Edited By ,Updated: 24 Jun, 2016 12:36 PM
नैनमूध्र्वं न तिर्यञ्चं न मध्ये परिजग्रभत्। न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महद्यश:।। (श्वेताश्वतरोपनिषद् अ. 4-19)
परमब्रह्म परमेश्वर को कोई भी मनुष्य न तो ऊपर से पकड़ सकता है,
नैनमूध्र्वं न तिर्यञ्चं न मध्ये परिजग्रभत्। न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महद्यश:।। (श्वेताश्वतरोपनिषद् अ. 4-19)
परमब्रह्म परमेश्वर को कोई भी मनुष्य न तो ऊपर से पकड़ सकता है, न नीचे से पकड़ सकता है और न बीच में इधर-उधर से ही पकड़ सकता है क्योंकि ये सर्वथा अग्राह्य हैं-ग्रहण करने में नहीं आते। उन्हें जानने और ग्रहण करने की बात जो शास्त्रों में पाई जाती है उसका रहस्य वही समझ पाता है जो उन्हें पा लेता है। वह भी वाणी द्वारा व्यक्त नहीं कर सकता क्योंकि मन और वाणी की वहां तक पहुंच नहीं है।
वे समझने और समझाने में आने वाले समस्त पदार्थों से सर्वथा विलक्षण हैं। जिनका ‘महान यश’ है, जिनका महान यश सर्वत्र प्रसिद्ध है, उन पर परात्पर ब्रह्म की कोई भी उपमा नहीं है, जिसके द्वारा उनको समझा अथवा समझाया जा सके। इसके अतिरिक्त कोई दूसरा उनके समान हो तो उसकी उपमा दी जाए।
अत: मनुष्य को उस परम प्राप्य तत्व को जानने और पाने का अभिलाषी बनना चाहिए क्योंकि जब वह मनुष्य को प्राप्त होता है तब हमें क्यों नहीं होगा?