Edited By ,Updated: 21 Sep, 2015 07:28 AM
कृष्ण प्राणमयी राधा, राधा प्राणमयी हरि।
भगवान श्री कृष्ण के प्राण, श्री राधा रानी के हृदय में बसते हैं, और
कृष्ण प्राणमयी राधा, राधा प्राणमयी हरि।
भगवान श्री कृष्ण के प्राण, श्री राधा रानी के हृदय में बसते हैं, और श्री राधारानी के प्राण भगवान श्री कृष्ण के हृदय में बसते हैं। वह जीवन नित्य धन्य है, जो श्री राधा कृष्ण के आश्रय में व्यतीत होता है।
परम ज्ञानी उद्धव जी को भगवान श्री कृष्ण जी का तत्व श्री राधा जी से प्राप्त हुआ। ऋषि अष्टावक्र ने अपने अंतिम समय में श्री राधा-माधव के दर्शन प्राप्त कर गोलोक धाम प्राप्त किया। श्री राधा जी की भक्ति से अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी श्री कृष्ण सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।
वृंदावनेश्वरी राधा, कृष्णो वृंदावनेश्वर:।
जीवनेन धने नित्यं राधा कृष्ण गतिर्मम।।
अर्थात : श्री राधा रानी वृंदावन की स्वामिनी हैं और भगवान श्री कृष्ण वृंदावन के स्वामी हैं। श्री राधा कृष्ण के परम आश्रय में मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण व्यतीत हो।
अत: भवसागर से पार कराने वाला, माया के बंधन से छुड़ाने वाला, कलियुग में श्री राधा कृष्ण का युगल मंत्र ही एक मात्र उपाय है।
—रवि शंकर शर्मा, जालंधर