ये है राजा कर्ण की नगरी, जहां की मिट्टी उगलती है सोना, उपेक्षा का शिकार हो रही यहां की धरोधर

Edited By Jyoti,Updated: 22 Nov, 2019 04:58 PM

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भारत एक ऐसा देश है जहां प्राचीनता को यहां के किले व ऐतिहासिक स्थल दर्शाते हैं। ये किले न केवल भारत को एक प्राचीन देश बनाने में सहायक है बल्कि इनकी वजह से देश के कई ऐसे राज्य भी हैं जो इनके चलते जहां भर में प्रसिद्धि हासिल कर चुके हैं।

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कटनी: भारत एक ऐसा देश है जहां प्राचीनता को यहां के किले व ऐतिहासिक स्थल दर्शाते हैं। ये किले न केवल भारत को एक प्राचीन देश बनाने में सहायक है बल्कि इनकी वजह से देश के कई ऐसे राज्य भी हैं जो इनके चलते जहां भर में प्रसिद्धि हासिल कर चुके हैं। इन्हीं में से एक मध्यप्रदेश का कटनी शहर जहां कुछ ऐसे धार्मिक व ऐतिहासिक स्थल हैं जो इसकी प्रसिद्धि का मुख्य स्त्रोत बना हुआ है। आज हम बात कर रहे कटनी के बिलहरी नामक गांव के बारे में जो प्राचीन समय में पुष्वावती राजा कर्ण की नगरी के नाम ले विख्यात था परंतु अपनी संपन्नता और समृद्धि के चलते इसी ख्याति दूर-दूर के राज्यों में भी फैली हुई थी।
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बताया जाता है जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित पुष्पावती नगरी के उत्थान के दौर में यहां अनेकों राजप्रसादों, किलों, तालाबों, मठों व मंदिरों का निर्माण कराया गया था जो इसके राजसी वैभव व सियासती शान-ए-शौकत का प्रतीक थे। कालांतर में बुतशिकनों यानि मूर्तिभंजक मुस्लिम आक्रमणकारियों के दौर में पुष्पावती नगरी के शासक अपने राज्य की रक्षा नहीं कर सके लिहाजा निर्दयी आक्रांताओं ने यहां के मठों, मंदिरों व अन्य कलाकृतियों को क्षतिग्रस्त कर काफी नुकसान पहुंचाया। इसके बाद भी उनके भग्रावशेष व किसी तरह नष्ट होने से बची रही। यहां के अन्य धरोहर आज भी लोगों को पुष्पावती के गौरवशाली साम्राज्य की याद करवाती हैं।

बिलहरी में प्रवेश करते ही एक बड़ा तालाब मिलता है। जिसके एक तरफ मंदिर हैं, तो दूसरी तरफ पान के खेत। इस तालाब का निर्माण कल्चुरी राजा लक्ष्मणराज ने 945 ईस्वीं में करवाया था। लक्ष्मणराज के नाम से ही इस तालाब का नाम है। लक्ष्मण तालाब अपनी विशालता के साथ-साथ सिंघाडें और कई घटनाओं के लिए प्रसिद्ध है। मान्यताओं के अनुसार इस तालाब की गहराई में अथाह सोना है, कहा जाता है कि एक सोने की नथ पहनी हुई मछली है और तालाब के बीचों बीच एक मंदिर भी है जो कि तालाब में पानी कम होने के बाद दिखाई देता है।


कैसी है यहां की धरोहर
यहां के लोगों की मानें तो पूर्व में इस क्षेत्र की काफ़ी प्राचीन मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं। ऐतिहासिक धरोहर उपेक्षित यानि बहुत बुरी हालत है। कई पुराने मंदिर इमारतें नष्ट होती जा रही हैं। तो वहीं विष्णु वराह की मूर्ति तक पहुंचने के लिए भी बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है क्योंकि वहां तक जाने का कोई अच्छा रास्ता नहीं है।
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तपसी मठ में मूर्तियां
यहां का तपसी मठ भारतीय पुरातत्व विभाग के तहत संरक्षित स्मारकों में शामिल है। इसके अलावा यहां एक शिव मंदिर, परिक्रमा स्थल व बाबड़ी भी स्थित है। मठ के संरक्षण का काम फिलहाल बंद है। आसपास से एकत्र की गईं मूर्तियां व अन्य धरोहर परिक्रमा स्थल में कैद करके रखी गईं हैं जिन्हें देखने की अनुमति पर्यटकों को नहीं है।

अज्ञातदेव का मंदिर
लक्ष्मण सागर के पास स्थित अज्ञातदेव का मंदिर उत्कृष्ट वास्तुशिल्प का नमूना है। परंतु फिलहाल इसके अंदर कोई मूर्ति नहीं है और प्रवेश द्वार पर ताला लगा रहता है। देख-रेख व संरक्षण के अभाव में यह नष्ट होने की कगार पर है। इसके छज्जों पर उग आए पौधे अपनी जड़ों व भार से इसे जीर्ण-शीर्ण करने पर तुले हैं। सामने की ओर पाश्र्व में दोनों ओर स्थित स्तंभ अपना आधार छोड़कर झुकते जा रहे हैं जो धीरे-धीरे गिरने की स्थिति में आते जा रहे हैं। इसके आस-पास बड़ी संख्या में झाड़ियों का साम्राज्य होता जा रहा है। जिस चौकोर चबूतरे पर यह मंदिर बना है उसके पत्थर निकलते जा रहे हैं।
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एक ही स्थान पर 6 कुंड
बिलहरी के गयाकुंड में एक विशाल शिव मंदिर बना हुआ है जहां पर 6 कुंड बने हुए हैं। इन सभी कुंडों में पानी भरा हुआ है। इन कुंडों की विशेषता यह है कि बरसात हो, ठंडी हो या फिर गर्मी ही क्यों न हो पानी इनमें जस का तस रहता है। बिलहरी के नलकूपों और कुओं का जल स्तर 50 फीट के नीचे हैं लेकिन इन कुंडों में 4 से 5 फीट में भी पानी भरा हुआ है। एक स्थानीय निवासी के अनुसार यहां मंदिर के नीचे भी एक गुप्त कुंड बना हुआ है। जिसका पानी कभी भी नहीं खत्म होता। इस कुंड से सालभर पानी लगातार निकाला जाए तब भी यह जस का तस रहता है।
 

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