मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत के आप-पास रोकने की जिम्मेदारी 5 साल के लिये उपयुक्त: आरबीआई रिपोर्ट

Edited By PTI News Agency,Updated: 26 Feb, 2021 07:15 PM

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मुंबई, 26 फरवरी (भाषा) मुद्रास्फीति के लिये तय लचीले लक्ष्य की समीक्षा का समय नजदीक आ रहा है। ऐसे में रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को कहा है कि मुद्रास्फीति का मौजूदा चार प्रतिशत का लक्ष्य अगले पांच साल के लिये उपयुक्त है। मुद्रास्फीति के इस...

मुंबई, 26 फरवरी (भाषा) मुद्रास्फीति के लिये तय लचीले लक्ष्य की समीक्षा का समय नजदीक आ रहा है। ऐसे में रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को कहा है कि मुद्रास्फीति का मौजूदा चार प्रतिशत का लक्ष्य अगले पांच साल के लिये उपयुक्त है। मुद्रास्फीति के इस लक्ष्य को चार प्रतिशत रखा गया है जिसमें दो प्रतिशत नीचे और दो प्रतिशत ऊपर तक का दायरा तय किया गया है।
देश में मुद्रास्फीति लक्ष्य का दायरा तय करने की व्यवस्था को 2016 में अपनाया गया। इस व्यवस्था को लेकर 31 मार्च 2021 को इसकी समीक्षा की जानी है।
रिजर्व बैंक की मुद्रा और वित्त पर जारी 2020- 21 की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘मूल्य स्थिरता के लिये तय की गई मौजूदा आंकड़ागत व्यवस्था जिसमें मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत की घटबढ़ के दायरे के साथ चार प्रतिशत पर रखने का लक्ष्य तय किया गया है।’’
रिजर्व बैंक ने कहा है कि रिपोर्ट में यह अध्ययन अक्ट्रबर 2016 से लेकर मार्च 2020 की अवधि का है। इस अवधि के दौरान ही देश में लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्य (एफआईटी) व्यवस्था को औपचारि रूप से लागू किया गया। इसमें कोविड- 19 महामारी की अवधि को अलग रखा गया है क्योंकि इस दौरान आंकड़ों का संकलन गड़बड़ा गया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एफआईटी से पहले मुद्रास्फीति दर नौ प्रतिशत की उच्चस्तर पर थी जो कि एफआईटी आवधि में घटकर 3.8 से लेकर 4.3 प्रतिशत की दायरे में आ गई। इससे यह संकेत मिलता है कि देश में मुद्रास्फीति के लिये चार प्रतिशत उपयुक्त लक्ष्य है। इसमें कहा गया है कि उंचे में 6 प्रतिशत मुद्रास्फीति लक्ष्य इसका उचित वहनीय दायरा है जबकि नीचे में दो प्रतिशत से ऊपर का इसका दायरा वास्तविक मुद्रासफीति के इससे नीचे जाने वहनीय स्तर से नीचे जाने को प्रेरित कर सकता है। जबकि दो प्रतिशत से नीचे का दायरा वृद्धि को नुकसार पहुंचा सकता है। इससे यह संकेत मिलता है कि नीचे में मुद्रास्फीति का दो प्रतिशत का दायरा उचित स्तर है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एफआईटी की इस अवधि में समूचे मुद्रा बाजार में मौद्रिक प्रसार पूरा और तार्किक तौर पर बेहतर रहा लेकिन बॉंड बाजार में यह पूर्णता से कुछ कम रहा।


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