ओबीसी आरक्षण : महाराष्ट्र विस ने केंद्र से 2011 की जनगणना के आंकड़े लेने के लिए प्रस्ताव पारित किया

Edited By PTI News Agency,Updated: 05 Jul, 2021 04:00 PM

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मुंबई, पांच जुलाई (भाषा) महाराष्ट्र विधानसभा ने सोमवार को एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से अनुरोध किया कि वह 2011 की जनगणना के आंकड़े मुहैया कराए, जिससे राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ओबीसी आबादी को लेकर एक अनुभवजन्य आंकड़ा तैयार कर सके, जिसका मकसद...

मुंबई, पांच जुलाई (भाषा) महाराष्ट्र विधानसभा ने सोमवार को एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से अनुरोध किया कि वह 2011 की जनगणना के आंकड़े मुहैया कराए, जिससे राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ओबीसी आबादी को लेकर एक अनुभवजन्य आंकड़ा तैयार कर सके, जिसका मकसद स्थानीय निकायों में समुदाय के लिये राजनीतिक आरक्षण को बहाल करने का प्रयास करना है।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता और राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल द्वारा पेश प्रस्ताव को विपक्षी भाजपा सदस्यों के हंगामे के बीच ध्वनिमत से पारित किया गया। इस मुद्दे पर सदन की कार्यवाही को दो बार स्थगित भी करना पड़ा।


भाजपा सदस्य सदन में अध्यक्ष के आसन के सामने पहुंच गए और प्रदेश सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे, जबकि नेता विपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि प्रस्ताव “राजनीति से प्रेरित है और इससे किसी भी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी।’’

उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने पिछड़ा वर्ग आयोग से अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के राजनीतिक पिछड़ेपन का पता लगाने के लिये अनुभवजन्य जांच करने को कहा था। भाजपा नेता ने आरोप लगाया कि न्यायालय ने जो कहा था, प्रदेश सरकार उस दिशा में कुछ नहीं कर रही है।

फडणवीस ने कहा कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों में “आठ मूल त्रुटियां” थीं, जबकि महाराष्ट्र से (जनगणना) आंकड़े में “69 लाख गड़बड़ियां”। उन्होंने कहा कि इसलिए, इसे नहीं दिया गया था।

इस पर भुजबल ने पूछा, “अगर आंकड़े में गलतियां थीं तो इनमें संशोधन और सुधार क्यों नहीं किया गया? आप छह साल तक यह आंकड़ा लिये क्यों बैठे रहे। अगर यह आंकड़ा उज्ज्वला गैस जैसी केंद्रीय योजनाओं के लिये इस्तेमाल किया गया तो ओबीसी (आरक्षण मामले) के लिये इसे क्यों नहीं दिया जा रहा।”

उन्होंने पूछा, 2021 की जनगणना कोविड-19 के कारण शुरू नहीं हुई है, ऐसे में राज्य सरकार ओबीसी आबादी के लिये अनुभवजन्य जांच कैसे शुरू करे? मंत्री ने कहा कि फडणवीस जब मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने एक अगस्त 2019 को नीति आयोग को पत्र लिखकर जनगणना के आंकड़े मांगे थे।

उन्होंने कहा, “आप अनुभवजन्य जांच या आंकड़े जैसे शब्दों से क्यों खेल रहे हैं? हम केंद्र से जनगणना के आंकड़ों की मांग को आगे बढ़ा रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग से अनुभवजन्य जांच करने को कहा है, जो जनगणना के आंकड़े उपलब्ध कराए जाने के बाद ही की जा सकती है।”

जब पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव ने प्रस्ताव को मतदान के लिये रखा तो भाजपा सदस्य गिरीश महाजन और संजय कुटे अध्यक्ष के आसन के पास चढ़ गए और उनसे बहस की।

इस पर उन्होंने सदन की कार्यवाही को 10 मिनट के लिये स्थगित कर दिया। बाद में जब कार्यवाही दोबारा शुरू हुई तो सुनील प्रभु (शिवसेना) और नवाब मलिक (राकांपा) ने आरोप लगाया कि भाजपा सदस्यों ने पीठासीन अधिकारी से “बदसलूकी” की और अध्यक्ष के कक्ष में उनसे हाथापाई की। उन्होंने कहा, “उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।”

उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल ने इसके बाद सदन की कार्यवाही 15 मिनट के लिये स्थगित कर दी।बाद में सदन से बाहर संवाददाताओं से बात करते हुए फडणवीस ने कहा कि भाजपा सदस्यों ने पीठासीन अधिकारी से बदसलूकी नहीं की। उन्होंने कहा, “क्योंकि हमने सरकार के झूठ का पर्दाफाश किया, तो कुछ नया मोड़ दिया जा रहा है, जिससे सदन की कार्यवाही न चले। भुजबल ने सदन में तथ्यात्मक जानकारी नहीं दी। केंद्र सरकार ने अपनी योजनाओं में जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल नहीं किया।”

उच्चतम न्यायालय ने इस साल के शुरू में स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण को रद्द करते हुए कहा था कि अनुसूचित जाति और जनजाति समेत विभिन्न समुदायों के लिये निर्धारित सीटों की संख्या कुल सीटों के 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती।

यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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