मौत से बचने और तृप्त दीर्घ-जीवन के लिए करें अनमोल उपाय

Edited By ,Updated: 07 Jun, 2016 01:41 PM

brahman realization

सर्वास्त्विन्द्रियलोभेन संकटान्यवगाहते। सर्वत्र सम्पदस्तस्य संतुष्टं यस्य मानसम्।

सर्वास्त्विन्द्रियलोभेन संकटान्यवगाहते।

सर्वत्र सम्पदस्तस्य संतुष्टं यस्य मानसम्। 

उपानद्गूढपादस्य ननु चर्मावृतेव भू:।।
संतोषामृततृप्तानां यत् सुुखं शान्तचेतसाम्। 
कुतस्तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावताम्।।
असंन्तोष: परं दुखं संतोष: परमं सुखम्। 
सुखार्थी पुरुषस्तस्मात् संतुष्ट: सततं भवेत।।
(पदम् सृष्टि 19/258-261)
 
मनुष्य की इंद्रियों के लोभग्रस्त होने से मनुष्य का मूल्यवान जीवन संकट में पड़ जाता है। जिस मनुष्य के हृदय में संतोष है, उसके लिए सर्वत्र धन संपत्ति भरी हुई है, जिसके पैर जूते में हैं, उसके लिए सारी पृथ्वी मानो चमड़े से ढकी हुई है। 
 
संतोष रूपी अमृत से तृप्त एवं शांतचित्त वाले पुरुषों को जो सुख प्राप्त है, वह धन के लोभ से इधर-उधर दौडऩे वाले लोगों को कहां प्राप्त हो सकता है। असंतोष ही सबसे बढ़कर दुख है और संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। अत: सुख (और दीर्घ तृप्त जीवन) चाहने वाले पुरुष को सदा संतुष्ट रहना चाहिए। महाभारत शांतिपर्व में 21/2-5 में कहा गया है :
 
संतोषो वै स्वर्गतम: संतोष: परमं सुखम्।
तुष्टेर्न किंचित परत: सा सम्यकप्रति तिष्ठति।।
 
संतोष ही सबसे बड़ा स्वर्ग है। संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। इस संतोष की प्रतिष्ठा-स्थिरता निम्रलिखित उपायों से होती है। 
 
यदा संहरते कामान् कूर्मोऽगानीव सर्वश:।
तदाऽऽत्मज्योतिरचिरात् स्वात्मन्येव प्रसीदति।।
 
अर्थात कछुवे की भांति प्राणी जब सब ओर से अपने अंगों को समेट लेता है, तब यह स्वयं प्रकाश आत्मा शीघ्र ही भेद दृष्टि रूप मल को त्याग कर अपने ही स्वरूप में स्थित हो जाता है।
 
न विभेति यदा चायं यदा चास्मान्न बिभ्यति।
कामद्वेषौ च जयति तदाऽऽत्मानं च पश्यति।।
 
जब न तो इसे दूसरे का भय रहता है और न इससे दूसरे भय खाते हैं और जब यह इच्छा और द्वेष को जीत लेता है तब इस आत्मा का साक्षात्कार होता है।
 
यदासौ सर्वभूतानां न द्रुह्यति न काङ्क्षति। 
कर्मणा मनसा वाचा ब्रह्म सम्पद्यते तदा।।
 
जब यह मनसा-वाचा-कर्मणा किसी भी जीव के साथ न तो द्रोह करता है और न किसी से राग ही करता है, तब इसे ब्रह्म की प्राप्ति हो जाती है। इन महत्वपूर्ण तथ्यों का मर्म समझने से कोई भी मौत के मुंह से बचकर नया जीवन पा सकता है। चिंता छोडि़ए और प्रसन्न रहिए। 
 
—डा. रामचरण महेंद्र

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