Edited By ,Updated: 17 Mar, 2016 04:34 PM
व्यक्ति जब तक श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए उनकी महिमा का गुणगान नहीं करेगा, श्रीकृष्ण-कीर्तन नहीं करेगा, तब तक उसे शान्ति नहीं मिल सकती। इस बात का उदाहरण श्रीकृष्ण द्वैपायन ॠषि वेद व्यास जी हैं। उन्होंने अपने जीवन में वो सब कुछ किया जो एक व्यक्ति...
व्यक्ति जब तक श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए उनकी महिमा का गुणगान नहीं करेगा, श्रीकृष्ण-कीर्तन नहीं करेगा, तब तक उसे शान्ति नहीं मिल सकती। इस बात का उदाहरण श्रीकृष्ण द्वैपायन ॠषि वेद व्यास जी हैं। उन्होंने अपने जीवन में वो सब कुछ किया जो एक व्यक्ति अपने जीवन में कोशिश करने से भी नहीं कर सकता है। वेदों का विभाग किया, 18 पुराण लिखे, वेदान्त की रचना की, उपनिषद लिखे, महाभारत लिखी, श्रीमद् भगवद् गीता जैसे ग्रन्थ हमें प्रदान किया। इतना कुछ करने के बाद भी जब उनको शान्ति नहीं मिली तो जब वे अपने गुरु जी श्रीनारद गोस्वामी को मिले तो यह समस्या उनके सामने रखी।
तब श्रीनारद गोस्वामी जी ने उनसे कहा - क्या कभी तुमने किसी प्राणी को सुख दिया?
श्री वेद व्यास जी - मैंने यह सब कुछ किया ही जीवों के सुख के लिये है। किसकी कौन सी इच्छा कैसे पूरी हो सकती है, धन की इच्छा, पद की इच्छा, पुत्र की इच्छा, स्वर्ग की इच्छा, यह कैसे होगा, सारा मैंने इन ग्रन्थों में ही तो लिखा है।
श्रीनारद गोस्वामी - जीव (प्राणी) तो पहले से ही कामना-वासना के दलदल में फंसा है। आपने उनको और आगे धकेल दिया, यह रास्ता दिखा कर। अन्ततः उन्हें दुःख की ओर ही धकेल दिया इसलिए आपको दुःख मिल रहा है।
श्री वेद व्यास जी - मैंने उन्हें मोक्ष का रास्ता भी दिखाया है।
श्री नारद गोस्वामी जी - यह तो आपने और भी गलत किया।
ॠषि वेद व्यास यह सुनकर हैरान रह गये। असमंजस से पूछा- मोक्ष का रास्ता गलत है?
श्री नारद गोस्वामी जी - हां, यह जो ज्योति में ज्योत समाना, वो जो ब्रह्म में लीन होना, का रास्ता दिखाया आपने, उससे तो प्राणी को हमेशा के लिये श्रीकृष्ण प्रेम, श्रीकृष्ण सेवा से वंचित होना पड़ेगा। इससे आपको कैसे सुख मिलेगा? ॠषि वेद व्यास जी हैरान होकर सुनने लगे।
एक प्रसंग आता है गोपियां पानी भरने के लिये यमुना जी के तट पर गयीं, वहां पहले से ही कुछ पानी भर रहीं थीं, कुछ पानी भर चुकी थीं व कुछ आ रहीं थीं। तब सारी की सारी वहां पर इकट्ठी हो गयीं। आपस में बात करने लगीं। उनके लिये तो एक ही विषय है - श्रीकृष्ण की चर्चा।
यह चर्चा करते-करते एक गोपी बोली- सखी! कुछ याद है, जब हम पानी लेने के लिये आयीं थीं, तब सूर्य उदय हुआ था, और इस समय सूर्य सिर पर आ गया है, मसलन दोपहर हो गई है। देखो, कितना आनन्द है, कृष्ण-चर्चा में कि हमें याद ही नहीं है कि हमारे सिर के ऊपर पानी से भरा घड़ा रखा है और हम इतनी देर से कृष्ण के बारे में ही बातें करती जा रही हैं।
दूसरी गोपी - तभी तो मुझे दुःख आता है उन बेचारों पर जिन्हें यह आनन्द नहीं मिला। जो भगवान का भजन नहीं करते हैं, वे इससे हमेशा-हमेशा के लिये वंचित हैं।
तीसरी गोपी- सखी! मुझे उन पर दुःख या तरस नहीं है, जो भगवान का भजन नहीं करते हैं क्योंकि कभी न कभी उनके जीवन में सच्चे सन्त आयेंगे, कभी न कभी उन्हें सच्चा भक्त मिलेगा और उनको इस राह पर ले आयेगा। तब उनका भी आस्वादन होने लगेगा। लेकिन मुझे तो तरस आता है उन पर जो बेचारे मर गये हैं। उनके हाथ आया सुनहरा मौका छिन गया।
चौथी गोपी - नहीं, नहीं सखी! मुझे मरने वालों पर भी तरस नहीं आता, क्योंकि उनको कभी न कभी मनुष्य जन्म मिलेगा, और सच्चा भक्त मिलेगा और उनकी भी स्थिति सुधर जायेगी। मुझे तो तरस आता है, दुःख आता है, उन पर जो ज्योति में ज्योत समा गये हैं, ब्रह्म-लीन हो गये हैं, उनके लिये तो आगे बढ़ने का कोई उपाय ही नहीं है।
श्रीनारद गोस्वामी जी भी यही बात ॠषि वेद-व्यास जी से कह रहे हैं कि यह सायुज्य मुक्ति का मार्ग सही नहीं है, इससे जीव हमेशा के लिये श्रीकृष्ण प्रेम से वंचित हो जाता है। इसी कारण से आपको सुख नहीं मिल रहा। अगर सुख चाहते हैं तो श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिये श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान करें।
ॠषि वेद-व्यास जी बोले, मैंने श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान किया है, महाभारत आदि ग्रन्थों में।
श्री नारद गोस्वामी जी, नहीं आपने महिमा तो बोली लेकिन मोक्ष के सन्दर्भ में, मोक्ष के लिये। सुख तभी मिलेगा जब श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिये उनकी महिमा बोली जायेगी।
उसके उपरान्त श्रीकृष्ण द्वैपायन वेद-व्यासजी ने श्रीकृष्ण की महिमा केवल श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिये बखान की, जिसको श्रीमद् भागवत् महापुराण के रूप में हम आज देखते हैं। इस महान ग्रन्थ की रचना के बाद श्रीवेद-व्यास जी को परम शान्ति का अनुभव हुआ। यह हम सबके लिये अनमोल और अन्तिम उपहार है उनकी ओर से।
आपने आचरण करके शिक्षा दी कि जब तक भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिये, उनकी महिमा कीर्तन नहीं करेंगे, तब तक हमें परम शान्ति नहीं मिलेगी।
श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति वितार विष्णु जी महाराज
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