झांसी की रानी लक्ष्मी बाई जी के शहीदी दिवस पर शत् शत् नमन

Edited By ,Updated: 18 Jun, 2016 12:28 PM

rani of jhansi lakshmi bai

रानी लक्ष्मीबाई ने 23 वर्ष की आयु में ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से संग्राम किया और रणक्षेत्र में वीरगति प्राप्त की किन्तु जीते-जी अंग्रेजों को

रानी लक्ष्मीबाई ने 23 वर्ष की आयु में ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से संग्राम किया और रणक्षेत्र में वीरगति प्राप्त की किन्तु जीते-जी अंग्रेजों को अपनी झांसी पर कब्जा नहीं करने दिया। लक्ष्मीबाई झांसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थीं।

 

वीरांगना लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी जिले के भदैनी नगर में 11 नवम्बर, 1828 को हुआ था। उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। मनु की मां का नाम भागीरथी तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठा थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथी एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। मनु जब चार वर्ष की थीं तब उनकी मां की मृत्यु हो गई। चूंकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गए, जहां चंचल एवं सुंदर मनु ने सबका मन मोह लिया। लोग उसे प्यार से छबीली कह कर बुलाने लगे।
 
 
मनु ने बचपन से शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली। सन् 1842 में उनका विवाह झांसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव निबालकर के साथ हुआ और वह झांसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गई। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गई। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर, 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई।
 
 
दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया। ब्रिटिश राज ने बालक दामोदर पर अदालत में मुकद्दमा दायर कर दिया। यद्यपि मुकद्दमे में बहुत बहस हुई लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। ब्रिटिश अधिकारियों ने राज्य का खजाना जब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज को रानी के सालाना खर्च में से काटने का फरमान जारी कर दिया। इसके परिणामस्वरूप रानी को झांसी का किला छोड़ कर झांसी के रानी महल में जाना पड़ा पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने हर हाल में झांसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।
 
 
झांसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन गया जहां हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारंभ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गई और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी, को उन्होंने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया। 1857 के सितम्बर तथा अक्तूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया।
 
 
1858 के जनवरी माह में ब्रिटिश सेना ने झांसी की ओर बढऩा शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ्तों की लड़ाई के बाद ब्रिटिश सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया परंतु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गई। रानी झांसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिलीं। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया। ग्वालियर के पास कोटासराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई ने ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष 7 तिथि को वीरगति प्राप्त की।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!