जमानत का इंतजार करते करते हिरासत में 84 वर्षीय कार्यकर्ता स्टैन स्वामी की मृत्यु

Edited By PTI News Agency,Updated: 05 Jul, 2021 08:12 PM

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मुंबई, पांच जुलाई (भाषा) एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी पादरी-कार्यकर्ता स्टैन स्वामी का सोमवार को एक अस्पताल में निधन हो गया। वह चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत का इंतजार कर रहे थे।

मुंबई, पांच जुलाई (भाषा) एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी पादरी-कार्यकर्ता स्टैन स्वामी का सोमवार को एक अस्पताल में निधन हो गया। वह चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत का इंतजार कर रहे थे।

स्वामी 84 साल के थे। तेजी से तबीयत बिगड़ने के कारण रविवार से उन्हें अस्पताल में वेंटिलेटर पर रखा गया था। होली फैमिली अस्पताल के निदेशक डॉ इयान डिसूजा और कार्यकर्ता के वकील मिहिर देसाई ने उच्च न्यायालय को बताया कि दिल का दौरा पड़ने से स्वामी की मौत हो गयी। स्वामी का होली फैमिली अस्पताल में उपचार चल रहा था।

न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एन जे जमादार की पीठ ने इस खबर पर हैरानी जतायी और कहा कि उन्हें कहने के लिए कुछ शब्द नहीं मिल रहे और आशा जतायी कि स्वामी की आत्मा को शांति मिलेगी।

जेसुइट प्रोविंशियल ऑफ इंडिया ने एक बयान जारी कर स्वामी के निधन पर शोक जताया। संगठन ने कहा कि पादरी ने ताउम्र ‘‘आदिवासियों, दलितों और वंचित समुदायों’’ के लिए काम किया।

स्वामी के वकील देसाई ने उच्च न्यायालय से कहा कि उन्हें अदालत और निजी अस्पताल से कोई शिकायत नहीं है, जहां उनका उपचार हुआ लेकिन वह एल्गार परिषद-माओवादी जुड़ाव मामले में जांच कर रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) और राज्य के जेल प्रशासन के लिए ऐसा नहीं कह सकते।

देसाई ने दावा किया कि एनआईए ने स्वामी को समय पर और पर्याप्त चिकित्सा सहायता प्रदान करने में लापरवाही की और उच्च न्यायालय से उन परिस्थितियों की न्यायिक जांच शुरू करने का आग्रह किया, जिनके कारण कार्यकर्ता की मृत्यु हुई। उन्होंने कहा कि स्वामी को होली फैमिली अस्पताल में भर्ती होने से 10 दिन पहले (इस साल 29 मई को) सरकारी जे जे अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन जे जे अस्पताल में कोविड-19 की उनकी जांच नहीं की गयी। वकील ने कहा कि निजी अस्पताल में स्वामी की कोरोना वायरस की जांच में संक्रमण की पुष्टि हुई। जांच एजेंसी के बारे में देसाई ने कहा, ‘‘एनआईए ने एक दिन के लिए भी स्वामी की हिरासत नहीं मांगी, लेकिन उनकी जमानत याचिका का विरोध करती रही।’’
उन्होंने यह भी बताया कि चूंकि स्वामी की हिरासत में मृत्यु हुई है, इसलिए राज्य के अधिकारी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार पोस्टमॉर्टम करने के लिए बाध्य हैं।

उच्च न्यायालय ने न्यायिक जांच शुरू करने का कोई आदेश पारित नहीं किया, लेकिन उसने अपने आदेश में दर्ज किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की संशोधित धारा 176 (1 ए) में हिरासत में मौत के हर मामले में न्यायिक जांच अनिवार्य है। उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि मौजूदा मामले में भी यही प्रावधान लागू होता है तो राज्य और अभियोजन एजेंसियों को इसका पालन करना होगा। अदालत ने निर्देश दिया कि राज्य के अधिकारी सभी औपचारिकताएं पूरी करें और स्वामी का शव उनके सहयोगी फादर फ्रेजर मस्कारेनहास को सौंप दें। यह निर्देश तब आया जब देसाई ने अदालत को बताया कि जहां आम तौर पर शव को उसके परिवार वालों को सौंप दिया जाता है, वहीं स्वामी एक पादरी थे और उनका कोई परिवार नहीं था। उन्होंने कहा, ‘‘जेसुइट ही उनका एकमात्र परिवार था।’’
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी दर्ज किया कि स्वामी का अंतिम संस्कार शहर में लागू कोविड-19 प्रोटोकॉल के अनुसार मुंबई में किया जाएगा।

इससे पहले दिन में, पीठ ने स्वामी की चिकित्सा के आधार पर जमानत के लिए याचिका पर देसाई द्वारा दाखिल एक जरूरी अर्जी पर सुनवाई की। पीठ ने अस्पताल के अधिकारियों से स्वामी की नवीनतम चिकित्सा रिपोर्ट मांगने के लिए सुनवाई शुरू की, वहीं एनआईए ने तत्काल सुनवाई पर आपत्ति जताते हुए हस्तक्षेप किया। इसके बाद देसाई ने दखल देते हुए अदालत से अनुरोध किया कि डॉ डिसूजा को ‘‘बस एक मिनट के लिए बोलने दें।’’ इसके बाद अदालत को बताया गया कि चार जुलाई को सुबह में स्वामी को दिल का दौरा पड़ा।

डा. डिसूजा ने अदालत को बताया, ‘‘इसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था, लेकिन दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें कभी होश नहीं आया। आखिरकार आज दोपहर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।’’ डॉक्टर ने कहा कि स्वामी कोविड-19 से उबर गए थे, लेकिन फेफड़े में दिक्कतें थीं और उन्हें पार्किंसंस की बीमारी भी थी। डॉ डिसूजा ने कहा, ‘‘इन सब बीमारियों की जटिलताओं के कारण उनकी मौत हो गयी।’’
देसाई से निधन पर शोक जताते हुए पीठ ने कहा, ‘‘हम स्तब्ध हैं। आगे अब क्या कहें? हम आपके प्रयासों की सराहना करते हैं। आपने उन्हें (स्वामी) अस्पताल में भर्ती होने के लिए राजी किया और बेहतर उपचार दिया। दुखद है कि वह नहीं रहे।’’
अक्टूबर 2020 में गिरफ्तारी के बाद से स्वामी को पहले नवी मुंबई के तलोजा जेल अस्पताल में एक विचाराधीन कैदी के रूप में रखा गया था। उच्च न्यायालय के आदेश पर स्वामी को इस साल मई में होली फैमिली अस्पताल में भर्ती किया गया और उनके इलाज का खर्च उनके सहयोगी उठा रहे थे। उस समय, स्पष्ट रूप से कमजोर नजर आ रहे स्वामी वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अदालत की अवकाश पीठ के समक्ष पेश हुए थे और उनसे अंतरिम जमानत देने का आग्रह किया था।

उन्होंने कहा था कि तलोजा जेल में रहने के दौरान उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आ रही थी। स्वामी ने जे जे अस्पताल में भर्ती होने से इनकार कर दिया था और कहा था कि अगर चीजें वैसी ही बनी रहीं, तो वह ‘‘जल्द ही मर जाएंगे।’’ उन्होंने अदालत से कहा था, ‘‘यदि ऐसा ही चलता रहा तो मैं बहुत कष्ट भोगूंगा, संभवत: बहुत जल्द मर जाऊंगा। मेरी हालत जिस तरह तेजी से खराब हो रही है ऐसे में जे जे अस्पताल की दवा काम नहीं आएगी।’’ स्वामी ने कहा था कि वह अपने लोगों के बीच रांची जाना चाहते हैं।

उन्होंने पिछले साल मार्च में एक विशेष अदालत के आदेश को चुनौती देने के लिए इस साल की शुरुआत में उच्च न्यायालय का रुख किया था। निचली अदालत ने याचिका के गुण-दोष और चिकित्सा आधार, दोनों पर जमानत से इनकार कर दिया था।

उन्होंने उच्च न्यायालय को बताया था कि वह पार्किंसंस रोग और कई अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं। पिछले शुक्रवार को स्वामी ने वकील देसाई के जरिए एक नयी याचिका दाखिल कर गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) की धारा 45 डी (तीन) को चुनौती दी थी।

एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एक सम्मेलन के दौरान भड़काऊ भाषण देने से जुड़ा है। पुलिस का दावा है कि इन्हीं भाषणों के कारण अगले दिन कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई थी। पुलिस ने दावा किया था कि माओवादियों से जुड़ाव रखने वाले लोगों ने इस सम्मेलन का आयोजन किया था।



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