयत्न के बाद भी महर्षि अविचल रहे और अंत में विफल मनोरथ होकर दोनों इंद्र के पास लौट गए। 
 
कामदेव और अप्सरा के निराश होकर लौटने के बाद इन्द्र ने महर्षि की हत्या करने का निश्चय किया और देव सेना को लेकर महर्षि दधीचि के आश्रम पर पहुंचे। वहां पहुंच कर देवताओं ने शांत और समाधिस्थ महर्षि पर अपने कठोर अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करना शुरू कर दिया। देवताओं के द्वारा चलाए गए अस्त्र-शस्त्र महर्षि की तपस्या के अभेद्य दुर्ग को न भेद सके और महर्षि अविचल समाधिस्थ बैठे रहे। इन्द्र के अस्त्र-शस्त्र भी उनके सामने व्यर्थ हो गए। हार कर देवराज स्वर्ग लौट आए।
 
एक बार देवराज इंद्र अपनी सभा में बैठे थे। उसी समय देव गुरु बृहस्पति आए। अहंकारवश गुरु बृहस्पति के सम्मान में इंद्र उठ कर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर अन्यत्र चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना पुरोहित बना कर काम चलाना पड़ा किन्तु विश्व रूप कभी-कभी देवताओं से छिपा कर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे दिया करता था। इंद्र ने उस पर कुपित होकर उसका सिर काट लिया। विश्वरूप त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इन्द्र को मारने के उद्देश्य से महाबली वृत्रासुर को उत्पन्न किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़ कर देवताओं के साथ मारे-मारे फिरने लगे।
 
ब्रह्मा जी की सलाह से देवराज इंद्र महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिए गए। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए कहा, ‘‘प्रभो! त्रैलोक्य की मंगल-कामना हेतु आप अपनी हड्डियां हमें दान दे दीजिए।’’
 
महर्षि दधीचि ने कहा, ‘‘देवराज! यद्यपि अपना शरीर सबको प्रिय होता है, किन्तु लोकहित के लिए मैं तुम्हें अपना शरीर प्रदान करता हूं।’’
 
महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र का निर्माण हुआ और वृत्रासुर मारा गया। इस प्रकार एक महान परोपकारी ऋषि के अपूर्व त्याग से देवराज इंद्र बच गए और तीनों लोक सुखी हो गए। अपने अपकारी शत्रु के भी हित के लिए सर्वस्व त्याग करने वाले महर्षि दधीचि जैसा उदाहरण संसार में अन्यत्र मिलना कठिन है।  

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!